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इलाहाबाद हाईकोर्ट का हिंदू शादी को लेकर बड़ा फैसला, कहा-' नहीं जरूरी कन्या-दान की रस्म'!

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 07 Apr, 2024 05:44 PM
इलाहाबाद हाईकोर्ट का हिंदू शादी को लेकर बड़ा फैसला, कहा-' नहीं जरूरी कन्या-दान की रस्म'!

उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले पर फैसला लेते हुए कहा कि शादी की रस्म में कन्यादान की रस्म निभाना जरूरी नहीं है। जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने 22 मार्च को एक मामले पर फैसला देते हुए ये निर्णय सुनाया। दरअसल, याचिकाकर्ता ने कन्यादान को शादी का जरूरी हिस्सा मानकर इसके लिए कोर्ट में गवाह पेश करने की बात कही। उनका कहना था कि शादी में कन्यादान की रस्म पूरी की गई थी या नहीं, इसके लिए ग्वाह पेश करना चाहिए, जिस पर कोर्ट ने साफ किया कि हिंदू शादी में कन्यादान की रस्म समापन के लिए जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कन्यादान हुआ है या नहीं हुआ है यह किसी भी मामले के निर्णय को प्रभावित नहीं करेगा।

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हाईकोर्ट ने इस वजह से सुनाया ये निर्णय

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 7 के अनुसार किसी भी हिंदू शादी को वैध होने के लिए सप्तपदी के अनुसार शादी करनी जरूरी है। हिंदू शादी के दौरान सप्तपदी की रस्म पूरी की जाती है, वैसे ही शादी वैध और बाध्यकारी होता है। जब शादी के दौरान युवक और युवती अग्नि के सामने 7 फेरे लेते हैं और वचन से एक दूसरे के साथ शादी के बंधन में बंध जाते हैं, तब ही हिंदू शादी हो जाती है। हिंदू मैरिज एक्ट के तहत 1955 में शादी के समापन के लिए कन्यादान की रस्म का जिक्र नहीं है।

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क्यों की जाती है कन्यादान की रस्म

अपने आस-पास अमूमन होने वाले हर हिंदू विवाह में कन्यादान की रस्म को पूरा करते हुए देखा होगा। दुल्हन के माता- पिता भी इस रस्म तो लेकर काफी ज्यादा भावुक होते हैं कि उन्हें अपनी बेटी का कन्यादान करना है। इस रस्म के तहत पिता अपनी बेटी का हाथ दूल्हे के हाथ में देते हैं और मंत्र उच्चारण के बाद दुल्हन को पूरी तरह स्वीकार करता है और उसकी पूरी जिम्मेदारी खुद निभाने का वचन देते हैं।
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