आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपना नाम बना रही हैं और पुरूषों से कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। आने वाली 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाएगा। इसका उद्देशय महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना होता है। हमारे समाज में ही ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जिन्होंने समाज की तमाम बेड़ियों को तोड़ते यह दिखा दिया कि वह भी किसी से कम नहीं है। क्षेत्र कोई भी हो आपको उसमें महिलाओं का नाम जरूर देखने को मिलेगा। हाल ही में पद्मश्री अवॉर्ड की लिस्ट भी जारी हुई थी जिसमें महिलाओं ने शानदान प्रदर्शन किया। तो चलिए आपको उन्हीं में से कुछ महिलाओं के बारे में बताते हैं।
मिथिला पेटिंग आर्टिस्ट दुलारी देवी
बिहार की मधुबनी जिले के रांटी गांव में बेहद गरीबी में जीवन गुजारने वाली दुलारी देवी के मधुबनी पेटिंग आर्टिस्ट बनने का सफर बेहद प्रेरणादायक रहा। उनके इसी हुनर ने उन्हें दुनियाभर में शोहरत दिलाई और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी उनकी कला के प्रशंसक रहे। भारत सरकार द्वारा दुलारी देवी को पद्मश्री के लिए सम्मानित किया जाएगा।
गरीबी के चलते दुलारी शिक्षा हासिल नहीं कर पाई थी छोटी उम्र में शादी हुई लेकिन रिश्ता नहीं चला। आजीविका के लिए दुलारी ने घरों में झा़ड़ू पौंछा बर्तन आदि का काम किया जहां उन्हें फेमस मिथिला पेंटिंग व सुजनी कला में निपुण कर्पूरी देवी का साथ मिला। उन्हीं की प्ररेणा से दुलारी ने पेंटिंग करना शुरू किया। खाली समय में दुलारी अपने घर-आंगन को ही मिट्टी से पोतकर और लकड़ी की ब्रश बना मधुबनी पेटिंग करती थी धीरे-धीरे वह इस कला में निपुण हो गई। उनकी कला के लिए राज्य सरकार द्वारा उन्हें कई पुरस्कार भी दिए जा चुके हैं। कर्पूरी देवी का साथ पाकर दुलारी ने मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना ली। अब तक वह करीब 7 हजार मिथिला पेटिंग बना चुकी हैं। गीता वुल्फ की पुस्तक 'फॉलोइंग माइ पेंट ब्रश' और मार्टिन लि कॉज की फ्रेंच में लिखी पुस्तक मिथिला में दुलारी की जीवन गाथा व कलाकृतियां सुसज्जित है। सतरंगी नामक पुस्तक में भी इनकी पेंटिग ने जगह पाई है।
महाराष्ट्र की मदर टेरेसा सिंधुताई सपकाल
महाराष्ट्र की मदर टेरेसा, अनाथों की माई, मां सिंधुताई जैसे नामों से जानी जाने वाली समाज सेवी सिंधुताई सपकाल का नाम भी पद्मश्री सूची में है। सिंधुताई करीब 1200 बच्चों को गोद ले चुकी हैं। समाजसेवी के रुप में वह महिला व बच्चों के जीवन में सुधार लाने के लिए लगातार कई सालों से काम कर रही हैं। उनकी खुद की बेटी वकील है और उन्होने गोद लिए बहुत सारे बच्चे आज डॉक्टर, अभियंता, वकील है और उनमे से बहुत सारे खुद का अनाथाश्रम भी चला रहे हैं। महाराष्ट्र, भारत व अंतरराष्ट्रीय सरकार द्वारा सिंधुताई को कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा उन्हें अहिल्याबाई पुरस्कार भी दिया गया। पति ने कभी उन्हें गर्भावस्था के समय घर से निकाल दिया था लेकिन 80 साल की उम्र में उन्होंने पत्नी द्वारा चलाए जा रहे अनाथ आश्रम में ही शरण ली। जहां उन्होंने अपने पति को एक बेटे के रूप मे स्वीकार किया वह कहती है कि अब वो सिर्फ एक मां है।
भूरी बाई, दिहाड़ी मजदूर से इंटरनेशनल पेंटर बनने का सफर
भूरी बाई ऐसी पहली आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली महिला हैं जिन्होंने दीवारों पर पिथोरा पेंटिंग करने की शुरुआत की। अपनी कला से उन्होंने प्राचीन विरासत को सहेज कर रखा। उनकी इसी कला के लिए भारत सरकार उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करेगी।
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले की रहने वाली भूरी बाई आजीविका के लिए मजदूरी करती थी लेकिन बचपन से ही उन्हें पेंटिंग का शौक था इसलिए वह पिता से पेंटिंग बनाना भी सीखती रही। उनकी यह लग्न मेहनत उनके काम आई उन्हें राज्य के संस्कृति विभाग में पेंटिंग बनाने का काम मिला इसी से आगे उन्हें भोपाल के भारत भवन में पेटिंग करने का ऑफर भी मिला। धीरे धीरे वह इस कला में आगे बढ़ती गई। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा "शिखर पुरस्कार" "अहिल्या सम्मान" से नवाजी गई। उनकी पेटिंग वर्कशॉप अमेरिका में भी लग चुकी है साथ ही वह देश के अलग-अलग जिलों में भी आर्ट और पिथौरा पेटिंग आर्ट की वर्कशॉप लगाती हैं। अब वह भोपाल में आदिवासी लोककला अकादमी में बतौर कलाकार काम करती हैं।