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लोहड़ी क्यों मनाई जाती है जानें ?

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 12 Jan, 2017 04:42 PM
लोहड़ी क्यों मनाई जाती है जानें ?

लोहड़ी उत्तर भारत में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्यौहार है। नया साल आते ही हर तरफ लोहड़ी की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। मकर सक्रांति के 1 दिन पहले 13 जनवरी को यह त्यौहार मनाया जाता है। खुशियां मनाने, हंसने, नाचने और गाने के लिए इस त्यौहार का इंतजार हर किसी को बेसब्री से रहता है। इस दिन आग जलाकर उसमें मूंगफली, रेवडिय़ां और तिल की आहूति डालकर पूजा की जाती है। जिन लोगों के घर में बच्चे का जन्म या लड़के की शादी हुई हो वह दोस्तों और रिश्तेदारों को बुलाकर यह त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाते हैं। पंजाबी लोग इस दिन गिद्दा और भगड़ा डालकर खुशियां मनाते हैं। 

लोहड़ी के पीछे मान्यता 
एक कहानी के अनुसार कहा जाता है कि दूल्हा भट्टी नाम का एक डाकू था,जो लूट-मार करके गरीब लोगों की मदद करता था। उसने मुश्किल समय में सुंदरी और मुंदरी दो अनाथ बहनों की मदद की। जिनको उसके चाचा ने जमीदारों को सौप दिया था। दूल्हे ने उन्हें जमीदारों के चंगुल से छुड़ाकर लोहड़ी की इसी रात आग जलाकर उनकी शादी करवा दी और एक सेर शक्कर उनकी झोली में डालकर विदाई की। माना जाता है कि इसी घटना के कारण लोग लोहड़ी का त्यौहार मनाते हैं। दूल्हा भट्टी को आज भी प्रसिद्ध लोक गीत ‘सुंदर-मुंदिरए’ गाकर याद किया जाता है। 

लोहड़ी का गीत
लोहड़ी के त्यौहार पर ‘सुंदर मुंदरिए ...हो तेरा कौन बेचारा’ प्रसिद्ध गीत गाया जाता है।  बच्चे दूसरों के घरो में इस गीत को गाकर लोहड़ी मागने जाते हैं। 

लोहड़ी ऐसे मनाई जाती है
इस खुशी के त्यौहार को मनाने के लिए लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और आस-पड़ोस को मूंगफली, रेवडियां और तिल बांटते हैं और एक ही जगह इक्टठे होकर लोहड़ी मनाते हैं। यह त्यौहार किसान के लिए भी बहुत महत्व रखता है। इसे फसल कटाई का त्यौहार भी माना जाता है। सारे लोग एक-दूसरे के घरों में जाकर नए जन्मे बच्चों और नई बहू को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन हर तरफ ढोल,भंगड़े और गिद्दे की धूम सुनाई देती है। 

त्यौहार का बदलता स्वरूप
समय बदलने के साथ त्यौहार के मायने भी बदलते जा रहे हैं। पहले लोहड़ी का आमंत्रण देने के लिए मूंगफली और रेवडिय़ां बांटी जाती थीं। अब इसकी जगह चॉकलेट और गज्जक ने ले ली है। डी जे की धुन ने ढोल के मायनों को भी बदल दिया है लेकिन गांवों में आज भी पहले की तरह बच्चे घर-घर जाकर गाने गाकर लोहड़ी मागते हैं।

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