आज कल सोशल मीडिया पर ये लाइनें बड़ी देखने को मिल रही है कि लड़की का घर बर्बाद करने में मायके वालों का ही हाथ होता है। पर हमारा सवाल यह है कि हर बार मायके वालों को ही जिम्मेदार क्यों ठहराया जाता है, क्या ससुराल वाले हमेशा बेकसूर होते हैं। किसी रिश्ते के टूटने के पीछे एक नहीं दो परिवारों का हाथ होता है।
हम किसी भी परिवार को सही या गलत नहीं ठहरा रहे हैं, हम सिर्फ ये बताना चाहते हैं कि चंद लाइनें लिखने के लिए किसी को कसूरवार ना ठहराएं। जब कभी पति-पत्नी के बीच लड़ाई- झगड़े बढ़ते हैं तो बड़े मजे से कह दिया जाता है कि लड़की का ध्यान मायके में ज्यादा है इसलिए वह ससुराल में बस नहीं पा रही है, पर अगर हम ठंडे दिमाग से सोचें तो लड़की तो चंद मिनट ही अपने परिवार वालों से बात करते है लड़का तो हर वक्त अपने परिवार के साथ ही रहता है।
अगर मायके वालों के कारण रिश्ते खराब हो रहे हैं तो ससुराल वालों के कारण सुधर भी ताे सकते हैं। अगर किसी लड़की को कोई दुख या तकलीफ ही नहीं होगी तो वह क्यों बेमतलब अपने मायके वालों के आगे रोएगी या उन्हें अपने तकलीफ बताएगी। आमतौर पर देखा जाता है कि जब लड़की ससुराल में अकेली पड़ जाती है तभी उसे मायके वालों की याद आती है।
दुनिया में कोई भी मां- बाप यह नहीं चाहेंगे कि उनकी बेटी का घर बर्बाद हो, इसलिए हर बार लड़की के घर वालों को कसूरवार ठहराना बंद करें। हां मां-बाप का कसूर सिर्फ इतना होता है कि है कि वह अपनी बेटी को दुखी नहीं देख सकते इसलिए कई बार वह गुस्से में ससुराल वालों या दामाद को बोल भी देते है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि वह घर तोड़ना चाहते हैं।
ससुराल में जब बहू से जब कोई गलती होती है तो सास या ससूर भी तो उसे डांट लगा देते हैं तो क्या इसका मतलब वह भी बेटे का घर तोड़ना चाहते हैं? तभी तो कहा जाता है शादी दो परिवारों का मिलन होता है। जब तक ये परिवार एक साथ नहीं आएंगे तब तक पति-पत्नी के रिश्तों में ऐसी ही दरारें आती रहेंगी। हम तो यही कहेंगे सोच बदलें बिना वजह किसी को जिम्मेदार ना ठहराएं।