बॉलीवुड में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों के बीच विशिष्ट पहचान बनाने वाले सुनील दत्त ने अपनी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे। पेट पालने के लिए उन्होंने बस कंडक्टर की नौकरी की थी। इसके बाद रेडियो सिलोन में एनाउंसर के तौर पर काम किया, जहां उन्हें प्रत्येक साक्षात्कार के लिये 25 रूपये मिला करते थे। जन्मदिवस के मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी से जड़ी कुछ अहम बातें।
बचपन में छिन गया पिता का साया
सुनील दत्त का जन्म 06 जून 1929 को पंजाब के झेलम जिला स्थित खुर्दी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता रघुनाथ दत्त दीवान थे जो कई जमीन के मालिक भी थे। सुनील दत्त जब महज पांच साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया था।जब वह 18 साल के हुए तब आजादी का समय आया और हिंदू मुस्लिम के दंगे होने लगे। तभी सुनील दत्त की मां पूरे परिवार के साथ ईस्ट पंजाब के यमुनानगर जिले में आ गईं जो अब हरियाणा में है। सुनील दत्त कुछ समय लखऊ में रहे और यहां कुछ साल पढ़ाई की, उन्होंने मुंबई के जय हिंद कॉलेज में एडमिशन लिया। इसी के साथ वो मुंबई के बस डिपो में चेकिंग क्लकर् के तौर पर भी काम करते थे, जहां उन्हें 120 रुपये महीना मिला करते थे।
रेडियो सिलोन में किया काम
कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने रेडियो सिलोन में काम किया। इस दौरान सुनील दत्त कई प्रोग्राम बनाते थे और उसी दौरान उन्होंने नरगिस का भी इंटरव्यू लिया था। प्रत्येक साक्षात्कार के लिए उन्हें 25 रुपए मिलते थे। रेडियो पर सुनील दत्त ‘लिपटन की महफिल' नाम का शो होस्ट करते थे। इस शो के लिए 1953 में प्रदर्शित फिल्म ‘शिकस्त' के लिए वह दिलीप कुमार का इंटरव्यू कर रहे थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात निर्देशक रमेश सहगल से हुई और वह उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने सुनील दत्त को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया। रमेश सहगल ने सुनील दत्त को अपनी अगली फिल्म का प्रस्ताव दिया और 300 रुपये फीस देने का वादा किया।
मां के लिए ठुकराई फिल्म
रमेश सहगल का प्रस्ताव पाकर सुनील दत्त काफी खुश हो गए, लेकिन अगले ही पल उन्हें अपनी मां को दिया वचन याद आ गया। उनकी मां चाहती थीं कि वे पहले अपनी पढ़ाई पूरी करें फिर एक्टिंग की दुनिया में जाएं। सुनील दत्त परेशान होकर सहगल के पास गए और कहा कि ‘मां का दिए वचन के कारण मैं यह फिल्म नहीं कर सकूंगा'। उनकी यह बात सुनकर सहगल काफी प्रभावित हुए और उन्होंने सुनील को गले लगाकर कहा कि ‘पहले तुम पढ़ाई पूरी कर लो फिर फिल्म शुरू करेंगे। वर्ष 1955 में सुनील ने सहगल की फिल्म ‘रेलवे प्लेटफॉर्म' में काम किया।
कई सालों तक किया संघर्ष
वर्ष 1955 से 1957 तक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिये संघर्ष करते रहे। ‘‘रेलवे प्लेटफार्म'' फिल्म के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली उसे वह स्वीकार करते चले गये। उस दौरान उन्होंने कुंदन, राजधानी, किस्मत का खेल और पायल जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुयी । सुनील दत्त की किस्मत का सितारा 1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया से चमका। इस फिल्म में उनका किरदार ऐंटी हीरो का था। करियर के शुरूआती दौर में ऐंटी हीरो का किरदार निभाना किसी भी नये अभिनेता के लिये जोखिम भरा हो सकता था लेकिन उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया और ऐंटी हीरो का किरदार निभाकर आने वाली पीढ़ी को भी इस मार्ग पर चलने को प्रशस्त किया। ऐंटी हीरो वाली उनकी प्रमुख फिल्मों में जीने दो, रेशमा और शेरा, हीरा, प्राण जाए पर वचन न जाए, 36 घंटे, गीता मेरा नाम, जख्मी, आखिरी गोली, पापी आदि प्रमुख हैं।
नरगिस को बचाने कूद गए थे आग में
मदर इंडिया ने सुनील दत्त के सिने करियर के साथ ही व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। इस फिल्म में उन्होनें नरगिस के पुत्र का किरदार निभाया था। फिल्म की शूटिंग के दौरान नरगिस आग से घिर गयी थी और उनका जीवन संकट मे पड़ गया था। उस समय वह अपनी जान की परवाह किये बिना आग मे कूद गये और नरगिस को आग की लपटों से निकालकर बाहर ले आये । इस हादसे मे सुनील दत्त काफी जल गये थे तथा नरगिस पर भी आग की लपटों का असर पड़ा। उन्हें इलाज के लिये अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनके स्वस्थ होने के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया ।
1981 में बेटे संजय दत्त को किया लांच
वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘ये रास्ते है प्यार के'' के जरिये सुनील दत्त ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। वर्ष 1964 में प्रदर्शित ‘‘यादें'' उनकी निर्देशित पहली फिल्म थी। वर्ष 1967 उनके सिने करियर का सबसे महत्वपूर्ण साल साबित हुआ। उस वर्ष उनकी मिलन, मेहरबान और हमराज जैसी सुपरहिट फिल्में प्रदर्शित हुयी जिनमें उनके अभिनय के नये रूप देखने को मिले। इन फिल्मों की सफलता के बाद वह अभिनेता के रूप में शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। वर्ष 1972 में सुनील दत्त ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म ‘‘रेशमा और शेरा'' का निर्माण और निर्देशन किया लेकिन कमजोर पटकथा के कारण यह फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से नकार दी गयी। वर्ष 1981 में अपने पुत्र संजय दत्त को लांच करने के लिये उन्होने फिल्म ‘‘रॉकी'' का निर्देशन किया। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी।
राजनीति में भी अजमाई किस्मत
फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद सुनील दत्त ने समाज सेवा के लिए राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस पार्टी से लोकसभा के सदस्य बने। वर्ष 1968 में वह पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किये गये। उनको 1982 में मुंबई का शेरिफ नियुक्त किया गया। उन्होंने कई पंजाबी फिल्मों में भी अपने अभिनय का जलवा दिखलाया। इनमें मन जीत जग जीत, दुख भंजन तेरा नाम और सत श्री अकाल प्रमुख है।वर्ष 1993 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘क्षत्रिय'' के बाद सुनील दत्त ने विधु विनोद चोपड़ा के जोर देने पर उन्होंने 2003 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मुन्ना भाई एमबी.बी.एस'' में संजय दत्त के पिता की भूमिका निभाई। पिता और पुत्र की इस जोड़ी को दर्शकों ने काफी पसंद किया। सुनील दत्त को अपने सिने करियर में दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनमें मुझे जीने दो 1963 और खानदान 1965 शामिल है। वर्ष 2005 में उन्हें फाल्के रत्न अवाडर् प्रदान किया गया। सुनील दत्त ने लगभग 100 फिल्मों में अभिनय किया। अपनी निर्मित फिल्मों और अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले सुनील दत्त 25 मई 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह गये ।