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महिलाओं की विवाह की उम्र बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 24 Jan, 2022 01:53 PM
महिलाओं की विवाह की उम्र बढ़ाना ही पर्याप्त नहीं

22 दिसंबर, 2021 कोकेंद्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने लोकसभा में Child Marriage (Amendment) Bill, 2021 को प्रस्तुत किया एवं इसे पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग समिति को जाँच के लिए भेजने की सिफारिश कर दी।यह संशोधन बिल महिलाओं की विवाह की क़ानूनी उम्र 18 वर्ष से 21 वर्ष करने के लि एलाया गया है।पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री ने विवाह की उम्र 18 से 21 करने के कदम को देश की बेटियों के हाथों को मजबूत करने के लिए सरकार की पहल बताया। जहां सरकार और प्रधानमंत्री की बाल विवाह एवं देश की बेटियों को सशक्त करने को लेकर चिंता उचितहै, वहीं सिर्फ क़ानूनी कदम पर्याप्त होंगे ऐसा नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे उन कारणों को एड्रेस नहीं करते जो बाल विवाह के लिए जिम्मेदारहै।


विश्वस्त रपर, 18 वर्ष की आयु को वयस्कता की उम्र माना जाता है।इसे महिलाओं की शारीरिकऔर प्रजनन परिपक्वता (फिसिकल एंड रिप्रोडक्टिवमच्योरिटी) केसाथ-साथ बालअधिकार सम्मेलनों (चाइल्ड राइट्स कन्वेंशंस) द्वारा वयस्कता की उम्र केमामले मेंऊपरी सीमा के रूप में भी देखा जाताहै, जिसमें भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है।अधिकांश देशों में विवाह कीकानूनीउम्र 18 वर्ष है।इस प्रकार, प्रस्तावित कदम पहले से ही वयस्क महिलाओं के प्रजनन अधिकारों को प्रतिबंधित करेगा।

 


यह बिल सबूतों के आधार पर नहीं है क्योंकि पिछले सरकारी कानून बालविवाह को समाप्त करने में सफल नहीं हुए।हाल मेंआये NFHS-5 सर्वे के अनुसार देश में अभी भी 23% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष सेपहले हो जाता है। पश्चिम बंगाल, बिहार एंड त्रिपुरा ऐसे तीन राज्य हैं जहां देश में सर्वाधिक बालविवाह (NFHS-5 केअनुसार 40 % सेअधिक)  होते हैं। NFHS-सर्वे के अनुसार 2005-06 और 2015-16 के बीच बालविवाह में एक महत्वपूर्ण गिरावट आई थी। यह संभवतःअधिक शैक्षिकअवसरोंऔर माता-पिता कीबदलती एवं बढ़ती आकांक्षाओं के कारण था, न कि कानून के कारण।इस प्रकार, जबकि विवाह की कानूनी उम्र एक आवश्यकता है, यह बाल विवाह को समाप्त करने के लिए अपने आप में एक पर्याप्त नुस्खा नहीं है।

 

बालविवाह को समाप्त करने के लिए उपायों में उन कारणों को ध्यान में रखना चाहिए जो बालविवाह को बढ़ावा देतेहै। बाल विवाह गहरी जड़ें जमाए हुए सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों और उन लैंगिक असमानताओं का परिणाम है, जो लड़कियों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं।गरीबी, असुरक्षा, और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षाऔररोजगार केअवसरों तकसीमित पहुंच की वजह से अक्सर माता-पिता बालविवाह को उनकी गंभीर आर्थिक परिस्थितियों को कम करने के लिए समाधान के रूप में देखतेहैं।


तमाम लोग अपनी बेटियों की शादी यह सोचकर कर देते हैं कि इससे उनका भविष्य सुरक्षित होगा या उनकी रक्षा होगी।पितृसत्तात्मक (patriarchal) -सामाजिक मानदंड इस प्रथा को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।लिंग भूमिकाओं के बारे में रूढ़िवादिता (स्टेरिओटाइप्स) और विवाहेतर गर्भावस्था(एक्स्ट्रामैरिटल प्रेगनेंसी) केसामाजिक-आर्थिक जोखिम के चलते बालविवाह को अनेक समुदायों (कम्युनिटीज) में एकसमस्या के बजाय एकसमाधान के रूपमें देखा जाता है।इस तरह बालविवाह को व्यापक सामाजिक स्वीकृति प्राप्तहै।


बालविवाह के प्रति लोगों की धारणाओं में बदलाव के बिना विवाह की कानूनी उम्र बढ़ाने के कई नकारात्मक परिणाम हो सकतेहैं।कानूनी उम्र बढ़ने का मतलब होगा कि बड़ी संख्या में विवाहित व्यक्तियों को कम उम्र का माना जाएगा, जिससे उनके विवाहकी वैधता पर सवालिया निशानलगजाएगा। ज्यादातर मामलोंमें, जल्दी शादी करने वाली लड़कियों के पासअ दालत जाने और दुर्व्यवहार के बावजूद शादी को रद्द करने केलिए कहने की एजेंसी नहीं होतीहै।विवाह कीकानूनीउम्र बढ़ाने से शायदअधिकविवाहोंकोभूमिगत (अंडरग्राउंड) करने की तुलना मेंकुछ अधिक हासिल होगा ऐसान हीं लगता।


बाल विवाह को समाप्त करने के लिए एक समग्रदृष्टिकोण (होलिस्टिकएप्रोच) की आवश्यकता है।लड़कियों की शिक्षा में निवेश करनाआवश्यक है, क्योंकि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि लड़कियों को शिक्षा पूरी करने में सक्षम बनाने से उनकी शादी में देरी होती है।हमें कौशल-निर्माण (स्किलबिल्डिंग) और लैंगिक समानता (जेंडरइक्वलिटी) जैसी पहल (इनिशिएटिव)  मेंनिवेश करके आर्थिक और सामाजिक दोनों रूप से महिलाओं को सशक्त बनाना चाहिए। हमेंबाल विवाह को समाप्त करने के लिए लक्षित सामाजिकऔरव्यवहार परिवर्तन संचाररणनीतियों (टार्गेटेड सोशल एंड बेहेवियरचेंज कम्युनिकेशन स्ट्रेटेजीज) में भी निवेश करना चाहिए।भारत सरकार कीबेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना इस एप्रोच के साथ बाल विवाहकोरोकने, बालिकाओं के मूल्य और महत्व कोब ढ़ाने औरउन्हें सशक्त बनाने में ज्यादा सफल हो सकतीहै।


पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की ट्रांसमीडिया पहल मैं कुछ भी कर सकती हूं ऐसा ही एक उदाहरण है।इस कार्यक्रम के मूल्यांकन (इवैल्यूएशन)  के निष्कर्षों से पता चलता है कि बालविवाह के हानिकारक प्रभावों पर निरंतर संदेश देने से लड़कियों और माता-पिता के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलावआया, जो कार्यक्रम केसंपर्क में थे। इसके आलावा, सरकार को महिलाओं और लड़कियोंके लिए यौन और प्रजननस्वास्थ्य (सेक्सुअल एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ), मानसिक स्वास्थ्य (मेन्टलहेल्थ)  और पोषण (नुट्रिशन)  पर सूचना और सेवाओं तकप हुंच बढ़ाने को प्राथमिकता देनी चाहिए, विशेष रूप से सबसेअधिक हाशिए केसमुदायों (मार्जिनलाइज़्डग्रुप्स) जिससे कि कोई भी पीछे नछूटे।

(आलोक वाजपेयी, ज्वाइंट डायरेक्टर पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया)

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