कहते हैं अगर कुछ कर गुजरने का हौसला हो तो आपको जीवन में कभी भी हार का सामना नहीं करना पड़ता है। हां ऐसा जरूर हो सकता है कि आपके पास वो चीज न हो जो दूसरें के पास है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप हार मान जाएं और जिंदगी में आगे बढ़ने के सपने ही छोड़ दें। ऐसा करने वाले जिंदगी में कभी सफल नहीं होते हैं। आपको सफलता चीजों से या फिर अमीरी से नहीं बल्कि आपमें छिपी उस कला से मिलता है जिससे सारा जहान आपको उसी से पहचानता है और आपकी वही पहचान बन जाती है। आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन हम आपको उन महिलाओं के बारे में बताते हैं जिन्होंने खेल के क्षेत्र में ऐसा परचम लहराया है कि आज पूरी दुनिया उन पर मान करती है तो चलिए आपको बताते हैं उन जाबांज महिलाओं के बारे में।
हिमा दास, भारतीय धावक
हिमा दास को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है। ढिंग एक्सप्रेस के नाम से जाने वाली हिमा दास हाल ही में असम पुलिस में पुलिस उपाधीक्षक(डीएसपी) के पद पर चुनी गई हैं। हिमा का जन्म असम राज्य के नगाँव जिले के कांधूलिमारी गाँव में हुआ था। उनके माता पिता चावल की खेती करते हैं। वह चार भाई-बहनों से छोटी हैं। दास ने अपने स्कूल के दिनों में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलकर खेल की शुरूआत की इसी से हिमा दास के अदंर खेल के प्रति रूचि पैदा हुई। धीरे-धीरे हिमा ने दौड़ना शुरू किया और जिला स्तरीय प्रतियोगिता में चयनित हुईं और दो स्वर्ण पदक भी जीत लाई। इसी खेल में हिमा पर स्पोर्ट्स एंड यूथ वेलफेयर' के निपोन दास की नजर पड़ी और उन्होंने हिमा को गुवाहाटी भेजने के लिए कहा लेकिन इस पर हिमा के परिवार ने मना कर दिया लेकिन बाद में वे मान गए। इसके बाद हिमा दास की कामयाबी का सफर शुरू हुआ। शुरुआत में हिमा दास नंगे पांव दौड़ती थी। जब वह पहली बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही थी, तब उनके पिता स्पाइक्स वाले जूते ले आए थे। यह सामान्य जूते थे, जिस पर उन्होंने खुद से एडिडास लिख दिया था। आज वही एडिडास हिमा के नाम के पर जूते बना रहा है। दास असम की दूसरी एथलीट हैं जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। बता दें कि हिमा को राष्ट्रपति द्वारा अर्जुन अवार्ड भी मिल चुका है।
मैरी कॉम, भारतीय महिला मुक्केबाज
मैरी कॉम वो सुपर माॅम जिन्हें आज पूरी दुनिया सलाम करती है। मैरी कॉम का असल नाम मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम है और उन्हें मैरी कॉम के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय महिला मुक्केबाज हैं। मैरी कॉम का जन्म 1 मार्च, 1983 को मणिपुर के चुराचांदपुर में हुआ था। मैरी ने बचपन में ही एथलीट बनने का सपना देखा था। उन्होंने 18 साल की उम्र में बॉक्सिंग की दुनिया में कदम रखा। हालांकि यह सफर आसान नहीं था, उनके सानमे कई चुनौतियां आई। एक समय तो ऐसा आया जब उन्हें अपने परिवार के खिलाफ जाना पड़ा था। मैरी कॉम के घरवाले बाॅक्सिंग के सख्त खिलाफ थे। लेकिन वह रुकी नहीं उन्होंने बॉक्सिंग ट्रेनिंग के लिए 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और ट्रेनिंग के लिए मणिपुर की राजधानी इम्फाल आ गईं। साल 2005 में वह शादी के बंधन में बंधी। उन्हें सुपर माॅम के नाम से भी जाना जाता है। वो इसलिए क्योंकि जुड़वा बच्चों को जन्म देने के बाद उन्होंने ना सिर्फ मां का रोल अदा किया ब्लकि खुद को रिंग के लिए भी तैयार किया। शादी के बाद भी मैरी काॅम ने बाॅक्सिंग नहीं छोड़ी इसमें उनके ससुराल वालों ने भी उनक पूरा साथ दिया। मैरी काम अब तक 10 राष्ट्रीय पुरस्कार, कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार, विशेष इंटरनेशनल प्रतिस्पर्धाओं में कुल 14 गोल्ड मेडल, ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल और एक ओलिंपिक मेडल अपने नाम किए। मैरी कॉम के जीवन पर एक फिल्म भी बन चुकी है। जिसमें एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा ने मैरी कॉम का किरदार बखूबी निभाया था। अब मैरी स्पोर्टस में ऐक्टिव रहने के साथ-साथ युवा मुक्केबाजों को भी तैयार कर रही हैं। मनीपुर में वह बॉक्सिंक अकादमी चलाती हैं। इसके साथ ही वह ओलिंपिक 2020 में गोल्ड मेडल की तैयारी कर रही हैं।
दीपा मलिक
दीपा मलिक शॉटपुट एवं जेवलिन थ्रो के साथ-साथ तैराकी एवं मोटर रेसलिंग से जुड़ी एक विकलांग भारतीय खिलाड़ी हैं। दीपा मलिक उन सभी के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है जो अपनी हर बात के लिए अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं। वहीं जब बात स्पोर्टस या फिर खेल जगत की आती है तो हर किसी के मन में यही ख्याल आता है कि इसके लिए आपका शारीरिक रूप से स्ट्रांग होना जरूरी है लेकिन दीपा मलिका ने तो उन सभी को जवाब दिया है। दरअसल 30 की उम्र में तीन ट्यूमर सर्जरीज और शरीर का निचला हिस्सा सुन्न हो जाने के बावजूद उन्होंने न केवल शॉटपुट एवं ज्वलीन थ्रो में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीते हैं, बल्कि तैराकी एवं मोटर रेसलिंग में भी कई स्पर्धाओं में हिस्सा लिया है। आपको बता दें कि दीपा मलिका हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली हैं। इतना ही नहीं जिस उम्र में लोग बैठकर खाने की सोचते हैं उस उम्र में दीपा मलिक ने खेल जगत में एंट्री की। दीपा मलिक आज सभी के लिए इसलिए भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं क्योंकि वह दिव्यांग है और उन्हें स्पाइन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी थी जिसके कारण उनको 183 टांके लगे वह उस समय बिस्तर पर थी लेकिन खेलने का जज्बा ऐसा था कि आज वह दुनिया भर में मशहूर हैं। दीपा मलिक न सिर्फ खेल जगत में बल्कि वह सामाजिक कार्य करने के साथ-साथ लेखन भी करती हैं। वह गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए कैंपेन चलाती हैं और और सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं। बता दें कि दीपा मलिक को बहुत सारे अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं। सच में आज वो सभी के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं।
सुनीता शर्मा, भारत की पहली महिला कोच
क्रिकेट वो खेल जिसके बच्चे-बच्चे दीवाने हैं यह खेल न सिर्फ लड़कों को पसंद हैं बल्कि इसे तो लड़कियां भी बड़े चाव से देखती है। आज हम जिस महिला के बारे में आपको बताने जा रहे हैं वो भी इसी फील्ड सें जुड़ी हैं। दरअसल हम बात कर रहे हैं सुनीता शर्मा को जो भारत की पहली महिला कोच हैं। वह अब तक बहुत से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं और उन्हें 2005 में द्रोणाचार्य पुरस्कार भी मिल चुका है। बचपन से ही खेल में आगे रहने वाली सुनीता ने क्रिकेट में रुचि विकसित करने से पहले राष्ट्रीय स्तर पर खो खो खेल खेला। सुनीता बहुत कम उम्र की थी जब उनके पिता का साया उनके सिर से उठ गया। पिता को खो देने के बाद उनकी मां ने क्रिकेट खेल को अपनाने की सलाह दी ताकि वह उसमें से अपना करियर बना सके। शर्मा ने जल्द ही मध्यम गति के गेंदबाज के रूप में रैंक बढ़ाई और उन्हें राष्ट्रीय टीम में चुना गया। सुनीत की मानें तो अंतिम एकादश में शामिल होने के बावजूद मैच की सुबह उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। लेकिन वह हारी नहीं इसके बाद सुनीता की मां ने उनका दाखिला क्रिकेट कोचिंग प्रोग्राम में करवा दिया। वह पटियाला में नेशनल इंस्टीट्यूट से कोचिंग डिप्लोमा हासिल करने वाली पहली महिला क्रिकेट कोच बनीं। सुनीता शर्मा की मानें तो इसके बावजूद लोग शुरुआत में उनके पास अपने बच्चों को भेजने से हिचकते थे, क्योंकि उनकी पसंद पुरुष कोच थे। मगर जल्द ही लोगों को यह पता चल गया कि पुरुष सहयोगियों की तुलना में वह कम सक्षम नहीं हैं। इसके बाद तो उन्होंने भारत को कई महिला-पुरुष प्रथम श्रेणी और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर दिए। हालांकि सुनीता शर्मा कोच नहीं बल्कि वह एक क्रिकेटर बनना चाहती थीं। सुनीता शर्मा के शिष्यों में दीप दास गुप्ता के अलावा मशहूर महिला क्रिकेटर शशि गुप्ता, अंजु जैन, अंजुम चोपड़ा आदि नाम भी हैं।
मानसी जोशी, पैरा-बैडमिन्टन खिलाड़ी
मानसी जोशी भी उन लोगों के लिए मिसाल है जो दुर्घटना के बाद अपनी जिंदगी का अंत समझ लेते हैं लेकिन मानसी ने कभी भी हार नहीं मानी और यही कारण है कि उन्हें किसी पहचान की जरूरत नहीं है। मानसी जोशी एकएक भारतीय पैरा-बैडमिन्टन खिलाड़ी हैं। मानसी का जन्म गुजरात के राजकोट में हुआ। खेलों में रुची रखने वाली मानसी ने अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों में वॉलीबॉल, फुटबॉल और बैडमिन्टन जैसे कई खेल आजमाए। बैडमिन्टन में उनकी प्रतिभा खूब निखर कर आई और उन्होंने स्कूल और कॉलेज स्तर पर कई टूर्नामेंट खेले। साल 2010 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी कर वे एटॉस इंडिया के साथ बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करने लगीं। दिसंबर 2011 में, 22 साल की उम्र में वह एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो गईं। 45 दन तक अस्पताल में रहने और छह ऑपरेशन्स के बाद भी वो अपनी एक टांग खो चुकी थीं। मानसी न सिर्फ खेल में आगे है बल्कि वह विकलांगों के अधिकारों के लिए आवाज भी उठाती हैं। उनका मकसद है समाज में विकलांगता की समझ बेहतर करने का और उससे जुड़ी पुरानी सोच बदलने का। मानसी बहुत सारे अवॉर्ड्स भी हासिल कर चुकी हैं।
सच में हम इन सभी महिलाओं को दिल से सलाम करते हैं जिन्होंने न सिर्फ समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई है बल्कि यह लोगों के लिए भी किसी मिसाल से कम नहीं हैं।