नारी डेस्क: गणेश पुराण में वर्णित एक महत्वपूर्ण कथा है जो चंद्रमा के शाप से संबंधित है। इस कथा में भगवान गणेश ने चंद्रमा को एक शाप दिया, जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा का रंग मलिन हो गया और वह सभी के देखने योग्य नहीं रह गया। यह लेख इस कथा की गहराई में जाएगा और बताएगा कि कैसे चंद्रमा ने अपने शाप से मुक्ति पाई।
कैलाश पर्वत पर दिव्य फल का विवाद
एक दिन कैलाश पर्वत पर देवगण और ऋषिगण भगवान शिव और माता पार्वती के साथ बैठे थे। भगवान शिव के हाथ में एक दिव्य फल था, जिसे उन्होंने अपने मन में सोचा कि किसे देना चाहिए। पार्वती जी ने पहले गणेश जी का नाम लिया और फिर कुमार कार्तिकेय का। इस विवाद में अंततः भगवान शिव ने फल कुमार कार्तिकेय को दे दिया। यह देखकर गणेश जी, जो कि बड़े हठी और गंभीर थे, बेहद क्रोधित हो गए।
गणेश जी का क्रोध
गणेश जी का क्रोध मुख्य रूप से ब्रह्मा जी पर था, जिन्होंने फल को कुमार कार्तिकेय को देने का सुझाव दिया था। जब सभी देवता अपने-अपने लोक चले गए, तो गणेश जी ने ब्रह्मा जी की सृष्टि में विघ्न डालना शुरू कर दिया। उन्होंने अपनी उग्र रूप दिखाते हुए ब्रह्मा जी को डरा दिया। इसी बीच, चंद्रदेव ने ब्रह्मा जी की स्थिति को देखकर हंसते हुए अपमान किया। इससे गणेश जी और भी क्रोधित हो गए।
चंद्रमा को मिला शाप
गणेश जी ने चंद्रमा को शाप देते हुए कहा कि वह किसी के देखने योग्य नहीं रहेगा और जो भी उसे देखेगा, वह पाप का भागीदार होगा। यह शाप चंद्रमा के रंग को मलिन कर देता है और उसे बहुत दुखी करता है। चंद्रमा ने अपनी इस स्थिति से मुक्ति पाने के उपाय खोजने का निर्णय लिया।
उपाय की खोज
चंद्रमा ने सबसे पहले देवराज इंद्र से सहायता मांगी, लेकिन जब उन्होंने उसे देखा तो सभी देवताओं और गंधर्वों ने अपनी आंखें बंद कर लीं। अंत में, चंद्रमा ने ब्रह्माजी से मिलने का निर्णय लिया। लेकिन जैसे ही वह ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, उन्होंने भी आंखें बंद कर लीं।
गणेश जी की प्रसन्नता और चंद्रमा की मुक्ति
इंद्र ने ब्रह्मा जी से कहा कि चंद्रमा ने गणेश जी का अपमान किया था, इसलिए उन्हें शाप मिला। ब्रह्मा जी ने सुझाव दिया कि चंद्रमा को गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। सभी देवताओं ने मिलकर गणेश जी की पूजा की। कुछ समय बाद, गणेश जी प्रकट हुए और चंद्रमा से कहा कि वह उसे पूर्ण रूप से शाप से मुक्त नहीं कर सकते, लेकिन साल में एक दिन उसे देखने की अनुमति देंगे।
चंद्रमा के शाप का महत्त्व
इस प्रकार, चंद्रमा को हर साल भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन दिखने की अनुमति मिली। हालांकि, इस दिन जो भी चंद्रमा को देखेगा, वह पाप का भागीदार होगा। यह कथा हमें यह सिखाती है कि हमारे कार्यों का हमेशा एक परिणाम होता है और अपमान का फल कभी भी भोगना पड़ सकता है।
गणेश पुराण की यह कथा केवल एक धार्मिक कथा नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण शिक्षा देती है। हमें हमेशा अपने कार्यों और शब्दों के प्रति सचेत रहना चाहिए, क्योंकि कभी-कभी एक छोटी सी भूल का परिणाम गंभीर हो सकता है। गणेश जी की यह कथा हमें अपनी कमजोरियों को समझने और उनसे सीखने की प्रेरणा देती है।