शादी के बाद ससुराल में पहला त्यौहार मनाने की खुशी ही अलग होती है। शादी के बाद हर लड़की को त्योहारों का इंतजार रहता है, क्योंकि इस दिन पति के साथ घर- परिवार के अन्य सदस्य भी उसे स्पेशल फील करवाते हैं। पहले करवा चौथ और दिवाली की तरह होली की भी अलग ही धूम होती है, लेकिन इसे नई नवेली दुल्हन ससुराल की जगह मायके में मनाती है।
दरअसल उत्तर भारत व अन्य जगहों पर ये परम्परा सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा को लेकर यह यह मान्यता है कि विवाह के बाद पहली होली पिहर के आंगन में खेलने से उनका वैवाहिक जीवन सुखमय व सौहार्द पूर्ण बीतता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि नई बहू और उसकी सास का एक साथ जलती हुई होली को देखना बेहद अशुभ होता है। ऐसा होने से दोनों के बीच कलह हाे सकता है।
कहा जाता है कि दामाद को भी शादी के बाद पहली होली अपने घर की बजाय पत्नी के मायके में मनानी चाहिए, ऐसा करने से उनका जीवन खुशहाल रहता है। वही अगर लॉजिकल पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखा जाए तो मायके में पहली खेलने का रिवाज इसलिए भी है क्योंकि मायके में लड़की खुद को थोड़ा फ्री महसूस करती है और पति के साथ खुलकर होली खेल पाती है। साथ ही दामाद का रिश्ता भी ससुराल वालों से मजबूत होता है।
यह बात तो किसी से छिपी नहीं है कि लड़कियों से ज्यादा लड़के अपने ससुराल वालों के साथ खुलने में समय लेते हें। ऐसे में पत्नी के घर में होली खेलने से उनकी झिझक दूर हो जाती है। मान्यता तो यह भी है कि मायके में पहली होली खेलने से होने वाली संतान स्वास्थ्य पैदा होती है। इस कारण से शादी के बाद पहली होली मायके में मनाई जाती है।