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अफगानी महिला का छलका दर्द,  'तालिबानियों में कोई इंसानियत नहीं, वे मुसलमान नहीं, काफिर हैं'

  • Edited By Anu Malhotra,
  • Updated: 08 Sep, 2021 01:01 PM
अफगानी महिला का छलका दर्द,  'तालिबानियों में कोई इंसानियत नहीं, वे मुसलमान नहीं, काफिर हैं'

अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होते ही वहां की स्थिति बेहद भयावह बनीं हुई हैं। अपनी पहली कांफ्रेंस में ही तालिबानियों ने यह साफ कर दिया है कि अब अफगानिस्तान में लोकतंत्र की सरकार नहीं ब्लकि शरिया कानून के हिसाब से सरकार चलेगी।  जिससे वहां के स्थानीय लोग तालिबान के सख्त कानूनों से बचने के लिए अपने देश छोड़ अन्य देशों में शरण लेने पर मजबूर हो गए हैं बता दें कि अब लाखों अफगानी लोग अपना देश छोड़ चुके हैं।

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वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान में तालिबान सरकार का बात करें तो हर रोज उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा है। जब से वे सत्ता में आए हैं, रोज प्रदर्शन हो रहे हैं। काबुल की एक सड़कों पर सैकड़ों महिलाओं का एक समूह नारेबाजी कर रहा है। लेकिन वहीं तालिबान भी अपनी क्रुरता से बाज नहीं आता वह लगातार हवा में गोलियां चला रहा है। 

'तालिबानियों में कोई इंसानियत नहीं, वे मुसलमान नहीं, काफिर हैं'
प्रदर्शन कर रही महिलाओं में से एक महिला तुरंत कैमरे के सामने आकर बोलने लगती है। वह कहती हैं कि ये तालिबान अन्यायी हैं। इनमें कोई इंसानियत भी नहीं है। वे हमें प्रदर्शन का अधिकार भी नहीं दे रहे। वे मुसलमान नहीं, काफिर हैं। गोलियों की आवाज तेज होती जाती है और अफरा-तफरी बढ़ती जाती है।

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हालांकि इस प्रदर्शन में अभी तक किसी की जान जाने की कोई खबर नहीं है। मंगलवार को हुए इस विरोध प्रदर्शन की कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर की गई हैं। उनमें तालिबान को हवा में बंदूकें ताने देखा जा सकता है।

बता दें कि 15 अगस्त के दिन से ही अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा है। देशभर में कई जगहों पर छोटे-छोटे समूहों में इस तरह के प्रदर्शन हो रहे हैं। आमतौर पर महिलाएं इन प्रदर्शनों की अगुआ होती हैं। ये छोटे-छोटे प्रदर्शन तालिबान के लिए बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं। 
 

अफगान लोगों से तालिबान का था फरमान,  सरकार बनने तक धैर्य रखें 
बता दें कि अफगानिस्तान में सरकार गठन करने से पहले तालिबान ने लोगों से कहा था कि सरकार बनने तक धैर्य रखें और उसके बाद उनकी परेशानियों को हल किया जाएगा। एक तालिबान प्रवक्ता ने महिला प्रदर्शनकारियों के संदर्भ में कहा था, उनसे हमने थोड़ा धीरज धरने को कहा था जबकि व्यवस्था खड़ी की जा रही है। जब संस्थाएं बन जाएंगी और काम करने लगेंगी तब हम उनकी बात सुनेंगे।

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1996 से 2001 तक कैसा था तालिबान 
लेकिन लोगों के मन में पिछली बार की तरह ही तालिबान का डर बैठा हुआ है जिस वजह वह अब उनपर विश्वास नहीं रख पा रहे। बता दें कि  पिछली बार जब तालिबान का अफगानिस्तान पर 1996-2001 तक शासन था तब उश समय लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं थी और महिलाओं के काम करने पर कड़ी पाबंदियां लगी हुई थीं। धार्मिक पुलिस को बहुत ज्यादा ताकत हासिल थी और वे किसी को भी नियम तोड़ने के आरोप में कोड़े लगा सकते थे। इन सब को देखते हुए अफगानी लोग तालिबान पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। 


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हमारे लिए यह करो या मरो की स्थिति है
वहीं इस समय स्थिति की बात करें तो हेरात शहर में छात्राएं कहती हैं कि वे नई सरकार में महिलाओं का ज्यादा प्रतिनिधित्व चाहती हैं। हेरात यूनिवर्सिटी के बिजनस स्कूल में पढ़ने वालीं दरिया ईमानी का कहना है कि महिलाएं समाज में हमारा रुतबा और हमारी नौकरियां बचाने के लिए सड़क पर उतरी हैं। हमारे लिए यह करो या मरो की स्थिति है। ईमानी ने बताया कि  उनकी चचेरी बहनें मंगलवार को काबुल में विरोध प्रदर्शनों में शामिल थीं। वह कहती हैं कि हम बहादुर नहीं हैं। हम बस अपने मूलभूत अधिकारों को बचाने को आतुर हैं।

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