देश भर में भगवान कृष्ण के अनेकों मंदिर है और सबकी अपनी एक कहानी है, लेकिन मथुरा जिले के वृंदावन धाम में बिहारीपुरा में स्थित बांके बिहारी मंदिर की बात ही निराली है। यह भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, माना जाता है कि जां यहां आ गया उसका जीवन ही सफल हो गया। ऐसे में कौन सा ऐसा कृष्ण भक्त होगा जाे यहां आना नहीं चाहेगा तथा श्री बांकेबिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा।
इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है। मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं. इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है। यहां आकर व्यक्ति अपने सभी दुख-दर्द भूल जाता है और बांके बिहारी को एक टक बस निहारता ही रह जाता है। हालांकि इस मंदिर में आप भगवान को लगातार नहीं देख सकते हैं। बांके बिहारी जी के आगे बार-बार पर्दा डाला जाता है जिससे कोई भी ठाकुर जी को ज्यादा देर तक न देख सके।
इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि बांके बिहारी जी भक्तों की भक्ति से इतना प्रभावित हो जाते हैं कि मंदिर में अपने आसन से उठकर भक्तों के साथ हो लेते हैं, इसीलिए मंदिर में उन्हें पर्दे में रखकर उनकी क्षणिक झलक ही भक्तों को दिखाई जाती है। लोक कथाओं के अनुसार कई बार बांके बिहारी मंदिर से गायब हो चुके हैं। कहा जाता है कि एक बार एक भक्त भगवान को लगातार देखता रहा ऐसे में उसकी भक्ति के वशीभूत होकर श्री बांकेबिहारी जी उसके साथ चल पड़े। पुजारी ने जब मन्दिर की कपाट खोला तो उन्हें श्री बांके बिहारी जी नहीं दिखाई दिये। पता चला कि वे अपने एक भक्त की गवाही देने अलीगढ़ चले गये हैं। तभी से ऐसा नियम बना दिया कि झलक दर्शन में ठाकुर जी का पर्दा खुलता एवं बन्द होता रहेगा।
ऐसी ही बहुत सारी कहानियां प्रचलित है। एक कहानी यह भी है कि एक बार एक भक्तिमती ने अपने पति को बहुत मुश्किल से वृन्दावन जाने के लिए राजी किया। दोनों वृन्दावन आकर श्री बांकेबिहारी जी के दर्शन करने लगे। कुछ दिन श्रीबिहारी जी के दर्शन करने के पश्चात उसके पति ने जब वापस लौटने कि कहा तो वह बिहारी जी से बिछड़ने के गम मेंरोने लगी। उस महिला ने भगवान से कहा- 'हे प्रभु में घर जा रही हूं, किन्तु तुम चिरकाल मेरे ही पास निवास करना, ऐसा प्रार्थना करने के पश्चात वे दोनों रेलवे स्टेशन की ओर घोड़ागाड़ी में बैठकर चल दिये। उस समय श्री बांकेविहारी जी एक गोप बालक का रूप धारण कर घोड़ागाड़ी के पीछे आकर उनके साथ चल दिए। ऐसे ही अनेकों कारण से श्रीबाँकेबिहारी जी के झलक दर्शन अर्थात झांकी दर्शन होते हैं।