हिंदू धर्म में शादी के लिए लड़का-लड़की की कुंडली व गुण मिलाएं जाते हैं। मगर, इसके अलावा शादी के समय लड़का-लड़की का गौत्र भी देखा जाता है, जो हिंदू धर्म में काफी मायने रखता है। ऐसा माना जाता है कि लड़का-लड़की का एक गोत्र होना बहुत अशुभ होता है। यही वजह है कि शादी से पहले ये जरूर देखा जाता है कि दोनों का गोत्र अलग हो। चलिए आपको बताते हैं गोत्र क्यों जरूरी है और इसका महत्व क्या है...
क्या होता है गोत्र?
हिंदू धर्म में गोत्र (Gotra) ऐसा जरिया है, जिससे पता चलता हैं कि आप कौन-से वंश से ताल्लुक रखते हैं। अगर आपको गोत्र का अर्थ बताया जाए तो, इसका अर्थ है गौ, गोरक्षा और गोरक्षक। इससे पता चलता है कि आप किस मूलपिता, मूल परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बता दें कि भारत में 4 वर्ण होते हैं- ब्राहण, क्षत्रिय, वैश्य और दलित।
क्यों इस्तेमाल होता है गोत्र?
हिंदू धर्म में गोत्र का इस्तेमाल शादी व अन्य धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता है। शादी से पहले गोत्र इसलिए देखा जाता है, ताकि पता चल सके कि कहीं वो लड़का-लड़की एक ही वंश के तो नहीं है।
शादी के दौरान किसका गोत्र है जरूरी
शादी के दौरान लड़के व लड़की की मां, पिता और दोनों की दादी का गोत्र मिलाया जाता है। इन सभी के गोत्र दोनों ही परिवारों में अलग-अलग होने चाहिए। अगर इन तीनों गोत्र में से किसी एक का भी गोत्र मिलता है तो उसे भाई-बहन के रूप में देखा जाता है। क्योंकि वह एक ही वंशज के होते हैं। ऐसे में उनकी शादी नहीं हो सकती है।
क्यों अलग होना चाहिए गोत्र?
माना जाता है कि इससे पती-पत्नी के बीच समस्याएं और अनबन रहती है। वहीं, एक ही गोत्र में शादी करने के बाद उनके बच्चों को भी परेशानियां होती है।
क्या कहती है साइंस?
विज्ञान के अनुसार, एक ही गोत्र होने का सीधा असर शादीशुदा जोड़े के बच्चे पर पड़ता है। इससे बच्चे के विचार, पसंद, व्यवहार जैसी सभी चीजें एक जैसी ही होती है जो उसके माता-पिता में होती है। शोध के अनुसार, जब कोई एक ही वंशज में शादी करता है तो बच्चे को नकारात्मक सोच और जन्म से ही गंभीर रोग होने का खतरा रहता है।