दुनियाभर में हर साल 30 जून यानि आज आर्थ्रोग्रोपियोसिस जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इस दिन का मकसद लोगों को इस जन्मजात बीमारी के बारे में जागरूक करना है। शोध के मुताबिक, हर 3,000 जन्मे बच्चे में से 1 को यह बीमारी जरूर होती है। एमियोप्लासिया में रिपोर्ट किए गए मामलों का 43% केस शामिल है लेकिन बावजूद इसके ज्यादा लोग इस बीमारी को लेकर जागरूक नहीं है। चलिए आपको बताते हैं कि क्या है यह बीमारी और कैसे किया जाए इससे बचाव...
आर्थ्रोग्रोपियोसिस क्या है?
आर्थ्रोग्रोपियोसिस, जिसे आर्थ्रोग्रोपियोसिस मल्टीप्लेक्स कोन्जेनिटा (एएमसी) भी कहा जाता है, मांसपेशियों से जुड़ी बीमारी है। इस विकार के कारण बच्चे के हाथ, कलाई, कोहनी, कंधे, कूल्हे, पैर व घुटने प्रभावित होते हैं। वहीं, कई बार इस बीमारी के कारण जबड़े और रीढ़ सहित प्रभावित हो सकता है।
कैसे लगाया जाता है बीमारी का पता?
प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं का समय-समय पर अल्ट्रासाउंड किया जाता है। अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके ही जन्म के समय या गर्भाशय में आर्थ्रोग्रोपिस का पता लगाया जाता है। अगर गर्भाशय में भ्रूण का विकास सही तरीके से नहीं हो रहा तो उसे इस बीमारी की आशंका हो सकती है।
आर्थ्रोग्रोपियोसिस के कारण
. अगर महिलाओं का यूट्रस छोटा है तो इससे भ्रूण को विकसित होने में दिक्कत हो सकती है।
. एमनियोटिक द्रव की कमी या गर्भाशय का आसमान्य आकार।
. मांसपेशियों का असामान्य विकास
. मैटिरियल इंफैक्शन (maternal infection), ड्रग्स लेना, किसी बात का ट्रोमा या अधिक तनाव
. 30% मामलों में यह आनुवंशिक कारण से भी हो सकती है।
. टेंडन्स, हड्डियों, जोड़ों का असामान्य रूप से विकसित होना।
आर्थ्रोग्रोपियोसिस के लक्षण
. कलाई, हाथ, कोहनी और कंधे मुड़े होते हैं
. पूरे शरीर में मांसपेशियों कमजोर होना
. कुछ रोगियों में रीढ़ की वक्रता विकसित हो सकती है।
आर्थ्रोग्रोपियोसिस का निदान करना
इस बीमारी का कोई निदान नहीं है लेकिन कई मामलों में मांसपेशियों की बायोप्सी, इलेक्ट्रोमोग्राफी (ईएमजी), मायोपैथिक और स्ट्रेचिंग थेरेपी की जाती है, जिससे मांसपेशियों को सीधा करने की कोशिश की जाती है। वहीं, ऐसे मरीजों को खास देखभाल के साथ परिवार के साथ की जरूरत होती है।