दिवाली के बाद मनाए जाने वाला भाई दूज का त्यौहार राखी के त्यौहार की तरह ही अनोखा व महत्वपूर्ण है। ये त्यौहार भाई-बहन के रिश्ते और उनके बीच के प्यार को दर्शाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वीतीया तिथि को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से जाना जाता है। भाई दूज के मौके पर बहनें अपने भाईयों को तिलक लगाते हुए उनकी लंबी उम्र, अच्छी सेहत, सुख-समृद्धि और अच्छे भाग्य की कामना करती हैं। स्कंदपुराण में लिखा है कि इस दिन यमराज को प्रसन्न करने से पूजन करने वालों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही साथ भाई दूज के दिन बहनों के घर भोजन करने से भाई की उम्र बढ़ती है। तो चलिए जानते हैं भाई दूज पर्व की कथा व महत्व।
भाई दूज की कथा
शास्त्रों के अनुसार सूर्य देव और उनकी पत्नी संज्ञा के दो संताने थीं, एक पुत्र जिसका नाम यमराज था और दूसरी पुत्री जो यमुना थी। संज्ञा सूर्य का तेज सहन नहीं कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति को निर्माण करके अपने पुत्र-पुत्री को उसे सौंपकर वहां से चल जाती हैं। यमराज और यमुना दोनों भाई-बहन एक दूसरे से बहुत स्नेह करते थे। वे अपने भाई यम से बार-बार आग्रह करती कि वह उसके घर आयें और भोजन करें। अपने कार्य में व्यस्त रहने के कारण यमराज बहन यमुना के घर नहीं जा पाते। इसके बाद जब कार्तिक शुक्ल का दिन आया, तब यमुना ने उन्हें फिर से भोजन के लिए आमंत्रित किया और वचनबद्ध कर दिया। फिर यमराज सोचने लगे कि मैं तो सबके प्राण हरने वाला हूं भला मुझे कोई अपना घर नहीं बुलाना चाहता।
लेकिन, मेरी बहन भावना से मुझे पुकार रही है, उसकी आज्ञा का पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर जाने से पहले यमराज ने नर्क में रह रहे निवासियों को मुक्त कर दिया। जिसके बाद यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान करने के पश्चात पूजन करके व्यंजन परोसकर भाई को भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए स्वागत और आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया। यमुना ने कहा कि भैया, आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आया कीजिए। मेरी तरह ही जो कोई बहन इस दिन अपने भाई को आदर-सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण दिए और वहां से चले गए। इसी दिन से भाई दूज के पर्व की परंपरा चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज के दिन यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।
भाई दूज का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमुना ने अपने भाई यम से आदर-सत्कार स्वरूप वरदान प्राप्त किया था, जिस वजह से भाईदूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। भाई-बहन के साथ-साथ यमुना नदी में स्नान करने का बहुत महत्व है। इस दिन भाई-बहन हाथ पकड़कर यमुना में डुबकी लगाते हैं। शास्त्रों के हिसाब से, जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके, यम का पूजन करता है, उसे मृत्यु के पश्चात यमलोक में नहीं जाना पड़ता। और उसके साथ ही सूर्य की पुत्री यमुना समस्त कष्टों का निवारण करने वाली देवी स्वरूपा मानी जाती हैं। इस कारण यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करने और यमुना व यमराज की पूजा करने का विशेष महत्व है। बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी उम्र के लिए हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना भी करती हैं। पुराणों के अनुसार, इस दिन की गई पूजा से यमराज प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।