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दुनिया की पहली और इकलौती महिला फौज 'रानी झांसी रेजीमेंट', मुश्किल समय में भी पीछे नहीं हटाए थे कदम

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 19 Feb, 2021 12:45 PM
दुनिया की पहली और इकलौती महिला फौज 'रानी झांसी रेजीमेंट', मुश्किल समय में भी पीछे नहीं हटाए थे कदम

जब अंग्रजों से आजादी के लिए पूरा देश एकजुट होकर लड़ रहा था, तब महिलाओं की एक रेजिमेंट ने पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। सरोजनी नायडू, रानी लक्ष्मी बाई, कस्तूरबा गांधी और मतंगिनी हजरा जैसी जांबाज महिलाओं के किस्से आपने बहुत बार सुने होंगे लेकिन आज हम आपको नेता जी सुभाष चंद्र बोस द्वारा बनाई गई 'झांसी की रानी' रेजिमेंट के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने भारत को ब्रिटिश राज से आजाद करवाने के लिए कई योगदान दिए।

78 साल पहले नेतीजी सुभाष चन्द्र बोस ने बनाई थी रानी झांसी रेजिमेंट

जुलाई 1943 में नेतीजी सुभाष चन्द्र बोस ने 'झांसी की रानी' रेजिमेंट बनाई थी, जिसमें करीब 170 महिलाएं शामिल थी। झांसी की रानी रेजिमेंट भारतीय राष्ट्रीय सेना की महिला रेजिमेंट थी, जो 1942 में दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा गठित सशस्त्र बल, ब्रिटिश राज को औपनिवेशिक भारत में जापानी सहायता से उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से बनाई गई थी।

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पुरुषों की तरह हुई थी सख्त ट्रेनिंग

इन्हें भी पुरुषों की ही तरह कड़ी ट्रेनिंग दी गई थी, जिसमें उन्हें राइफल, रात्री मार्च, हैंड ग्रेनेड, बयोनेट चार्जिंग, सामरिक, मशीनगन, हथगोले जैसे हथियार चलाना सिखाया गया। कुछ महिलाओं को बर्मा में एक्सटेंसिव ट्रेनिंग भी मिली थी। इसमें मलेशिया के रबड़ एस्टेट्स में काम करने वाली भारतीय मूल महिलाओं ने हिस्सा लिया था, जिनकी शुरुआती ट्रेनिंग सिंगापुर में की गई। इसके बाद उन्हें रंगून और फिर बैंकॉक भेजा गया, जिसके बाद सेना की संख्या बढ़कर 300 हो गई। इसके बाद जह सिंगापुर में पासिंग आउट परेड हुई तो इस रेजिमेंट में महिलाओं की संख्या 500 हो गई थी। फिर 200 महिलाओं नर्सिंग का काम सिखाया गया, जिन्होंने चांद बीबी नर्सिंग कॉर्प्स बनाई।

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पहले लक्ष्मी सहगल ने किया रेजिमेंट को लीड

'झांसी की रानी' रेजिमेंट को लीड करने की जिम्मेदारी लक्ष्मी सहगल को सौंपा गया था, जिन्होंने खुद ऐसा करने की इच्छा जताई थी। नेताजी लक्ष्मी के बहादुरी से प्रभावित हुए और उन्हें कैप्टन बना दिया। वहीं, बर्मा में जंगलों में हुए जंग में भी लक्ष्मी ने बेहतीन शौर्य दिखाया था लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई। इसके बाद साल 1971 में उन्होंने कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) ज्वॉइन किया। 

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रेजिमेंट को लीड करने वाली दूसरी कैप्टन लक्ष्मी सहगल

उनके बाद 18 साल की उम्र में जानकी देवर ने रेजिमेंट की लीड किया। नेताजी की इंस्पिरेशनल स्पीच सुनकर तो उन्होंने अपने गहनें तक इंडियन नेशनल आर्मी के लिए डोनेट कर दिए थे। परिवार वालों ने इसका काफी विरोध किया लेकिन वह अपने रास्ते पर डटी रहीं। काफी बहस के बाद उनके पिता ने ना चाहते हुए भी जानकी को अनुमति दे दी। रेजिमेंट नियमों के मुताबिक, अविवाहित महिलाओं को पिता और वैवाहित महिलाओं को पति से आवेदन पत्र पर हस्ताक्षर करवाना आनिवार्य था।

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मुश्किल समय में भी पीछे नहीं हटाए कदम

रेजिमेंट सभी महिलाओं के घर लौटने की संभवना ना के बराबर थी लेकिन फिर भी उन्होंने इतना कठोर जीवन चुना। वह जानती थी कि उनकी भूमिका आजादी दिलाने में मददगार साबित हो सकती है। इस अखबार में जानकी ने लिखा था कि हम विनम्र और खूबसूरत भले ही हो लेकिन 'कमज़ोर' कहे जाने का मैं विरोध करती हूं। युद्ध के मुश्किल समय में भी महिलाओं ने अपने कदम पीछे नहीं लिए जबकि कई पुरुषों ने आत्म-समर्पण या मैदान छोड़ दिया था। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह भारतीय मूल की पहली ऐसा महिला थी, जिन्हें पद्म श्री से नवाजा गया था।

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वाकई, मुश्किल समय में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जिस तरह इन महिलाओं ने आजादी की लड़ाई लगी वो हर किसी के लिए प्ररेणा है।

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