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25 साल की प्रवीण ने संभाली सरपंची तो पिछड़ा गांव भी बन गया स्मार्ट सिटी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 13 Sep, 2020 05:28 PM
25 साल की प्रवीण ने संभाली सरपंची तो पिछड़ा गांव भी बन गया स्मार्ट सिटी

भारतीय महिलाएं ना सिर्फ ऊंचाईयों के शिखर पर हैं बल्कि पूरी दुनिया में देश का नाम भी रोशन कर रही हैं। वहीं भारत में कुछ ऐसी महिलाएं भी हैं जो अपनी मेहनत और सूझ-बूझ से देश का नक्शा भी बदल रही हैं। उन्हीं में से एक नाम है 25 साल की प्रवीण कौर, जिन्होंने एक गांव को ऐसी शक्ल सूरत दी कि वह किसी स्मार्ट सिटी से कम नहीं लगता।

मल्टीनेशनल नौकरी छोड़ गांव के नाम की डिग्री

दरअसल, हरियाणा, कैथल जिले का ककराला कुचियां गांव की युवा सरपंच प्रवीण कौर इंजीनियरिंग ग्रैजुएट है लेकिन उन्होंने किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करके लाखों कमाने की बजाए अपने गांव की सूरत बदलने की सोची। उन्हें अपने गांव से बेहद प्यार था लेकिन उन्हें गांव की सड़कें, स्कूल की हालात, पीने के पानी की खराब व्यवस्था देखकर काफी गुस्सा आता था। इसलिए उन्होंने ठान लिया कि वह पढ़-लिखकर गांव के लिए काम करेंगी।

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देश की पहली युवा सरपंच

बता दें कि प्रवीण ने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग डिग्री की है। लेकिन 2016 में डिग्री लेने के बाद वह गांव लौट आई और सरपंची का काम संभालते ही काम शुरू कर दिया। 2016 में जब वह सरपंच बनीं तब उनकी उम्र महज 21 साल थी। साथ ही वह देश की पहली युवा सरपंच भी हैं।

पिता के सपोर्ट से किया काम

गांव में कोई भी पढ़ा-लिखा नहीं है लेकिन नियम अनुसार कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही सरपंच का पद संभाल सकता है। तब गांव के लोगों ने मेरे पिता से बात की लेकिन मैंने मना कर दिया क्योंकि उम्र कम होने के कारण मुझे लगा मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभाल नहीं सकूंगी लेकिन पापा ने सपोर्ट किया तो मैं तैयार हो गई।

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हर गली में लगवाएं CCTV कैमरा

1200 लोगों के इस गांव की हर गली में CCTV कैमरा है, ताकि लड़कियों के साथ कोई गलत काम न कर दे। यही नहीं, सड़कों पर सोलर लाइट्स का इंतजाम करवाया। बच्चों के लिए स्मार्ट लाइब्रेरी भी बनवाई। खराब सड़के ठीक करवाईं। साथ ही महिलाओं को मीलों दूर पानी ना भरने जाना पड़े इसलिए जगह-जगह वाटर कूलर लगवाएं। उनके सरपंच बनने के बाद गांव की तस्वीर बिल्कुल बदल गई।

गांव का हर व्यक्ति बोलता है संस्कृत

इतना ही नहीं, अब इस गांव के बच्चे हिंदी के अलावा अंग्रेजी और संस्कृत भी बोलते हैं। इसकी शुरआत उन्होंने तब की जब महर्षि वाल्मीकि संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति गांव में आए और गांव को संस्कृत ग्राम बनाने की इच्छा रखी। इसके बाद गांव में संस्कृत की टीचर रखे गए और अब गांव का हर आदमी संस्कृत बोलता है।

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महिलाओं के लिए बनी प्रेरणा

उनके इस काम को देखकर लड़कियां काफी इंस्पारयर हुई और उनके माता-पिता ने भी बेटी की शिक्षा पर जोर दिया। वहीं गांव के स्कूल अब 10वीं से अपग्रेड होकर 12वीं तक हो गए हैं। इसके अलावा गांव की 4 महिलाएं भी उनके इस काम में हाथ बटांती हैं। प्रवीण ने महिलाओं के लिए एक कमेटी भी बनाई है, ताकि वह अपनी प्रॉबलम्स शेयर कर सकें।

पीएम नरेंद्र मोदी कर चुके हैं सम्मानित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके इस बेहतरीन काम के लिए 2017 "वीमेंस डे" पर उन्हें सम्मानित भी किया था। उन्होंने कहा... मैंने ये नहीं सोचा कि आगे क्या करूंगी लेकिन मैं हमेशा इसी तरह गांव के लिए काम करती रहूंगी।

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यह उनकी मेहनत व सूझ-बूझ का ही नतीजा है कि आज ककराला कुचियां गांव किसी स्मार्ट सिटी से कम नहीं लगता। प्रवीण के इस मेहनत, सोच और जज्बे को हम सलाम करते हैं।

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