शादी के बाद महिलाओं के एक्स्ट्रा-मैरिटल रिलेशन के कई कारण हो सकते हैं। जैसे कि पति द्वारा प्यार और सम्मान न मिलना, घर की जिम्मेदारियों में बंध कर रह जाना, या फिर शादी के शुरुआती समय में ही अपनी फैमिली प्लानिंग के बारे में कोई क्लियर थॉट न होना, जिससे की जल्दी पैरंट्स बनने के बाद कई जिम्मेदारियां घिर जाती हैं और अपनी लाइफ को एंजॉय नहीं कर पाते। यही आगे चलकर किसी नए रिश्ते की तलाश की वजह बन जाती है। जिस वजह से महिलाओं के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। वहीं हमारे समाज में महिलाओं के एक्स्ट्रा-मैरिटल रिलेशन एक अभिशाप की तरह है, सोसायटी में लोग उस महिला को कैरेक्टरलेस समझते है, और अकसर उन्हें घर में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
वहीं अब महिलाओं के एक्सट्रा-मैरिटल रिलेशन को लेकर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक बड़ा ही अहम फैसला सुनाया है। दरअसल, कोर्ट ने कहा कि एक महिला के एक्स्ट्रा-मैरिटल रिलेशन उसे बुरी मां के रूप में परिभाषित करने के लिए नहीं किया जा सकता है।
'महिला के एक्सट्रा-मैरिटल रिलेशन का मतलब यह नहीं कि वह एक अच्छी मां नहीं है'
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि महिला का एक्स्ट्रा-मैरिटल रिलेशन इस बात का आधार नहीं हो सकता कि वह एक अच्छी मां नहीं है और ना ही इस आधार पर उसे अपने बच्चे की कस्टडी से रोका जाना चाहिए।
कोर्ट ने मां को सौंपी बच्ची की कस्टडी-
बुधवार को हाई कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए साढ़े चार साल की बेटी की कस्टडी को एक मां को सौंप दी। कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक विवाद में किसी महिला के एक्सट्रा-मैरिटल रिलेशन की वजह से उसके बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का कोई आधार नहीं है। दरअसल, याचिका में महिला ने कहा था कि उनकी शादी 2013 में हुई थी। पति ऑस्ट्रेलियाई सीटिजन है और इसके चलते वह भी ऑस्ट्रेलिया चली गई थीं। दोनों के घर में जून, 2017 में एक बेटी का जन्म हुआ था। हालांकि कुछ वक्त बाद दोनों में अनबन शुरू हो गई और फिर अलग रहने लगे। महिला ने कहा कि जनवरी 2020 में हम भारत आए थे, लेकिन उसके बाद पति बेटी को लेकर वापस ऑस्ट्रेलिया चला गया, जिसकी कस्टडी मुझे चाहिए।
पति ने लगाए पत्नी पर एक्सट्रा-मैरिटल रिलेशनशिप के आरोप-
वहीं, जस्टिस अनूपिंदर सिंह ग्रेवाल ने याचिकाकर्ता महिला को बच्चे की कस्टडी देने की मंजूरी देते हुए कहा कि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता महिला के चरित्र पर आरोप लगाए हैं कि महिला का अपने किसी संबंधी के साथ विवाहेतर संबंध हैं। जस्टिस ग्रेवाल ने कहा कि याचिका में इस दावे के अलावा अदालत के समक्ष ऐसी कोई सामग्री या साक्ष्य पेश नहीं किया गया है, जो इसका समर्थन करता हो।
बिना किसी ठोस सबूत के महिलाओं को बदनाम किया जाता है- कोर्ट
जस्टिस ग्रेवाल ने कहा कि पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं पर लांक्षण लगाना आम बात है। इससे भी बड़ी बात यह है कि बिना किसी ठोस बुनियाद पर महिलाओं को बदनाम किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ यह की महिला का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है या हो सकता है, के आधार पर यह सिद्ध नहीं किया जा सकता है कि वह बुरी मां है। इसलिए उसे बच्चे की कस्टडी से भी वंचित नहीं किया जा सकता।
बच्चे को मां का प्यार, देखभाल और स्नेह की जरूरत होती है-कोर्ट
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई महिला एक्स्ट्रा-मैरिटल रिलेशनशिप में है तो भी उसे लेकर यह नहीं कहा जा सकता कि वह एक अच्छी मां नहीं है। यह तर्क बच्चे की कस्टडी उसे न देने का आधार नहीं हो सकता। जज ने अपने आदेश में कहा कि हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 के सेक्शन 6 के मुताबिक एक महिला ही 5 साल की उम्र तक अपने बच्चे की प्राकृतिक गार्जियन होती है। जज ने कहा कि इस उम्र में बच्चों को प्यार, देखभाल और अनुराग की जरूरत होती है। किशोरावस्था में किसी भी बच्चे के लिए मां का सहयोग बेहद जरूरी होता है।