कोरोना वायरस के मामले थमने की बजाए तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना वायरस से बचने के लिए लोगों को घर पर रहने, सोशल डिस्टेंसिंग और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए हेल्दी डाइट लेने की सलाह दी जा रही है। क्योंकि अभी तक कोरोना की कोई दवा या वैक्सीन नहीं बना है इसलिए इसे ही फिलहाल सबसे बड़ा हथियार माना जाता है। हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि हर्ड इम्यूनिटी से भी कोरोना को खत्म किया जा सकता है।
क्या है हर्ड इम्यूनिटी?
हर्ड इम्युनिटी का मतलब है, सामाजिक रोग प्रतिरोधक क्षमता। वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर कोई बीमारी किसी समूह के बड़े हिस्से में फैलती है तो इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता उस बीमारी से लड़ने में संक्रमित लोगों की मदद करती है। जो लोग बीमारी से लड़कर पूरी तरह ठीक हो जाते हैं वो उस बीमारी से ‘इम्यून’ हो जाते हैं यानी उनमें प्रतिरक्षात्मक गुण विकसित हो जाते हैं, जो कोरोना के खिलाफ स्थायी इलाज के तौर पर काम करेगी। इसे ही हर्ड इम्युनिटी कहा जा रहा है।
लोगों को घरों से निकलना होगा बाहर
बता दें कि इसके लिए लोगों को घरों से बाहर निकलना होगा और कोरोना के संपर्क में आना होगा। ब्रिटेन की प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनोमिक्स एंड पॉलिसी (CDDEP) के विशेषज्ञों का मानना है कि जब समाज का एक बड़ा हिस्सा कोरोना से संक्रमित हो जाएगा तो फिर कोरोना वायरस संक्रमण के लिए किसी नए शरीर को नहीं खोज पाएगा क्योंकि पहले से ही संक्रमण मौजूद है।
ऐसी स्थिति में संक्रमित शरीर उस वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की कोशिश करना शुरू कर देगा। एक बार जब बड़े पैमाने पर रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी, तो फिर ऐसे लोगों के जरिए कोरोना का टीका या एंडीबॉडीज बनाने की कोशिश की जा सकती है।
इलाज का पुराना तरीका है हर्ड इम्युनिटी
हर्ड इम्युनिटी इलाज का एक पुराना तरीका है, जिसमें या तो बड़ी आबादी को वैक्सीन दी जाती है, जिससे उसके शरीर में एंटीबॉडीज बन जाती हैं। चेचक, खसरा और पोलियो के साथ के दौरान भी यही तरीका अपनाया गया था। दुनिया भर में लोगों को इसकी वैक्सीन दी गई और ये रोग अब लगभग खत्म हो गए या किसी को होता भी है।
कैसे करती है काम
अगर किसी बीमारी का टीका ही नहीं है जैसे कि कोरोना, तो फिर बड़ी आबादी को बीमारी से संक्रमित किया जाता है। इसमें कोरोना पॉजिटिव लोग संक्रमण फैलाने के लिए नहीं मिलेंगे क्योंकि उनके आस-पास के लोग भी उसी बीमारी से संक्रमित होंगे। ऐसे में शरीर में खुद से एंटीबॉडीज बनने की शुरुआत हो जाएगी और कुछ दिन में शरीर उस वायरस से लड़ने के लिए तैयार हो जाएगा, जिसके बाद वायरस नाकाम हो सकता है।
उदाहरण के लिए अगर जनसंख्या का 80 फीसद हिस्सा वायरस से इम्यून हो जाता है तो हर 5 में से 4 लोग संक्रमण के बावजूद भी बीमार नहीं पड़ेंगे। इससे असुरक्षित लोगों तक वायरस के फैलने का डर कम हो जाएगा।
कितने लोगों का संक्रमित होना जरूरी
एक सीमा के बाद दूसरे लोगों में वायरस के फैलने की गति भी रुक जाती है लेकिन इस प्रक्रिया में समय लगता है। अनुमान के मुताबिक, किसी समुदाय में कोरोना के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी तभी विकसित हो सकती है जब 60 फीसद आबादी को कोरोना के संपर्क में आए हो और इम्यून हो गए हो।
कितनी सुरक्षित है यह प्रक्रिया
ब्रिटेन के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार पैट्रिक वैलेंस ने कहा, अगर ब्रिटेन की 60 फीसदी आबादी को कोरोना से संक्रमित कर दिया जाए तो फिर वहां पर लोगों के शरीर में कोरोना के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी और ब्रिटेन से कोरोना खत्म हो जाएगा। हालांकि ब्रिटेन में अब भी इस प्रकिया पर काम शुरू नहीं हो पाया है क्योंकि इसमें खतरा ज्यादा है।