अगर कुछ कर दिखाने की चाह हो तो कोई भी मुश्किल आसान लगती है। कुछ ऐसी ही है कहानी हिमा दास की, जिन्होनें अपनी कड़ी मेहनत से ना सिर्फ अपने मां-बाप का ही नहीं बल्कि देश का भी नाम रौशन किया। देश के विभिन्न अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में पांच स्वर्ण पदक कर देश का नाम रौशन करने वाली धावक हिमा दास की कहानी पर आईए डालते हैं एक नज़र।
बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था हिमा का जन्म
हिमा का जन्म 9 जनवरी 2000 को असम के नगाँव के एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। इनके माता पिता का नाम जोमाली और रोनजीत दास है। उनके पिता एक किसान थे जिनके पास मात्र 2 बीघा खेती-बाड़ी करने लायक जमीन है जिसमें वो अनाज सब्जी उगाकर परिवार का भी पेट पालते थे और बाज़ार में बेचकर घर का खर्च चलाते थे। घर में कुल मिलाकर 16 सदस्य रहते है जिसमें हिमा के 5 भाई-बहन है। हिमा का बचपन से ही खेलो के प्रति लगाव था जिस कारण उनका पढ़ाई में कभी मन नहीं लगता था।
लड़को के साथ खेलती थी फुटबॉल
हिमा का बचपन से ही फुटबॉल के प्रति लगाव था और यहीं सपना भी जिसके कारण वो अपने गांव और ज़िले के आस पास होने वाले छोटे-मोटे फ़ुटबॉल मैच लड़को के साथ खेल लेती थी। फ़ुटबॉल खेलते-खेलते उनका दौड़ में स्टैमिना अच्छा हो गया था। बस उनकी यहीं प्रतिभा ‘जवाहर नवोदय विद्यालय’ के शिक्षक शम्स-उल-हक़ ने पहचान ली और उन्हें एक धावक बनने की सलाह दी और उन्हीं की सलाह पर हिमा ने एक धावक के रूप में अपना भविष्य बनाने की ठान ली। लेकिन इसमें उनको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहली बात तो यह की जिस जगह पर हिमा ट्रेनींग करती थी वहां पर रनिंग ट्रैक की कोई सुविधा नहीं थी, जिसके चलते उनको फ़ुटबॉल के मैदान में ही दौड़ने की प्रैक्टिस करनी पड़ती थी। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण वो अपने पुराने जोड़ी जूते में अभ्यास करती थी।
निपोन दास ने पहचानी हिमा की प्रतिभा
गाँव में कई-कई दिन तक बाढ़ का पानी भर जाता था जिससे उनकी प्रैक्टिस रुक जाती थी। वर्ष 2017 में गुवाहाटी में ‘असम युवा कल्याण मंत्रालय’ के द्वारा आयोजित कंपटीशन में उनकी मुलाकात अपने कोच निपोन दास से हुई जहाँ उन्होंने 100 और 200 मीटर की रेस में हिस्सा लिया और सस्ते जूतों के साथ दौड़ते हुए प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। बस यहीं से कोच निपोन ने उनकी इस प्रतिभा को और निखारने की सोच ली। इसके बाद कोच निपोन उनके घर पहुँचे और उनके परिवार से बात करके अपने खर्चे पर हिमा को गुवाहाटी में ट्रेनिंग देने लगे।
कोच निपोन दास ने शुरू में हिमा को 200 मीटर रेस में भाग लेने के लिए ट्रेनिंग देते थे जो बाद में उन्होंने बढ़ाकर 400 मीटर की कर दी। हिमा ने बैंकॉक में हुई एशियाई यूथ चैंपियनशिप की 200 मीटर रेस में 7 वा स्थान प्राप्त किया था। इसके बाद 18 वर्ष की आयुं में ऑस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी भारत की ओर से हिस्सा लिया था और 400 मीटर के फाइनल में 6 वा स्थान प्राप्त किया ।
5 स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन
कॉमनवेल्थ गेम्स के बाद उन्होंने फ़िनलैंड में हुए वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप ट्रैक कॉम्पिटिशन में हिस्सा लिया था और अंडर-20 चैंपियनशिप की 400 मीटर की रेस मात्र 51.46 सेकेंड में पूरी करके प्रथम स्थान और स्वर्ण पदक भी जीता। इसके बाद उन्होंने इंडोशिया के जकार्ता मे हुए एशियन गेम्स मे 2 गोल्ड मैडल और 1 सिल्वर मेडल जीता और फिर वर्ष 2019 में चेक रिपब्लिक मे हुए अंतराष्ट्रीय टूर्नामेंट में लगातार 5 स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया। उनको राष्ट्रपति द्वारा भारत के लिए खेलो में जीते गये पदको के लिए अर्जुन अवार्ड समेत कई अवार्ड भी मिले है।