वैसे तो हमारे देश में कोई भी महिला अपनी मर्जी से 24 हफ्ते तक abortion करवा सकती हैं, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद अजीब मामला आया था, जिसमें एक विवाहित गर्भवती महिला को 26 वें हफ्ते में abortion करवाना था। हालांकि कोर्ट ने सोमवार (16 अक्टूबर) को महिला की गर्भपात की इजाजत देने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भ्रूण में कोई विसंगति नहीं देखी गई। प्रेग्नेंसी को 24 हफ्ते से ज्यादा हो गए हैं, इसलिए लीगली गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती है। वहीं कोर्ट ने ये भी कहा कि महिला का गर्भ 26 हफ्ते और 5 दिन का हो गया गै। इस मामले में महिला को तत्काल कोई खतरा नहीं है और ये भ्रूण में विसंगति का मामला नहीं है।
दरअसल, बीते शुक्रवार को जब मामले की सुनवाई हुई थी तो चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इस मामले में एम्स मेडिकल बोर्ड को आदेश दिया था कि वह गर्भ में पहल रहे बच्चे पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर रिपोर्ट दाखिल करें। महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि वह लैक्टेशनल एमेनोरिया नामक डिसऑर्डर और डिप्रेशन से जूझ रही हैं और आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। इसलिए वो तीसरे बच्चे पालने के काबिल नहीं हैं।
दो जजों की पीठ में असहमति के बाद चीफ जस्टिस के किया फैसला
बता दें इससे पहले ये मामला 2 जजों की पीठ के पास था। 11 अक्टूबर को हुई सुनवाई में पीठ ने खंडित फैसला सुनाया। एक जस्टिस ने गर्भपात की अनुमति देने में अनिच्छा प्रकट की। उनका कहना था कि कौन सी अदालत कहेगी कि 'एक भ्रूण की दिल की धड़कनों को रोका जाए'। उन्होंने कहा कि वह महिला को गर्भपात की इजाजत नहीं दे सकती हैं। वहीं दूसरे जस्टिस का कहना था कि महिला के फैसले का सम्मना होना चाहिए। 2 दोनों की असहमति के बाद ये केस चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष प्रस्तुत करने का फैसला किया गया, जिसमें केंद्र ने महिला को गर्भपात की इजाजत दी थी। आज सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले पर सुनवाई हुई।