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यह है भारत की पहली महिला फिजिशियन, बेटे की मौत के बाद लिया था डॉक्टर बनने का प्रण

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 01 Jul, 2024 01:37 PM
यह है भारत की पहली महिला फिजिशियन, बेटे की मौत के बाद लिया था डॉक्टर बनने का प्रण

 डॉक्टरों को हमारे समाज में भगवान समान माना जाता है। क्योंकि वह अपनी परवाह ना कर पूरी निष्ठा से मरीजों का इलाज करते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमने कारोना काल में देखा था। हर साल 1 जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है. यह दिन डॉक्टर्स को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। आज हम इस खास दिन पर उस शख्स से मिलाने जा रहे हैं जिन्होंने देश की पहली महिला डॉक्टर बन मिसाल कायम कर दी थी।

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नौ साल की उम्र में हो गया था विवाह

पुणे शहर में जन्मी आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होनें डॉक्टरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्टरी की डिग्री हासिल करना अपने आप में एक मिसाल है। उनका विवाह नौ साल आयु में उनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से हो गया था। जब 14 साल की उम्र में वे मां बनीं और उनकी एकमात्र संतान की मृत्‍यु 10 दिनों में ही गई तो उन्‍हें बहुत बड़ा आघात लगा। अपनी संतान को खो देने के बाद उन्‍होंने यह प्रण किया कि वह एक दिन डॉक्‍टर बनेंगी और ऐसी असमय मौत को रोकने का प्रयास करेंगी।

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बेटे की मौत के बाद लिया डॉक्टर बनने का फैसला

आनंदीबाई के पति गोपालराव ने भी उनको भरपूर सहयोग दिया और उनकी हौसला अफजाई की। आनंदीबाई जोशी का व्‍यक्तित्‍व महिलाओं के लिए प्रेरणास्‍त्रोत है। हालांकि उस समय समाज में काफी आलोचना हुई थी कि एक शादीशुदा हिंदू स्‍त्री विदेश (पेनिसिल्‍वेनिया) जाकर डॉक्‍टरी की पढ़ाई करे। लेकिन आनंदीबाई एक दृढ़निश्‍चयी महिला थीं और उन्‍होंने आलोचनाओं की तनिक भी परवाह नहीं की। यही वजह है कि उन्‍हें पहली भारतीय महिला डॉक्‍टर होने का गौरव प्राप्‍त हुआ। 

 

डिग्री पूरी करने के बाद हो गई मौत

डिग्री पूरी करने के बाद जब आनंदीबाई भारत वापस लौटीं तो उनका स्‍वास्‍थ्‍य बिगड़ने लगा और बाईस वर्ष की आयु में ही उनकी मृत्‍यु हो गई। यह सच है कि आनंदीबाई ने जिस उद्देश्‍य से डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी, उसमें वे पूरी तरह सफल नहीं हो पाईंं, परन्तु उन्‍होंने समाज में वह स्थान प्राप्त किया जो आज भी एक मिसाल है। 1888 में, अमेरिकी नारीवादी लेखक कैरोलिन वेल्स हीली डैल ने आनंदीबाई की जीवनी लिखी थी। डॉल आनंदीबाई से परिचित थी और उसकी बहुत प्रशंसा करती थी।

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राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस का इतिहास


इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. बीसी रॉय को सम्मान देना है। असल में, वे एक महान डॉक्टर तो थे ही साथ ही उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान दिया था। इसके साथ ही वे पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उनका जन्म 1 जुलाई 1882 में हुआ था और 1962 में इसी दिन को उन्होंने आखिरी सांस ली थी। ऐसे में उनकी जन्मदिन और पुण्यतिथि दोनों एक ही दिन होने पर उनके सम्मान के तौर पर 1 जुलाई को हर साल 'डॉकर्ट्स डे' के नाम से मनाया जाने लगा। 

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