नारी डेस्क: बच्चों को भी अपने विचार रखने और अपने तरीके से जिंदगी को जीने की आजादी देनी चाहिए। इनकी भावानाओं को सम्मान देने के लिए भी आज कल पेरेंट्स जेलीफिश पेरेंटिंग पर काफी भरोसा कर रहे हैं। इस पेरेंटिंग स्टाइल में माता-पिता बच्चों के लिए अधिक बाउंड्रीज नहीं बनाते और नियम भी कम रखते हैं। इसका नाम "जेलीफिश" इसीलिए दिया गया है क्योंकि जेलीफिश का शरीर नरम होता है, और इसी तरह, इस पेरेंटिंग में नियमों की "मजबूती" नहीं होती, बल्कि लचीलापन अधिक होता है।
जेलीफिश पेरेंटिंग की विशेषताएं
अत्यधिक लचीलापन: इस प्रकार की पैरेंटिंग में माता-पिता बच्चों को ढेर सारी आजादी देते हैं और बहुत कम सख्ती बरतते हैं। नियम-कायदे बेहद ढीले होते हैं या बिल्कुल नहीं होते।
अत्यधिक सहानुभूति और दयालुता: माता-पिता बच्चों की हर इच्छा और भावनात्मक स्थिति को प्राथमिकता देते हैं। वे बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं और उन्हें हर चीज़ में सहारा देते हैं।
कम अनुशासन: जेलीफिश पेरेंटिंग में अनुशासन की कमी होती है। बच्चे जब गलतियां करते हैं, तब माता-पिता सख्त होकर उन्हें सही रास्ते पर लाने के बजाय भावनात्मक समर्थन देना चुनते हैं।
अवास्तविक सीमाएं: माता-पिता अक्सर स्पष्ट सीमाएं या नियम तय नहीं करते, जिससे बच्चे अपनी सीमाओं को नहीं समझ पाते। इससे बच्चों में अनुशासनहीनता और निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो सकती है।
बच्चों को क्या मिलता है लाभ
भावनात्मक सुरक्षा: बच्चों को माता-पिता की ओर से अत्यधिक भावनात्मक समर्थन मिलता है, जिससे वे खुद को सुरक्षित और स्वीकृत महसूस करते हैं। उनकी भावनाओं को समझा जाता है और उन्हें अधिक आत्मविश्वास मिलता है।
संबंधों में घनिष्ठता: माता-पिता और बच्चों के बीच मजबूत संबंध स्थापित होते हैं, क्योंकि माता-पिता बच्चों की भावनाओं का आदर करते हैं और उनकी भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करते हैं।
स्वतंत्रता की भावना: बच्चे अधिक स्वतंत्र महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें अपनी इच्छाओं और जरूरतों के हिसाब से निर्णय लेने का मौका मिलता है। इससे बच्चों में रचनात्मकता और आत्मनिर्भरता बढ़ सकती है।
जेलीफिश पेरेंटिंग के नुकसान
अनुशासन की कमी: क्योंकि माता-पिता अनुशासन पर कम ध्यान देते हैं, बच्चों में अनुशासन और जिम्मेदारी की भावना विकसित नहीं हो पाती। वे अपने व्यवहार के नतीजों को नहीं समझते।
निर्णय लेने की कमजोर क्षमता: अधिक लचीलेपन और सीमाओं की कमी के कारण बच्चे सही और गलत के बीच अंतर करने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं, जिससे उनकी निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
अनुचित स्वतंत्रता: बच्चों को अगर सीमाओं का एहसास नहीं होता, तो वे गलत व्यवहार करने लगते हैं। इससे भविष्य में वे सामाजिक नियमों का पालन करने में परेशानी महसूस कर सकते हैं।
जेलीफिश पेरेंटिंग का चलन कहां से शुरू हुआ?
यह पेरेंटिंग स्टाइल खासतौर पर पश्चिमी देशों में देखा गया है, जहां पारंपरिक सख्त पेरेंटिंग के मुकाबले बच्चों की भावनात्मक जरूरतों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। 20वीं शताब्दी के अंत और 21वीं शताब्दी की शुरुआत में, खासकर अमेरिका और यूरोप में, इस तरह की पेरेंटिंग का चलन बढ़ा, जहां माता-पिता बच्चों की भावनाओं और व्यक्तिगत निर्णयों को प्राथमिकता देने लगे। इस समय लोगों ने देखा कि बच्चों को कठोर अनुशासन के बजाय भावनात्मक सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण है।