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आंखों ने छोड़ा हाथ, हौसलों ने दिया साथ...मिलिए देश की पहली नेत्रहीन अफसर बिटिया से

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 06 Jan, 2022 11:52 AM
आंखों ने छोड़ा हाथ, हौसलों ने दिया साथ...मिलिए देश की पहली नेत्रहीन अफसर बिटिया से

'वही जिन्दगी में बड़ी सफलता को पाता है, जो अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बनाता है' ... कभी-कभी हमारे लिए अपनी ही ताकत और कमजोरी को पहचान पाना बेहद कठिन हो जाता है, ऐसे में हमारा रास्ता बेहद कठिन हो जाता है। IAS प्रांजल पाटिल का रास्ता भी कठिन था लेकिन उन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया और आज वह लाखों लोगों के लिए मिसाल बन गई है। 


एक साल में खो दी दोनों आंखें 

2017 में दूसरे प्रयास में यूपीएससी एग्जाम (UPSC Exam) पास कर आईएएस अफसर बनने वाली  प्रांजल पाटिल दुनिया देख तो नहीं सकती लेकिन इसके बावजूद अपनी हिम्‍मत को हारने नहीं दिया और उनकी  कुछ करने की लगन ने ही उन्हे इस मुकाम पर पहुंचा दिया। महाराष्ट्र के उल्हासनगर की रहने वाली  प्रांजल के साथ बचपन में एक हादसा हुआ, जिसमें उनकी एक आंख खराब हो गई और एक साल बाद ही दूसरी आंख ने भी उनका साथ छोड़ दिया। 

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पहली बार में हासिल किए 773वां रैंक

आंखों  की रोशनी चले जाने के बाद भी प्रांजल ने अपने सपनों को पंख दिए और वह देश की पहली नेत्रहीन अफसर बिटिया बन गई। उन्‍होंने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773वां रैंक हासिल किया ।  प्रांजल ने मुबंई के दादर स्थित श्रीमति कमला मेहता स्कूल से पढ़ाई की है। यह स्कूल प्रांजल जैसे खास बच्चों के लिए था। 

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मन ही मन ठान ली आईएएस बनने की 

इस अफसर बिटिया ने चंदाबाई कॉलेज से आर्ट्स में 12वीं की, जिसमें प्रांजल के 85 फीसदी अंक आए। बीए की पढ़ाई के लिए उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज का रुख किया। पढ़ाई के दौरान प्रांजल ने पहली बार  यूपीएससी के बारे में एक लेख पढ़ा। इसके बाद उन्होंने  मन ही मन आईएएस बनने की ठान ली। बीए करने के बाद वह दिल्ली पहुंचीं और जेएनयू से एमए किया। 

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 दोबारा 124 वीं रैंक किए हासिल 

एमफिल इन टेक्नोलॉजी की डिग्री हासिल करने के बाद प्रांजल पाटिल ने एक बड़ा सॉफ्टवेयर JAWS बनाया, जो नेत्रहीन और दृष्टिबाधितों को स्क्रीन पर टेक्स्ट टू स्पीच आउटपुट के साथ एक रिफ्रेशेबल ब्रेल डिसप्ले के साथ स्क्रीन पढ़ने की सुविधा देता है। वैसे ताे  प्रांजल ने पहली बार में  यूपीएससी की परीक्षा क्लियर कर ली थी लेकिन वह रैंक से संतुष्ट नहीं थी, दोबारा 124 वीं रैंक के साथ परीक्षा पास कर अपने सपने को पूरा किया। 
 

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