सड़क दुर्घटना या कोई भी हादसा सिर्फ शरीर के अंग ही बल्कि हौंसला व हिम्मत भी छीन लेता है। शरीर का कोई अंग खो जाने के बाद ना सिर्फ जिंदगी मुश्किल हो जाती है बल्कि हिम्मत भी टूट जाती है। लेकिन डॉक्टर मारिया बीजू विकलांग होकर भी कई लोगों के लिए मिसाल बन चुकी हैं। दुर्घटना के बाद पैर खो जाने पर भी उन्होंने अपनी मुश्किले के आगे घुटनें नहीं टेके बल्कि विकलांगता को हराकर आज वह सफलता के उस मुकाम पर हैं, जहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं। चलिए आपको बताते हैं उनकी प्रेरणास्त्रोत कहानी...
एक दुर्घटना में खोएं पैर
केरल की रहने वाली मारिया बीजू जब 25 साल की थी तब वह एक दुर्घटना का शिकार हो गई। एक्सीडेंट के कारण उनके शरीर के 70% हिस्से को लकवा मार गया था और सीने से नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था। कॉफी देर हॉस्पिटल में रहने के बाद भी उनके पैर ठीक ना हो सके लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
... लेकिन नहीं हारी हिम्मत
उन्होंने खुद को व्हीलचेयर तक सीमित रखने की बजाए पढ़ाई का रास्ता अपना और अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति व संघर्ष से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। मेहनत और लगन के बल पर वह आज एक डॉक्टर बनकर समाज की सेवा में जुटी हुई हैं।
अब डॉक्टर बन कर रही समाज सेवा
वह कहती हैं कि आगे बढ़ना मेरे लिए काफी मुश्किल था लेकिन मैं किसी भी कीमत पर रूकना नहीं चाहती थी। उनके इस इच्छाशक्ति और हौंसले को देखते हुए उनका परिवार व कॉलेज भी मदद के लिए आगे आए। उन्होंने राइटर की मदद से परीक्षा दी। हालांकि आगे उन्होंने खुद से लिखने की कोशिश भी जारी रखी और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।
उनकी यह कहानी हर किसी को यही सीख देती है कि कैसे अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहें। पैरालाइसिस अवस्था में भी वह कमजोर नहीं पड़ी और ना ही हिम्मत खोई।