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बुलंद हौंसलों की उड़ानः हादसों ने सपने तोड़े लेकिन हिम्मत नहीं, कमी ही बन गई ताकत

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 05 Mar, 2021 12:19 PM
बुलंद हौंसलों की उड़ानः हादसों ने सपने तोड़े लेकिन हिम्मत नहीं, कमी ही बन गई ताकत

दुनियाभर में हर साल 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण को बढावा देना है। दुनियाभर के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं की उप्लब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। महिला दिवस के मौके पर हम आपके साथ कुछ ऐसी मिसालें शेयर करेंगे जिन्होंने अपनी कमी को ही अपनी ताकत बनाया और बुलंद हौंसलों की उड़ान भरी। 

सुधा चंद्रन की इंस्पायरिंग लाइफस्टोरी

बॉलीवुड और टीवी इंडस्ट्री का जाना-माना नाम है सुधा चंद्रन आपने कई फिल्मों व टीवी सीरियल्स में उन्हें देखा होगा लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंंने कड़ी मेहनत की और अपनी हिम्मत, कड़ी मेहनत और लग्न के बलबूते पर सुधा चंद्रन ने अपनी पहचान बनाईं।

केरल के मिडल क्लास फेमिली में जन्मी सुधा बचपन से ही डांस की शौकीन थी।मात्र 3 साल की छोटी सी उम्र में उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य सीखना शुरू कर दिया था। 5 साल की उम्र से लेकर 16 साल की उम्र तक उन्होंने 75 से अधिक स्टेज शो देकर भरतनाट्यम की उम्दा कलाकार के रूप में शोहरत हासिल कर ली थी। इस नृत्य कला के लिए अनेक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके थे लेकिन उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जो सुधा की जिंदगी को पूरी तरह पलट गया। सुधा महज 16 साल की थी जब वह मद्रास से तमिलनाडू माता-पिता के साथ सफर कर रही थी जब वह एक भयानक सड़क हादसे की शिकार हो गई। इस हादसे में उनके दोनों पैर जख्मी हो गए। उनका दाहिना पैर गैंगरीन के चलते काटना पड़ा। यह समय सुधा के लिए काफी कठिनाइयों भरा था लेकिन परिवार के सहयोग और सुधा की हिम्मत ने उन्हें संभाला।

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सुधा को अच्छा नहीं लगता था जब लोग उन्हें विक्लांगता से जुड़े अप्रिय सवाल पूछते थे। नृत्य प्रेमी अब चलने फिरने को भी लाचार हो गई थी यहीं से उन्होंने आगे बढ़ने का फैसला लिया। वह जयपुर के डॉक्टर से मिली जिनसे मिलने के बाद सुधा को सपने पूरे करने की उम्मीद की रोशनी दिखाई दी। प्रोस्थेटिक लेग की मदद से उनकी जिंदगी दोबारा पटरी पर आई। 2 साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने नृत्य स्टेज पर फिर वापिसी की। कृत्रिम पैर से प्रदर्शन करते देख लोगों की प्रतिक्रिया बेहद प्रेरणादायी थी। धीरे-धीरे लोग उन्हें जानने लगे।

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इस प्रोस्थेटिक लेग के साथ उन्होंने भारत व विदेश में कई परफॉर्मेंस दी। यहीं से उन्हें आगे फिल्मी दुनिया में करियर बनाने का अवसर मिला। साल 1984 में अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत तेलेगु फिल्म मयूरी से की थी। मयूरी सुधा की ही जीवनी पर आधारित फिल्म थी। बाद में यह फिल्म नाचे म्यूरी हिंदी में बनी। इस फिल्म के लिए सुधा को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। सुधा ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देगा। वर्तमान में भी वह इंडसट्री में सक्रिय है। सुधा चंद्रन ने अपनी विकलांगता को कमजोरी नहीं बनने दिया।

अरुणिमा सिन्हा

अरूणिमा सिन्हा, भारत से राष्ट्रीय स्तर की पूर्व वॉलीबाल खिलाड़ी और एवरेस्ट शिखर पर चढ़ने वाली पहली भारतीय दिव्यांग महिला हैं। अपराधियों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दिए जाने के कारण एक पैर गंवा चुकने के बावजूद अरूणिमा ने गजब के जीवन का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया। माउंट एवरेस्ट, माउंट किलिमंजारो (तंजानिया), माउंट एल्ब्रस (रूस), माउंट कोसीसुको (ऑस्ट्रेलिया), माउंट मॉन्काग्गुआ (दक्षिण अमेरिका), कार्सटेंस पिरामिड (इंडोनेशिया) पर चढ़ाई करने वाली वह दुनिया की पहली विकलांग माउंट वुमेन है। इस उपलब्धि के लिए भारत सरकार द्वारा उन्हें साल 2015 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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लुटेरों ने चैन के लिए चलती ट्रेन में दिया धक्का

हाल ही में केबीसी कर्मवीर स्पैशल एपिसोड में भी अरुणिमा नजर आईं थी। उनकी कहानी सुनकर हर किसी की आंखें नम हो गई। वह इंटरव्यू देकर लौट रही थी कि कुछ लुटेरों ने चैन खींचने के प्रयास में उन्हें चलती ट्रैन से बाहर फैंक दिया। इस हादसे में उनका पैर कट गया। ट्रेन दुर्घटना से पूर्व उन्होंने कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में राज्य की वॉलीबाल और फुटबॉल टीमों में प्रतिनिधित्व किया है।

एसिड सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल

एसिड सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल आज अनेकों महिलाओं की प्रेरणा स्त्रोत बनी हुई हैं। 15 साल की उम्र में लक्ष्मी का सिंगर बनने का सपना उस समय चूर-चूर हो गया जब एक शख्स ने उनपर तेजाबी हमला कर दिया। इस हादसे ने लक्ष्मी के जीवन को बदल कर रख दिया। इस हादसे से बाहर निकलने में लक्ष्मी को काफी समय लगा लेकिन उन्होंने खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया और नए सपने और नई सोच से वापिसी की।

साल 2006 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से एसिड बैन करने की मांग की। कई केंपेन चलाए ताकि एसिड की ब्रिकी पर रोक लगाई जा सके। उन्होंने सहयोगी आलोक दीक्षित और आशीष शुक्ला के साथ मिलकर स्टॉप सेल एसिड अभियान चलाया जिसके तहत 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने नियम लागू किया। नियमानुसार तहत, 18 साल से कम उम्र का व्यक्ति एसिड नहीं खरीद सकता है। वहीं एसिड खरीदने के लिए हर व्यक्ति को अपना पहचान पत्र देना होगा।

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लक्ष्मी ऐसे ही पीड़ितों की मदद के लिए 'छांव फाउंडेशन' नाम की एनजीओ चला रही हैं। उनके सराहनीय कार्यों के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। साल 2014 में लक्ष्मी को अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला मिशेल ओबामा ने इंटरनेशनल वुमेन ऑफ करेज अवॉर्ड से सम्मानित किया। उसी साल लक्ष्मी एनडीटीवी इंडियन ऑफ द ईयर भी बनीं। फिल्म छपाक लक्ष्मी अग्रवाल की जीवनी पर आधारित हैं जिसमें एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण लक्ष्मी के किरदार को निभाती नजर आई थी।

2019 में, लक्ष्मी के अभियान स्टॉप एसिड सेल के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय, पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय और यूनिसेफ द्वारा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। 

पैरा-बैडमिन्टन खिलाड़ी मानसी जोशी

भारत की पैरा-बैडमिन्टन खिलाड़ी और विकलांगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली मानसी को अक्तूबर 2020 में टाइम मैगज़ीन ने ‘नेक्स्ट जेनरेशन लीडर 2020’ की सूची शामिल किया और अपने एशिया कवर पर उनकी तस्वीर भी छापी थी जिससे ऐसा सम्मान पाने वाली भारत की पहली ऐथलीट और विश्व की पहली पैरा-ऐथलीट बन गईं। बार्बी बनाने वाली कंपनी ने  ‘इंटरनैश्नल डे ऑफ द गर्ल चाइल्ड’ के दिन मानसी के सम्मान में और लड़कियों को प्रोत्साहित करने की मंशा से उनके जैसी दिखने वाली (वन ऑफ ए काइंड) बार्बी डॉल बनाई।

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गुजरात के राजकोट में जन्मी मानसी ने  इलेक्ट्रॉनिक्स में स्नातक डिग्री के.जे. सोमाया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से की। शुरु से ही उनकी बैडमिंटन में खूब रुचि थी।। पिता ने ही उनको 6 साल की उम्र में ही इस खेल से परिचित करवाया था। पढ़ाई के साथ साथ उन्होंने बैडमिंटन भी जारी रखा। वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर थी इसलिए वे एटॉस इंडिया के साथ बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करने लगीं लेकिन एक सड़क दुर्घटना ने मानसी की जिंदगी बदल दी। 50 दिन लगातार अस्पताल के बिस्तर पर रहने वाली मानसी को जानकारी हुई कि वह हादसे में अपनी एक टांग खो चुकी हैं लेकिन अपने हौंसले की बदौलत उन्होंने अपनी फिटनेस के लिए योग, मेडिटेशन और बैडमिन्टन की मदद ली। सपनों को जिंदा रखने के लिए मानसी ने बैंडमिंटन की ओर रुख करने का फैसला लिया।कड़ी मेहनत कर मानसी साल 2014 में प्रोफेशनल खिलाड़ी बनीं और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के बाद स्पेन में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में पहली बार हिस्सा लिया।

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साल 2015 में उन्होंने इंग्लैंड में हुई पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप में मिक्‍स्ड डबल्स का रजत पदक हासिल किया। साल 2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में एशियाई पैरा गेम्स में मानसी ने भारत के लिए कांस्य पदक जीता। 2018 में ही उन्होंने बैडमिंटन के जादूगर पुलेला गोपीचंद की हैदराबाद स्थित अकादमी में प्रशिक्षण लेना शुरू किया। साल 2019 में मानसी उस समय सुर्खियों में छा गई जब उन्होंने स्विट्जरलैंड में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। भारत के लिए अब तक मानसी पैरा ओलंपिक्स में 12 पदक जीत चुकी है। एक इंटरव्यू में मानसी ने बताया कि कैसे वो गोल्ड मेडल जीतने के लिए मेहनत करती थीं। एक पैर नहीं था लेकिन इसके बावजूद वह दिन में 3 प्रैक्टिस सेशन में हिस्सा लेती थीं। मानसी ने अपनी फिटनेस पर काम किया। कठिन परिश्रम से मानसी की मसल्स मजबूत हुई और हफ्ते में 6 जिम सेशन ने उन्हें एक चैंपियन खिलाड़ी बना दिया।

 

वंदना डालिया

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