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क्या आपके बच्चे को भी लग गई है स्मार्टफोन की लत तो ध्यान दें

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 19 Mar, 2021 03:36 PM
क्या आपके बच्चे को भी लग गई है स्मार्टफोन की लत तो ध्यान दें

क्या आपका बच्चा भी मोबाइल पर गेम्स या वीडियो देखे बिना खाना नहीं खात तो जरा सतर्क हो जाए क्योंकि यह आदत आपके बच्चे के स्वास्थ के लिए सही नहीं है... हमारे रोजमर्रा के जरूरी कामों को स्मार्टफोन्स ने बहुत आसान तो कर दिया है लेकिन कही ना कहीं इन सुविधाओं से हमारा लाइफस्टाइल भी बिगड़ता जा रहा है जिसके जिम्मेदारी हम स्वयं ही है। मोबाइल, गैजेट्स व टैक्नोलॉजी के अन्य उपकरणों का इस्तेमाल अगर एक संतुलन में किया जाए तो बेहतर है लेकिन बच्चे हो या बड़े, भारत के लोग तेजी से इस लत की चपेट में आ रहे हैं।

1800 घंटे मोबाइल को दे रहे बच्चे

साइबर मीडिया रिसर्च के एक सर्वे के मुताबिक, हर भारतीय साल के 1800 घंटे मोबाइल को दे रहा है। हर 5 में से 4 लोगों के लिए मोबाइल वो आखिरी चीज है जिसे वह बिस्तर पर जाने से पहले देखते हैं और यहीं लोग सुबह उठकर भी सबसे पहले फोन देखते है। 75 फीसदी लोगों ने इस बात को माना कि युवा अवस्था में ही उनके पास स्मार्टफोन आ गया था, जबकि 41 प्रतिशत बच्चों के हाथ में हाईस्कूल पास करने से पहले ही मोबाइल फोन थमा दिया गया था।

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विकास में डाल रहा बाधा

मोबाइल का बढ़ता इस्तेमाल बच्चों के विकास को प्रभावित कर रहा है। बच्चों में मोटापा बढ़ने, वजन तेजी से गिरने, कुपोषण, आंखों की कमजोरी जैसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। बाल रोग विशेषज्ञ के अनुसार, खाना खाते हुए फोन देखने और गेम्स खेलने की लत की वजह से मोटापा, कुपोषण,अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD (एकाग्रता की कमी) और स्लीप डिसॉर्डर जैसी बीमारियां भी बच्चों को घेर रही हैं।

5% बच्चे इस लत के शिकार

अध्ययनों के अनुसार, यह एक मानसिक विकार और दीर्घकालिक स्थिति है। विश्व मे लगभग 3 से 5% बच्चे इससे पीड़ित है। भारत में लगभग 1.6 प्रतिशत से 12.2 प्रतिशत तक बच्चों में एडीएचडी की समस्या पाई जाती है। ध्यान की कमी और अत्यधिक सक्रियता की बीमारी को एडीएचडी कहा जाता है। यह समस्या उन परिवार के बच्चों में रहती हैं जहां माहौल तनाव भरा रहता है, जहां बच्चों पर पढ़ाई करने का दबाव अधिक बनाया जाता है या फिर बच्चे किसी एक कार्य की ओर अधिक सक्रियता दिखाते हैं जैसे मोबाइल का लगातार इस्तेमाल।

1. मोबाइल स्क्रीन अडिक्शन में महसूस नहीं होती भूख

बहुत से पेरेंट्स बच्चों को खाना खिलाते वक्त हाथ में मोबाइल पकड़ा देते हैं ताकि वह आराम से चुपचाप खाना खाते रहे हैं लेकिन बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि 'स्क्रीन अडिक्शन' के चलते बच्चों में भूख लगने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है। जब बच्चे मोबाइल पर फोक्स करते हैं तो उनके अंदर भूख की इच्छा ही जन्म नहीं लेती। इसी वजह से वह या तो कम खाते हैं या ज्यादा खाते हैं। इसी लिए कुपोषण व मोटापा, दोनों ही तरह की समस्याएं अब बच्चों के विकास में देखने को मिल रही है। बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, 'मोबाइल स्क्रीन अडिक्शन, बच्चे की भूख और संतुष्टि को समझने की क्षमता खत्म कर देती हैं।'

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2. स्लीप डिसऑर्डर .. अधूरी नींद रोक रही विकास

बहुत सी मांएं बच्चों को सुलाने के लिए मोबाइल फोन के जरिए गेम्स या कहानियां सुनाती हैं या बच्चों को फोन में व्यस्त रखती हैं।  ऐसा कभी कभार हो तो ठीक है लेकिन रोजाना ऐसा करना बच्चे की सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है। सिर्फ छोटे ही बच्चे नहीं बल्कि टीनएज बच्चों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। ज्यादातर यंगस्टर्स सोशल मीडिया एप्प पर व्यस्त रहते हैं लेकिन रात को अधिक देर तक फोन का इस्तेमाल नींद में खलल डालता है जो कि दिमागी विकास को भी प्रभावित करती है। अपर्याप्त नींद से स्लीप डिसऑर्डर का खतरा बना रहता है जिससे नींद नहीं आती।

3. मोबाइल की ब्लू लाइट से हॉर्मोन्स प्रभावित

मोबाइल व अन्य सभी इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों से एक ब्लू लाइट निकलती है जो सिर्फ आंखों ही नहीं बल्कि स्किन और हार्मोंनल विकास को भी प्रभावित करती है। जो बच्चे रात को ज्यादा देर तक जागते है या मोबाइल देखते हैं और सुबह देर तक सोते हैं। ऐसे बच्चों का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। दरअसल, इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों से निकलती ब्लू लाइट, नैचरल स्लीप हॉर्मोन मेलाटोनिन पर दबाव डालती है। इंसानी विकास के ज्यादातर हॉर्मोन्स रात को ज्यादा ऐक्टिव रहते हैं। लेकिन जब बच्चा लेट या कम सोता है तो हार्मोंन्स के विकास में बाधा आता है। आंखों के लिए तो यह हानिकारक है ही क्योंकि इससे आंखे लगातार तेज नीली रोशनी सहती हैं नतीजा कम उम्र में चश्मा।

4. फिजिकल एक्टिविटी पर बुरा प्रभाव

मोबाइल स्क्रीन एडिक्टशन बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है। इसका फिजिकल एक्टिविटी पर भी इसका नेगेटिव प्रभाव पड़ रहा है। बच्चे मोबाइल व अन्य गेजेट्स के साथ घंटों एक ही जगह पर बैठे रहते हैं। खान-पान, खेल कूद हर चीज को यह चीजें प्रभावित कर रही है। ऐसे बच्चों की दिनचर्या में फिजिकल एक्टिविटी लगभग ना के बराबर होती है।

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हालांकि डॉक्टर्स कहते हैं कि बच्चे के विकास के लिए फिजिकल एक्टिविटी और बाहर खेलना बहुत जरूरी है। बाल रोग विशेषज्ञ कहते हैं, ' बच्चे का दिमागी विकास जिंदगी के पहले कुछ सालों में हो रहा होता है। फिजिकल एक्टिविटी और बाहर खेलने से दिमागी विकास की गति बढ़ती है। बाहर खेलने  से बच्चों के न्यूरल नेटवर्क को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें हेल्दी वयस्क बनने में मदद करते हैं लेकिन जिन बच्चों को बचपन में ही मोबाइल-गैजेट्स की आदत पड़ जाती है, वह विकास की इन प्रक्रियाओं में पिछड़ जाते हैं जिस वजह से बच्चों को हाइपरऐक्टिविटी और अटेंशन डेफिसिट जैसी बीमारियां होती हैं।

5. बच्चे के बिहेवियर से जुड़ी परेशानियां

मोबाइल फोन का अधिक इस्तेमाल करने वाले कुपोषण, मोटापे जैसे समस्याओं के अलावा बिहेवियर संबंधी दिक्कतों का भी सामना करते हैं। कई रिसर्च में यह बात साबित हुई है कि खाते समय मोबाइल इस्तेमाल करने से उनमें मोटापे, नखरे, चिड़चिड़ेपन जैसी समस्याएं बढ़ती हैं। अधिक इस्तेमाल एकाग्रता और विकास को बाधित करता है, जिससे कि बच्चों में हाइपरऐक्टिव बिहेवियर, डिप्रेशन, तनाव आदि की प्रवृति बढ़ती है।

6. विकसित नहीं हो पातीं पांचों इंद्रियां

बच्चे के पहले पांच साल पांचों इंद्रियों को विकसित करने की जरूरत होती है जिसमें देखना, सुनना, महसूस करना, सूंघना और स्वाद लेना शामिल है। लेकिन आजकल बेहद छोटी उम्र में ही बच्चों को मोबाइल इलैक्ट्रॉनिक गैजेट्स से रुबरू करवा दिया जाता है। लेकिन यह उपकरण बच्चों की देखने और सुनने वाली इंद्रियों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसका असर कम और ज्यादा अवधि दोनों का हो सकता है। बच्चे के सोने के वक्त में कमी होना और चिड़चिड़ापन आना जबकि लंबे समय की अवधि के प्रभाव में बच्चों में व्यवहार से जुड़ी दिक्कतें आती है जैसे वह फोक्स नहीं पाते, स्कूल में परफॉर्मेस खराब होती है।

7. सामाजिक नहीं हो पाते ऐसे बच्चे

इलैक्ट्रॉनिक गैजेट्स और मोबाइल की लत की वजह से बच्चों में सामाजिक गतिविधियों में हिस्सा लेने की प्रवृत्ति भी कम हो जाती है। ऐसे बच्चे ज्यादातर अकेलेपन ही रहते हैं और दूसरों से बातचीत या कम घुलते मिलते हैं। छोटी उम्र में ही डिजिटल मीडिया से जुड़ जाने की वजह से इन बच्चों को बड़े होने के बाद कम्यूनिकेशन स्किल्स से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। 5 साल से छोटे बच्चों को एक घंटे ही मोबाइल देना चाहिए। अगर बच्चे 5 साल से बड़े हैं, तो उन्हें ज्यादा से ज्यादा दो घंटे फोन देना चाहिए।

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कैसे करें बच्चों को मोबाइल से दूर?

ऐसे बच्चों को काउंसलिंग के जरिए सामान्य लाइफ की ओऱ रुझान लाने की तरह ध्यान देना चाहिए पेरेंट्स जो भी नियम बनाए उसे सख्ती से लागू करें और खुद भी उन्हें फॉलो करें।

1. खाते हुए या सोते हुए बच्चे को मोबाइल फोन ना दें बल्कि इस समय उनसे बातचीत करें।  खाना खिलाने या कोई लालच देने के लिए कभी मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें।

2. मोबाइल, अऩ्य गैजेट्स और टीवी देखने का एक निश्चित समय तय करें।

3. बच्चों को स्टोरी टेलिंग, बोर्ड गेम्स, आउटडोर एक्टिविटी जैसे गतिविधियों में व्यस्त रखें।

4. रात के समय बच्चों को मोबाइल फोन का इस्तेमाल ना करने दें। बच्चा मोबाइल में किन प्रोग्रामों को फॉलो कर रहा है इस बात की जानकारी भी पैरेंट्स रखें।

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-वंदना डालिया

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