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बच्चों में नींद और भूख की कमी हो सकता है पांडा सिंड्रोम का संकेत

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 14 Sep, 2024 12:30 PM
बच्चों में नींद और भूख की कमी हो सकता है पांडा सिंड्रोम का संकेत

नारी डेस्क: बच्चों की सेहत पर ध्यान रखना हर माता-पिता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे कई दुर्लभ और गंभीर बीमारियों का सामना कर सकते हैं। इनमें से एक गंभीर स्थिति है पांडा सिंड्रोम (PANDAS), जो बच्चों में अचानक और अप्रत्याशित व्यवहारिक व मानसिक बदलावों का कारण बन सकता है। यह सिंड्रोम स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण के परिणामस्वरूप होता है और इसके लक्षण अक्सर आसानी से नज़रअंदाज़ किए जा सकते हैं। आज के इस लेख में, हम पांडा सिंड्रोम के लक्षण, इसके कारण, और इसे पहचानने के तरीके पर विस्तृत जानकारी साझा करेंगे। आइए जानते हैं कि इस सिंड्रोम को कैसे समझा जाए और अपने बच्चों की सेहत को बेहतर कैसे बनाए रखें। 

पांडा सिंड्रोम क्या है?

पांडा सिंड्रोम, जिसका पूरा नाम है ('Pediatric Autoimmune Neuropsychiatric Disorders Associated with Streptococcal Infections') एक ऑटोइम्यून विकार है। इस सिंड्रोम में, शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से मस्तिष्क के कुछ हिस्सों पर हमला करता है। इसका मुख्य कारण स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण होता है, जो गले में संक्रमण (स्टैफ इंफेक्शन) का परिणाम होता है। जब शरीर स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया से लड़ता है, तब कुछ एंटीबॉडी गलती से मस्तिष्क के बेसल गैन्ग्लिया क्षेत्र को नुकसान पहुंचाती हैं। इससे बच्चों के व्यवहार और मानसिक स्थिति में अचानक परिवर्तन आ सकता है।

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पांडा सिंड्रोम के लक्षण

पांडा सिंड्रोम के लक्षण अचानक और तेजी से प्रकट हो सकते हैं। सामान्यत: बच्चे जो इस सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं, वे पहले सामान्य दिखाई देते हैं, लेकिन स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण के बाद उनके व्यवहार में तेजी से बदलाव आ जाता है। यहाँ इसके प्रमुख लक्षण दिए गए हैं।

ओसीडी (Obsessive-Compulsive Disorder)

ओसीडी (Obsessive-Compulsive Disorder) बच्चों में अचानक जुनूनी विचारों (Obsessions) और विशेष प्रकार के व्यवहार (Compulsions) की आदत को बढ़ा सकता है। इस स्थिति में, बच्चे बार-बार हाथ धोने, गिनती करने, या किसी खास चीज के बारे में सोचने जैसे निरंतर और असामान्य कार्य करने लगते हैं। ये व्यवहार उन्हें मानसिक शांति और संतुलन पाने के लिए अनिवार्य लगते हैं, हालांकि वे खुद भी समझते हैं कि ये आदतें अतिरेक और असामान्य हैं।

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एंग्जाइटी और डर बढ़ना

बच्चों में एंग्जाइटी और डर का लेवल अचानक से बढ़ सकता है, जिससे वे किसी खास स्थिति से अत्यधिक डरने लगते हैं या अनजान चीजों को लेकर अनावश्यक चिंता करने लगते हैं। यह चिंता इतनी अधिक हो सकती है कि बच्चे सामान्य गतिविधियों में भाग लेने या सामाजिक रूप से सक्रिय रहने में कठिनाई महसूस कर सकते हैं। उनका डर और चिंता उनके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है।

मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ापन

बच्चों में मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ापन अचानक और बार-बार बदलाव के रूप में हो सकते हैं। कभी वे अचानक बहुत खुश और उत्साहित महसूस कर सकते हैं, और कुछ ही क्षणों में उनका मूड गुस्से और चिड़चिड़ेपन में बदल सकता है। यह अस्थिरता उनके व्यवहार और भावनात्मक स्थिति को प्रभावित कर सकती है, जिससे उनकी दिनचर्या और सामाजिक संबंध भी प्रभावित हो सकते हैं।

मांसपेशियों में झटके (Tics)

बच्चों में चेहरे, हाथ, या शरीर के अन्य हिस्सों में अनैच्छिक झटके या मरोड़ उत्पन्न हो सकते हैं। ये झटके शारीरिक और वोकल (आवाज़ से संबंधित) हो सकते हैं, जैसे बार-बार आंखें झपकाना या गले से आवाज़ निकालना। PANDAS से पीड़ित बच्चे अनिद्रा या नींद में परेशानियों का सामना कर सकते हैं। उन्हें सोने में कठिनाई हो सकती है या वे बार-बार जाग सकते हैं। इसके साथ ही बच्चों को ध्यान केंद्रित करने, पढ़ाई या अन्य कामों में मन लगाने में कठिनाई हो सकती है। यह ध्यान संबंधित समस्याओं के साथ-साथ सीखने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।

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पांडा सिंड्रोम के कारण

पांडा सिंड्रोम का प्रमुख कारण स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण है। हालांकि, इसके अलावा भी कुछ अन्य कारण और कारक हैं जो इस स्थिति को बढ़ा सकते हैं। ये शामिल हो सकते हैं कुछ बच्चे जिनमें परिवारिक इतिहास होता है, वे इस सिंड्रोम के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं। शरीर की इम्यून प्रतिक्रिया का असामान्य तरीके से काम करना भी इस सिंड्रोम का कारण हो सकता है।

बच्चों में नींद और भूख की कमी, साथ ही साथ अन्य व्यवहारिक और मानसिक समस्याए पांडा सिंड्रोम का संकेत हो सकती हैं। इस स्थिति को समझना और समय पर सही उपचार प्राप्त करना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि आपके बच्चे में इन लक्षणों में से कोई भी दिखाई दे, तो तुरंत चिकित्सा सलाह लेना चाहिए। विशेषज्ञों की सलाह और उचित उपचार से बच्चे की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है और उनका स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।

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