शिक्षा मंत्रालय ने स्कूली शिक्षा का नया राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा (एनसीएफ) तैयार किया है जिसके तहत अब बोर्ड परीक्षाएं साल में दो बार होंगी और छात्र-छात्राओं को इसमें सर्वश्रेष्ठ अंक बरकरार रखने का विकल्प होगा। नये पाठ्यचर्या ढांचे के अनुसार, कक्षा 11वीं और 12वीं के छात्र-छात्राओं को दो भाषाओं का अध्ययन करना होगा और इनमें से कम से कम एक भाषा भारतीय होनी चाहिए।
नयी शिक्षा नीति की गई तैयार
इसरो के पूर्व प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा तैयार एनसीएफ में कहा गया है कि स्कूल बोर्ड उचित समय में ‘मांग के अनुसार' परीक्षा की पेशकश करने की क्षमता विकसित करेंगे। मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, नयी शिक्षा नीति (एनईपी) के अनुसार नया पाठ्यचर्या ढांचा तैयार है और इसके आधार पर 2024 के शैक्षणिक सत्र के लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार की जाएंगी । इसमें कहा गया है कि कला एवं विज्ञान, पाठ्यक्रम संबंधी या पाठ्येत्तर गतिविधियों तथा व्यवसायिक एवं अकादमिक विषयों के बीच कोई सख्त विभाजन रेखा नहीं होनी चाहिए।
बच्चों को अपनी पसंद का विषय चुनने की आजादी
स्कूली स्तर पर ‘राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे' के दस्तावेज के अनुसार, कक्षा 11वीं और 12वीं में विषयों का चयन कला, विज्ञान, वाणिज्य 'स्ट्रीम' तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि छात्र-छात्राओं को अपनी पसंद का विषय चुनने की आजादी मिलेगी। इसमें कहा गया है कि नए पाठ्यचर्या ढांचे के तहत बोर्ड परीक्षाएं साल में दो बार होंगी और छात्र-छात्राओं को सर्वश्रेष्ठ अंक बरकरार रखने की इजाजत होगी। दस्तावेज में कहा गया है कि वर्तमान में जिस तरह से बोर्ड परीक्षाएं ली जाती हैं, उससे किसी एक दिन अपेक्षित प्रदर्शन नहीं करने से बोर्ड परीक्षा के परिणाम पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है । चूंकि ये परीक्षाएं साल में एक बार ली जाती हैं तो किसी एक दिन खराब प्रदर्शन करने वाले छात्र के पास कोई विकल्प नहीं बचता है। इसमें कहा गया है कि ऐसी परीक्षाएं बहुत अधिक मात्रा में तथ्यों संबंधी परीक्षा से संबंधित होती हैं और इसके कारण तनाव भी पैदा होता है।
बच्चों का बोझ किया जाएगा कम
एनसीएफ के अनुसार, ऐसे में बोर्ड परीक्षा संबंधी बदलाव की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि बोर्ड परीक्षा को पाठ्यक्रम के अनुरूप माध्यमिक स्तर पर क्षमताओं का मूल्यांकन करना चाहिए। ये परीक्षाएं छात्र के प्रदर्शन की वैध एवं विश्वसनीय तस्वीर प्रस्तुत करने वाली होनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि छात्रों पर बोर्ड परीक्षा के बोझ को कई कदमों के जरिये कम किया जा सकता है। इसमें पाठ्य सामग्री के बोझ को कम करना और आसान बनाना, तथ्यों पर जोर देने की बजाए क्षमताओं पर ध्यान देना शामिल है। दस्तावेज के अनुसार, इसमें बोर्ड परीक्षा वर्ष में कम से कम दो बार पेश करना शामिल है ताकि छात्रों को दूसरी बार परीक्षा देने और अपना प्रदर्शन बेहतर बनाने का विकल्प मिल सके ।
सेमेस्टर सिस्टम को अपनाने की सलाह
पाठ्यचर्या ढांचे के अनुसार, छात्र उस बोर्ड परीक्षा में उपस्थित हो सकता है जिसके लिए वह तैयार महसूस कर रहा हो। इस प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए एक समग्र परीक्षा सामग्री बैंक तैयार किया जा सकता है जिसका उपयोग उपयुक्त साफ्टवेयर के माध्यम से परीक्षा लेने में किया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि दीर्घकाल में सभी बोर्ड को सेमेस्टर या आवधिक प्रणाली को अपनाना चाहिए। दस्तावेज के अनुसार, छात्र इसमें से उस परीक्षा में उपस्थित हो सकते हैं जिसके लिए वे अपने को तैयार महसूस करेंगे। कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति के अनुसार, हाल के दशकों में भारत में यह दुर्भाग्यपूर्ण चलन पाया गया है कि 11वीं और 12वीं कक्षा को केवल उच्च शिक्षा में दाखिला हासिल करने के माध्यम के रूप में देखा जाता है। इसमें कहा गया है कि माध्यमिक स्कूली स्तर पर, खास तौर पर 11वीं और 12वीं कक्षा को उच्च शिक्षा में विभिन्न पाठ्यक्रमों में छात्रों के चयन के तंत्र के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए।
बच्चों के प्रदर्शन पर दिया जाएगा जोर
पाठ्यचर्या के अनुसार, व्यवसायिक शिक्षा, कला शिक्षा और शारीरिक शिक्षा एवं सेहत राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि इन मामलों में अधिकांश मूल्यांकन प्रदर्शन आधरित होना चाहिए और लिखित परीक्षा आधारित नहीं। इसमें कहा गया है कि ऐसी सिफारिश की जाती है कि सम्पूर्ण प्रमाणन में 75 प्रतिशत जोर प्रदर्शन आधारित मूल्यांकन पर दिया जाए और 25 प्रतिशत लिखित परीक्षा पर। दस्तावेज के अनुसार, बोर्डो को इसके लिए उच्च गुणवत्ता की प्रणाली तैयार करनी होगी और इसे लागू करना होगा जो स्थानीय रूप से (स्कूलों में) प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन करेंगे। विज्ञान एवं अन्य विषयों का मूल्यांकन प्रदर्शन आधारित अर्थात प्रयोग करने से जुड़ा होना चाहिए। विषय के प्रमाणन में इसका 20-25 प्रतिशत महत्व हो। इसके अनुसार, कक्षा 11 और 12 के छात्र-छात्राओं को दो भाषाओं का अध्ययन करना होगा और इनमें से कम से कम एक भाषा भारतीय होनी चाहिए।
अब बच्चों काे नहीं लगाना पड़ेगा रट्टा
नये पाठ्यचर्या ढांचे के अनुसार, बोर्ड परीक्षाएं महीनों की कोचिंग और रट्टा लगाने की क्षमता के मुकाबले छात्र-छात्राओं की समझ और दक्षता के स्तर का मूल्यांकन करेंगी। इसके तहत कक्षाओं में पाठ्य पुस्तकों को 'कवर' करने की मौजूदा प्रथा से बचा जाएगा और पाठ्य पुस्तकों की कीमतों में कमी लाई जाएगी। दस्तावेज के अनुसार, स्कूली शिक्षा पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे को राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिशों के अनुरूप चार स्तरों में विभाजित किया गया है। इसमें पहला ‘बुनियादी स्तर' है जिसमें 3 से 8 वर्ष आयु वर्ग के छात्र आयेंगे। दूसरा ‘तैयारी स्तर' है जिसमें 8 से 11 वर्ष आयु वर्ग के छात्र होंगे। तीसरा ‘मध्य स्तर' है जिसमें 11 से 14 वर्ष आयु वर्ग के छात्र होंगे तथा चौथा ‘माध्यमिक स्तर' है जिसमें 14 से 18 आयु वर्ग के छात्र होंगे।
सभी स्कूलों को तीन भाषाओं की पेशकश
9वीं एवं 10वीं कक्षा के छात्रों को पांच विषय पढ़ने होते हैं और एक विषय अतिरिक्त शामिल करने का विकल्प होता है। शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि कस्तूरीरंगन के मार्गदर्शन में संचालन समिति ने नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए पाठ्यचर्या तैयार की है और सरकार को सौंपा है तथा सरकार ने इसे राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) को सौंप दिया है। स्कूली शिक्षा के राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचा के अनुसार, 9वीं एवं 10वीं कक्षा के लिए सभी स्कूलों को तीन भाषाओं की पेशकश करने की जरूरत है और इसमें से कम से कम दो भारतीय भाषा होनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि तीन भाषाओं के साथ सात अन्य विषय छात्रों को पढ़ने होंगे जिनमें गणित, गणनात्मक सोच, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, कला शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, सेहत, व्यवसायिक शिक्षा और अंत: विषयक क्षेत्र शामिल हैं।