निसंतान दंपत्ति के लिए अब बच्चा गोद लेना पहले से और आसान हो जाएगा। सरकार बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया में बड़े बदलाव करने दा रही हैं जिससे अब बच्चों को गोद लेना और आसान हो जाएगा। दरअसल, बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया से जुड़ा जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) अमेंडमेंट बिल इसी सप्ताह राज्यसभा में पास हो गया।
क्या है जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015?
जानकारी के लिए बता दें कि साल 2012 में दिल्ली निर्भया गैंगरेप के मामले में एक अपराधी 18 साल से कम उम्र का था यानि की जुवेनाइल था। इस घिनौने काम के बावजूद वह जुवेनाइल होने की वजह से तीन साल बाद छूट गया, जबकि निर्भया के परिवार का आरोप था कि उसने ही सबसे ज्यादा बर्बरता की थी। इसके बाद मांग उठने लगी कि जघन्य अपराध के मामलों में जुवेनाइल पर भी वयस्कों की तरह केस चले।
इस केस की गंभीरता को देखते हुए साल 2015 में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट बनाया गया। इसमें जघन्य अपराध के मामलों में 16 से 18 साल के बीच के जुवेनाइल पर वयस्कों जैसे केस चलाने का प्रावधान शामिल किया गया। इस एक्ट ने 2000 के किशोर अपराध कानून और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम) 2000 की जगह ली।
इस एक्ट में दूसरा बड़ा बदलाव बच्चों के गोद लेना है
वहीं दूसरी तरफ, इस एक्ट में दूसरा बड़ा बदलाव बच्चों के गोद लेने से जुड़ा था। इसके बाद दुनियाभर में बच्चों को गोद लेने को लेकर जिस तरह के कानून हैं वैसे ही देश में भी लागू होंगे। पहले गोद लेने के लिए हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेन्स एक्ट (1956) और मुस्लिमों के लिए गार्डियंस ऑफ वार्ड एक्ट (1890) का चलन था। हालांकि, नए एक्ट ने पुराने कानूनों की जगह नहीं ली थी। इस एक्ट ने अनाथ, छोड़े गए बच्चों और किसी महामारी का शिकार हुए बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया को और आसान किया गया।
बिल में बदलाव का असर?
इस बिल में पहला बदलाव बच्चों के गोद लेने पर है और दूसरा बदलाव अपराधों से जुड़ा है जिसमें IPC में न्यूनतम सजा तय नहीं है। बता दें कि साल 2015 में पहली बार अपराधों को तीन कैटेगरी में बांटा गया जिनमें छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध शामिल किया गया।
वहीं बता दें कि बिल में बदलाव के बाद मामले तेजी से निपटेंगे साथ ही कर्मचारियों की जवाबदेही भी तय होगी। पहले और मौजूदा व्यवस्था में गोद लेने की प्रक्रिया कोर्ट के जरिए होती थी जिससे बच्चे को गोद लेने के लिए काफी समय लग जाता था लेकिन अब इस बदलाव के बाद कई अनाथ बच्चों का बहुत जल्द एडॉप्शन होगा।
इस बिल को बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में पेश किया
बिल को महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में पेश किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि ये बिल सभी जिलों के डीएम, कलेक्टर की शक्तियों और जिम्मेदारी को बढ़ाएगा। इससे ट्रायल की प्रक्रिया तेज होगी। साथ ही गोद लेने की प्रक्रिया भी तेज होगी।
क्यों किया गया बिल में बदलाव?
2020 में नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट (NCPCR) की रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में एक्ट आने के बाद भी 39% चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट्स CCIs रजिस्टर तक नहीं हैं। 29% में मैनेजमेंट में काफी गड़बड़ी थी। सर्वे में सिर्फ लड़कियों के लिए बने CCIs 20% से भी कम पाए गए। वहीं देश में एक भी CCI ऐसा नहीं है जो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के नियमों को 100 प्रतिशत पालन करता हो।
वहीं अब एक्ट में हुए बदलाव के बाद ऐसा नहीं हो सकेगा। अब कोई भी चाइल्ड होम बिना डीएम की मंजूरी के नहीं खोला जा सकेगा। इन सभी की मॉनिटरिंग का जिम्मा अब डीएम के पास होगा।