नारी डेस्क: लंगर में खाना पकाने से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रेस्तरां खोलने तक, सेलिब्रिटी शेफ रणवीर बरार कई लोगों के लिए प्रेरणा हैं। शेफ का कहना है कि आज हम ऐसे समाज में हैं जहां महिलाएं कमाने के लिए घर से बाहर निकलती हैं और पुरुष घर में खाना बनाते हैं। खाना पकाने में लिंग भेद की भावना खत्म हो गई है।
बदल रही है सोच
शेफ रणवीर ने हाल ही मे अपने एक इंटरव्यू में कहा- वह पुरानी बात हो गई है कि रसोई की शोभा सिर्फ महिलाओं से बढ़ती है। पहले समस्या यह थी कि पुरुष खाना बनाने के लिए घर से बाहर निकलते थे और महिलाएं घर में खाना बनाती थीं। अब पुरुष सिर्फ रेस्टोरेंट में ही नहीं बल्कि घर में भी खाना बना रहे हैं। उन्होंने कहा- मेरे YouTube चैनल के 55% सब्सक्राइबर पुरुष हैं, महिलाएं नहीं। तो इससे पता चलता है कि पुरुष घर पर खाना बनाना चाहते हैं।
खाना बनाने का हर किसी काे हक
रणवीर बरार ने कहा- ऐसी दुनिया में जहां आज महिलाएं लगभग हर पेशे में खुद को अभिव्यक्त करने के लिए बाहर हैं, खाना बनाना वाकई खुला है। मुझे लगता है कि हमें इस बहस को लिंग भेद रहित रखना चाहिए। यह पेशा लिंग भेद रहित है। जैसा कि फुटबॉल, क्रिकेट और दूसरे खेलों में हो रहा है, अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में खाना बनाना लिंग भेद रहित हो जाना चाहिए और इस बहस को खत्म कर देना चाहिए।
रसोई में महिलाओं के साथ पुरुषों की भागीदारी क्यों है जरूरी
घरेलू कार्यों में महिलाओं और पुरुषों की समान भागीदारी से समानता की भावना पैदा होती है। इससे यह संदेश जाता है कि घर के काम केवल महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं हैं, बल्कि दोनों का साझा दायित्व है। रसोई में एक साथ काम करने से आपसी सहयोग और समझ बेहतर होती है। इससे संबंधों में संतुलन और प्रेम बढ़ता है क्योंकि दोनों पार्टनर एक-दूसरे के काम की सराहना करते हैं।
आसानी से निपट जाता है काम
खाना बनाना एक महत्वपूर्ण जीवन कौशल है, जिसे हर व्यक्ति को आना चाहिए। यह न केवल अपने लिए बल्कि परिवार और दोस्तों के लिए भी उपयोगी होता है। पुरुषों के लिए यह एक ज़रूरी हुनर है जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है।अगर घरेलू कार्यों में केवल महिलाएं भाग लें, तो उनके ऊपर अत्यधिक दबाव और थकान हो सकती है। पुरुषों की भागीदारी से काम का बंटवारा होता है, जिससे सभी के पास अपने लिए अधिक समय और ऊर्जा बचती है।
बच्चों के लिए आदर्श उदाहरण
आजकल के व्यस्त जीवन में जहां दोनों पार्टनर कामकाजी होते हैं, वहां रसोई और घर के अन्य कामों में पुरुषों की भागीदारी आवश्यक हो जाती है। इससे घर के कार्य सुचारू रूप से चलते हैं और दोनों के बीच जिम्मेदारियों का संतुलन बना रहता है। यदि बच्चे देखते हैं कि उनके माता-पिता दोनों घरेलू कार्यों में समान रूप से भाग लेते हैं, तो उनके मन में भी बराबरी और समर्पण की भावना पैदा होती है। वे सीखते हैं कि घर के काम केवल किसी एक की जिम्मेदारी नहीं होते।