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Lockdown के दौरान बरती गई सावधानियों से अस्‍थमा के मरीजों में आई कमी: रिसर्च

  • Edited By Anu Malhotra,
  • Updated: 17 Jul, 2021 04:50 PM
Lockdown के दौरान बरती गई सावधानियों से अस्‍थमा के मरीजों में आई कमी: रिसर्च

दुनिया भर में कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान लोगों द्वारा बरती गई सावधानियों से अस्‍थमा मरीजों में कमी देखी गई। आपकों यह जानकर हैरानी होगी कि महामारी से पहले खासकर बच्चों में आस्थमा की बीमारी का आंकड़ा  60% से अधिक था लेकिन माहामारी के दौरान लगाए गए लाॅकडाउन की वजह से यह आंकड़ा कम होकर 50-60% हो गया। 

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जानकारी के मुताबिक, महामारी शुरू होने से पहले, भारत में 60% से अधिक बच्चों में श्वसन संबंधी बीमारी के लक्षणों के कारण उन्हें बाल रोग विशेषज्ञ के पास जाना पड़ता था,और जिसमें से अधिकतर बच्चे अस्थमा से पीड़ित थे। बाल रोग विशेषज्ञ के अनुसार, महामारी के शुरु होते ही बच्चों में अस्थमा की संख्या 50-60% हो गई।

विशेषज्ञ के अनुसार, बाल चिकित्सा अस्थमा के मामलों की संख्या में कमी वास्तव में एक स्वास्थ्य सुविधा के लिए एक वरदान के रूप में आई। वहीं एक अन्य बाल रोग विशेषज्ञ का कहना है कि लाकॅडाउन लगाए जाने की वजह से वायु गुणवत्ता में सुधार आया है जिससे आस्थमा और सांस संबंधी बीमारियों के नए मामलों में कमी आई। 

एक अध्ययन में विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन प्रतिबंध, इन-पर्सन कक्षाओं के लिए स्कूल बंद होने और सोशल डिस्टेंसिग ने बच्चों की शारीरिक गतिविधि को सीमित कर दिया है और पर्यावरणीय ट्रिगर्स के संपर्क में कमी आई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि लाॅकडाउन लगाए जाने पर वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत मोटर वाहनों की कम संख्या और उद्योगों के बंद होने पर वातावरण में सुधार हुआ, जिससे लोगों में श्वसन संबंधी बीमारियों में कमी देखी गई। 
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कोई शारीरिक स्कूल नहीं: विशेषज्ञ के अनुसार, महामारी के दौरान बच्चों में अस्थमा क्यों कम हुआ, इसका एक संभावित कारण यह है कि बच्चे स्कूल नहीं गए और महामारी के कारण घर पर ही रहे। एक वर्ष के दौरान औसतन एक बच्चे में दो से पांच श्वसन वायरल संक्रमण विकसित होते हैं और यह अस्थमा से पीड़ित बच्चों में तेज होने का कारण बन जाता है। तथ्य यह है कि बच्चों में अस्थमा की तीव्रता कम हो गई है, इसका कारण यह है कि  स्कूल से संबंधित श्वसन वायरल संक्रमण अस्थमा के बढ़ने का एक प्रमुख कारण था। इसी तरह के अवलोकन अन्य देशों में भी किए गए हैं।
 

हाथ की स्वच्छता, मास्क: मास्क पहनना अस्थमा के खिलाफ एक बहुत ही उपयोगी सुरक्षात्मक उपायहै। विशेषज्ञों ने कहा है कि महामारी खत्म होने के बाद भी जब वे स्कूल जाते हैं तो मास्क पहनना अस्थमा की पीड़ा और तीव्रता को कम करने का सबसे प्रभावी उपाय होगा। मास्क पहनने से न केवल SARS-Cov-2 से बचाव होता है, बल्कि अन्य श्वसन वायरस से भी बचाव होता है। विशेषज्ञों ने कहा है कि महामारी खत्म होने के बाद भी हमें हाथ की स्वच्छता के व्यवहार को जारी रखने की जरूरत है।


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अस्थमा का बोझ
अस्थमा बच्चों में सबसे आम पुरानी बीमारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, इसने 2019 में अनुमानित 262 मिलियन लोगों को प्रभावित किया और 4.61 लाख लोगों की मौत हुई। नवीनतम ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अनुमानित 3.4 करोड़ अस्थमा रोगी हैं, जिनमें से लगभग 25% बच्चे हैं। हालांकि भारत में अस्थमा के वैश्विक मामलों में 11% मामले हैं, लेकिन वैश्विक अस्थमा से होने वाली मौतों में यह 42% है।

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लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील के बाद अस्थमा के मामलों में दिखी वृद्धि
बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों में ढील के साथ सांस से संबंधी मामलों की संख्या में मामूली वृद्धि देखी गई है। इस पर पुणे के कोविड टास्क फोर्स के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ का कहना है कि आस्थमा जैसे मामलों में वृद्धि आमतौर पर मौसम और वायरल संक्रमण का बदलाव होना भी है। पिछले साल फूल लॉकडाउन था और इसलिए बहुत कम मामले सामने आए थे। लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील के साथ, कुछ सामाजिक संपर्क हुए हैं, खासकर जब बच्चे एक-दूसरे के साथ खेलते हैं और हल्के वायरल संक्रमण की चपेट में आते है तो उन्हें सांस से संबंधी दिक्कते होने लगती है। 
 

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