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Women's Day Special: किसी ने डॉक्टरी तो किसी ने इंजीनियरिंग में खोले महिलाओं के लिए दरवाजे

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 05 Mar, 2021 05:41 PM
Women's Day Special: किसी ने डॉक्टरी तो किसी ने इंजीनियरिंग में खोले महिलाओं के लिए दरवाजे

8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना ही इस दिन का मुख्य उद्देश्य है। इस साल महिला दिवस की थीम संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशंस) संगठन द्वारा “Women in leadership: Achieving an equal future in a COVID-19 world” चुना गया है। अब यह कोई पहली बार नहीं है कि महिला ने किसी क्षेत्र में अपना परचम लहराया हो। दुनिया ने वो समय भी देखा है जब महिलाओं को घर से बाहर जाने की भी अनुमति नहीं होती थी लेकिन कुछ महिलाओं ने तो ऐसी स्थिती में भी खुद को रोका नहीं और सफलता को पाया। महिला दिवस के मौके पर आज हम आपको कुछ ऐसी ही महिलाओं के बारे में बताएंगे जिन्होंने अन्य महिलाओं के लिए सफलता के दरवाजे खोले हैं। तो चलिए आपको इन जाबांज महिलाओं के बारे में बताते हैं।

भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदीबाई

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भारत की पहली महिला डॉक्टर थी आनंदीबाई । आनंदीबाई जब 9 साल की थीं तो उनकी शादी 20 साल बड़े गोपालराव से करवा दी गई। वह महज 14 साल की आयु में ही मां गई लेकिन एक मां के लिए वो दिन सबसे मुश्किल होता है जब उसकी औलाद उसकी आंखों के सामने दम तोड़ दे। आनंदीबाई के साथ भी ऐसा ही दुखद हादसा हुआ जब 10 दिन बाद ही उनके पुत्र की मृत्यु हो गई। बेटे की मौत का असर आनंदीबाई पर इतना गहरा हुआ कि इसके बाद उन्होंने यह ठान लिया कि वह डॉक्टर बनकर असमय होने वाली मौतों को रोकेंगी। इस काम में उनके पति ने भी उनका पूरा साथ दिया। डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए आनंदीबाई अमेरिका के पेनिसिल्वेनिया शहर गई और वहां से डिग्री लेकर वापिस भारत आ गई। भारत वापिस आने के बाद उन्हें कोल्हापुर, अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल में महिला वार्ड के चिकित्सक विभाग में नियुक्त किया गया। मगर, वह अपने सपने को आगे नहीं ले जा सकीं। जिसके बाद 1887 में सेहत बिगड़ने के कारण 22 साल की छोटी उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई।

भारत की पहली महिला इंजीनियर ललिता

अय्यालासोमयजुला ललिता यानि ए ललिता भारत की पहली महिला इंजीनियर थीं। ललिता तमिलनाडु की रहने वाली थी वह न सिर्फ देश की पहली महिला इंजीनियर थी बल्कि वह वो महिला भी थी जिसने महिलाओं के लिए शिक्षा के नए रास्ते खोले। ललिता बचपन से ही पढ़ाई में सबसे आगे थी और उनके पिता भी इंजीनियर थे इसी कारण से ललिता की रूचि इस लाइन में हुई। लेकिन वह दौर औरतों के लिए आसान नहीं था क्योंकि छोटी उम्र में ही लड़कियों की शादी करवा दी जाती थी और ललिता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। ललिता की शादी महज 15 साल की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई, शादी के बाद वह पढ़ीं लेकिन फिर 3 साल बाद उनके पति की मौत हो गई। जब ललिता के पति की मौत हुई तो उनकी गोद में तब 4 महीने की बच्ची थी। सास के साथ-साथ समाज भी ललिता को विधवा होने के ताने देता लेकिन वह हारी नहीं। 

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समाज से लड़कर और खिलाफ जाकर उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया।  हालांकि इन सब में ललिता के माता-पिता ने उनको पूरा सपोर्ट किया जिसके बाद उन्हें कॉलेज में दाखिला मिल गया। ए. ललिता न सिर्फ भारत की महिला इंजीनियर थी बल्कि वह कॉलेज में भी पहली महिला इंजीनियरिंग की स्टूडेंट थी। मुश्किलों से गुजर कर और अपनी बच्ची को संभालते हुए कुछ भी करके ललिता ने ग्रेजुएशन पास की। इसके बाद उन्होंने शिमला के सेंट्रल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन तो कुछ समय पिता के साथ काम किया। उन्होंने कोलकाता के एसोसिएटेड इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज में भी काम किया। साल 1964 में जब वह न्यूयॉर्क के ICWES (The International Conference of Women Engineers and Scientists) कार्यक्रम में गई तो वहां उन्हें पता चला कि वह भारत की पहली महिला इंजीनियर है तो उनका सिर गर्व से ऊंचा हो गया। 60 साल की उम्र में ए ललिता दुनिया को अलविदा कह गई।

भारत की पहली लेडी जासूस रजनी पंडित

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महाराष्ट्र में जन्मी रजनी पंडित देश की पहली महिला जासूस है। रजनी ने कभी नहीं सोचा था कि वह इस लाइन में आएंगी और नाम कमाएंगी। वह बाकी महिलाओं की तरह ही नौकरी करना चाहती थी लेकिन समय को तो कुछ और ही मंजूर था। जासूस बनने की सारी कहानी तब शुरू हुई जब वह कॉलेज में थी। पहली बार रजनी ने अपनी सहेली पर जासूस की थी इसके बाद रजनी को यही काम पसंद आने लगा और उन्होंने सोच लिया था कि वह इसी लाइन में आगे जाएंगी। हालांकि रजनी के पिता खुद  CID में थे लेकिन यह कभी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी जासूसी करे लेकिन रजनी का मां ने हमेशा से हौसला बढ़ाया। रजनी ने धीरे-धीरे खुद पर काम किया और रजनी इन्वेस्टिगेशन्स नाम की कंपनी बनाई। उस समय इस कंपनी के साथ सिर्फ 3 लोग जुड़े हुए थे लेकिन देखते ही देखते लोग बढ़ गए। बता दें कि रजनी अभी तक 80 हजार से ज्यादा केस सुलझा चुकी हैं। उन्हें कईं अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं। रजनी को 30 साल से कमय समय में ही 67 अवॉर्ड मिल चुके हैं। वहीं रजनी को राष्ट्रपति कोविंद से 'फर्स्ट लेडी डिटेक्टिव' का अवॉर्ड भी मिल चुका है। यह अवॉर्ड उन्हें महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से दिया गया।

भारत की पहली महिला पायलट सरला ठकराल

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भारत की महिलाओं ने तो आसमान तक जाकर अपना और अपने देश का नाम रोशन किया है। इसी का एक सबसे उदाहरण है भारत की पहली महिला पायलट सरला ठकराल। महज 21 साल की उम्र में सरल ठकराल ने 1936 में लाहौर हवाई अड्डे पर दो सीटों वाले जिप्सी मॉथ विमान जिप्सी मॉथ नामक विमान चलाया था। यह मान वाली बात इसलिए भी है क्योंकि तब उनकी 4 साल की बेटी भी थी। सरला दिल्ली में जन्मी थी और उन्होंने जोधपुर फ्लाइंग क्लब में विमान चलाने की ट्रेनिंग ली और बहुत कम समय में 1000 घंटे की फ्लाइट पूरी की। उन्हें ‘A’ लाइसेंस भी प्राप्त था और वह इस लाइसेंस को प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं थीं। साल 1939 में एक विमान दुर्घटना में उनके पति का देहांत हो गया, तब उनकी उम्र महज 24 साल थी। इस हादसे ने उनकी जिंदगी बदल दी। पति की मौत के कुछ समय बाद ही सरला ने कमर्शियल पायलट लाइसेंस (commercial pilot license ) के लिए अप्लाई किया लेकिन तब दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया। फ्लाइट क्लब बंद हो गया और फिर उन्हें अपनी ट्रेनिंग भी बीच में ही रोकनी पड़ी। सरला की जिंदगी तब उनके हिसाब से नहीं चल रही थी और परिवार का पेट पालने के लिए सरला लाहौर लौट आईं यहां उन्होंने मेयो स्कूल ऑफ आर्ट में एडमिशन लिया। विभाजन के बाद सरला दो बेटियो के साथ दिल्ली वापिस आ गई और वहां उनकी मुलाकात आर.पी. ठकराल से हुई, जिसके साथ उन्होंने 1948 में शादी की। दूसरी शादी के बाद सरला एक सफल उद्धमी और पेंटर बनीं। वह कपड़े और ज्वैलरी डिजाइन करती थी। 15 मार्च 2008 में उनकी मौत हो गई।

लुधियाना की बेटी शालिजा धामी देश की पहली महिला फ्लाइट कमांडर 

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शालिजा धामी पंजाब के लुधियाना शहर से शहीद करतार सिंह सराभा गांव से हैं। वह भारतीय वायुसेना बल की पहली महिला फ्लाइट कमांडर हैं।  शालिजा ने अपने नाम सिर्फ इस सफलता को नहीं बल्कि पिछले 15 साल से वह इंडियन एयरफोर्स में रहते हुए कईं इतिहास रच चुकी हैं। एयरफोर्सस में पहली महिला फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर होने के साथ  फ्लाइंग ब्रांच का परमानेंट कमीशन भी हासिल किया था। कहते हैं कि हमें जिस काम से प्यार हो अगर हम उससे धूर हो जाएं तो हमारा दिल दुखता है और हम किसी और हमारा किसी और काम में भी दिल नहीं लगता है। कुछ ऐसा ही हुआ था शालिजा के साथ जब 12वीं के बाद उनके पिता  इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन करवाने जा रहे थे तो वह रो पड़ीं थी सिर्फ इसलिए कि अब उनकी एनसीसी छूट जाएगी। शालिजा ने हिसार में ओपन ग्लाइडिंग टूर्नामेंट में स्पोट लैंडिंग में दूसरा स्थान हासिल किया तो उसके बाद कभी बी एनसीसी में पिछे मुड़ कर नही देखा। एक बार पढ़ाई के दौरान दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर शैलजा ने पैरा ग्लाइडिंग में मैडल हासिल किया था, उस समय गवर्नर ऑफ पंजाब ने उन्हें चाय पिलाकर शाबाशी दी थी। 

भारत की पहली महिला एस्ट्रोनॉट कल्पना चावला

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कल्पना चावला वो नाम जिसे याद कर आज भी हर एक भारतीय का सीना चौड़ा हो जाता है। कल्पना चाहे अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके किए गए काम और वो मेहनत आज भी हर एक नागरिक को याद है। कल्पना हरियाणा के करनाल जिले की थी। वह पहली भारतीय-अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री थी। हालांकि वह पढ़ाई लिखाई में इतनी अच्छी नहीं थी लेकिन वह बचपन से ही अंतरिक्ष में उड़ने के ख्वाब देखती थी। उन्होंने जहाजों के बारे में और गहराई से पढ़ने के लिए इंजीनियर की शिक्षा हासिल की। ग्रेजुएशन के बाद अमेरिका चली गईं और वहीं से उनके एस्ट्रोनॉट बनने का सफर शुरू हुआ। इसके बाद उन्होंने आगे Texas की पढ़ाई की। वहीं बहुत कम लोग यह जानते हैं कि कल्पना एस्ट्रोनॉट होने से पहले नासा में एक विशेष रिसर्च में वाइस प्रेसिडेंट थी। इसके बाद उन्हें एस्ट्रोनॉट्स  की कोर टीम में शामिल किया गया। वर्ष 1998 में कल्पना ने स्पेस के लिए जब अपनी पहली उड़ान भरी तो उन्हें भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री होने का खिताब दिया गया। हालांकि उनसे पहले भारत की ओर से वर्ष 1984 में राकेश शर्मा स्पेस जा चुके थे। साल 2000 में कल्पना अपनी दूसरी उड़ान के लिए निकली लेकिन यह उनकी आखिरी यात्रा साबित हुई। दूसरी उड़ान में उन्होंने 16 दिन अंतरिक्ष में बिताए थे लेकिन 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल पृथ्वी की कक्षा मे प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। इसके साथ यान में सवार 7 यात्री दुनिया को अलविदा कह गए, जिसमें कल्पना भी शामिल थीं। हादसे के बाद उनके शरीर के अवशेष टेक्सास शहर में मिले थे।

सच में आज यह महिलाएं हम सभी के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं। 

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