भगवान श्रीकृष्ण और राधा का भले ही मिलन ना हो सका लेकिन उनका प्रेम जग के लिए मिसाल बन गया। इस बात का सबूत है कि भारत के हर मंदिर और धार्मिल स्थल में भगवान श्रीकृष्ण के साथ राधा जी ही विराजती है। हालांकि कहीं-कहीं उनकी पत्नी रुक्मणी भी विराजती हैं लेकिन आज हम आपको देश के एक ऐसे इकलौते मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां ना ही राधा और ना ही रुक्मणी बल्कि मुरली मनोहर की सबसे बड़ी भक्त और उनके प्रेम में दीवानी हुई मीरा बाई विराजती हैं।
कहां है यह अद्भुत मंदिर
हम बात कर रहे हैं जयपुर, आमेर में सागर रोड पर स्थित जगत शिरोमणि मंदिर की, जो करीब 422 साल पुराना मंदिर है। यह देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां श्रीकृष्ण के साथ मीरा बाई विराजती हैं। इस मंदिर का निर्माण महाराजा सवाई मानसिंह (प्रथम) की पत्नी रानी कनकावती ने करवाया था। यह मंदिर उन्होंने अपने बेटे कुंवर जगत सिंह की याद में बनवाया।
9 साल में बनकर तैयार हुआ यह भव्य मंदिर
इस मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1599 में शुरू करवाया था, जो करीब 9 साल चला। साल 1608 में इस तीन मंजिला भव्य मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ, जिसके बाद यहां भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापना की गई। इतिहासकारों के मुताबिक, मंदिर में श्रीकृष्ण और मीरा बाई के अलावा चारभुजा वाले श्रीहरि की पूजा होती है। इस मंदिर को लेकर कई किवदंतियां हैं।
यहां होती है कृष्ण और मीराबाई की पूजा
कहा जाता है कि यह वही प्रतिमा है, जिससे चित्तौड़गढ़ में विवाह के बाद मीरा बाई आराधना और भक्ति गान किया करती थी। कहा जाता है कि कई आक्रमणकारियों ने इस प्रतिमा को नष्ट भी करना चाहा लेकिन उनके इरादे नाकामयाब रहे। इसके बाद मूर्ति को शिरोमणि मंदिर लाया गया। उसके बाद मीरा बाई की मूर्ति बनवाकर श्रीकृष्ण के साथ विवाह करवाया गया और तभी से यहां श्रीकृष्ण और मीरा बाई की पूजा होने लगे।
देश-विदेश से टूरिस्ट करने आते हैं दर्शन
कहा जाता है कि जयपुर की इसी प्रतिमा में मीरा बाई विलीन हुई थीं। हालांकि इस पर इतिहासकारों की राय अलग-अलग है। सिर्फ भारत ही नहीं, इस मंदिर के चर्चे विदेशों में भी है और हर साल यहां देश-विदेश से हजारों टूरिस्ट दर्शन करने के लिए आते हैं।
मंदिर में बने हैं संगमरमर के तोरणद्वार
भव्य तरीके से बने इस मंदिर के गर्भग्रह जालिनुमा पिलरों वाला मंडप भी बना हुआ है। श्रीकृष्ण की मूर्ति के ठीक सामने मंडप प्रासाद बना हुआ है, जिसमें उनके वाहन गरूड़ भगवान विराजित है। वहीं, मंदिर के द्वार पर संगमरमर के पत्थरों से सुंदर तोरण बने हुए हैं। मुख्य द्वार के दोनों तरफ हाथी की प्रतिमा बनी हुई है। यही नहीं, मंदिर की दीवारों व छतों पर भी सुंदर भित्ति चित्र उकेरे गुए हैं। यह मंदिर वैष्णव संप्रदाय की मान्यता रखता है।