किसी भी क्षेत्र में तरक्की हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत और इरादों में मजबूती की जरुरत होती है। कुछ करने की हिम्मत और लग्न आपको किसी भी तरह का मुकाम हासिल करवाने में सहायता कर सकती है। सफल होने के बाद लोग सिर्फ आपकी सफलता की कहानी ही जानते हैं। लेकिन सफलता के पीछे आपने कितनी नाकामियां हैं रहती हैं, यह कोई नहीं जाता है। ऐसी ही एक कहानी के बारे में आपको आज बताने जा रहे हैं। देश में होटलों का दूसरा बड़ा कारोबार शुरु करने वाले बिजनेसमैन राय बहादुर मोहन सिंह ने सिर्फ 25 रुपये से बिजनेस की शुरुआत की थी। लेकिन आज वह ओबेरॉय होटल्स एंड रिसॉर्ट्स के निर्माता हैं। तो चलिए जानते हैं कि कैसे वह 25 से 7 करोड़ रुपये के मालिक बने।
कई सारी असफलताओं का किया सामना
यह बात नहीं है कि मोहन सिंह ओबेरॉय को ऐसे ही सफलता मिल गई है। उन्होंने बिजनेस में शुरुआत करने से पहले अपने करियर में कई सारी समस्याओं का सामना किया है। मोहन ने अपनी मां से मिले 25 रुपये से अपने करियर की शुरुआत की थी। परंतु आज वह 7 करोड़ के होटलों के संस्थापक हैं।
जूते की फैक्ट्री में मिले काम से की थी शुरुआत
उनका जन्म पाकिस्तान में मौजूद झेलम जिले में स्थित भनाउ गांव में एक सिख परिवार में हुआ था। शुरु से ही उनकी जिंदगी बहुत कठिन रही थी। उनके ऊपर बचपन से जिम्मेदारियां आ गई थी। वह सिर्फ 6 महीने के थे, जब उनके पिता ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर उन्होंने लाहौर में एक जूते की फैक्ट्री में काम करना शुरु कर दिया था। परंतु साल में ही यह जूते की फैक्ट्री बंद हो गई थी। 1918 के दौरान अमृतसर में हुए सांप्रदायिक दंगों की आग ने जूते की उस फैक्ट्री को घेर लिया था।
इसके बाद मोहन की शादी हो गई। शादी के बाद मोहन अपने ससुराल में रहकर ही नौकरी की तलाश करने लगे। उन्होंने काफी समय तक नौकरी की तलाश भी की परंतु उन्हें नौकरी नहीं मिली। नौकरी न मिल पाने के कारण मोहन दुखी दिल से अपनी मां के पास वापस गांव आ गए थे। उस समय मोहन की मां ने उन्हें सिर्फ 25 रुपये दिए और नौकरी की तलाश करने के लिए घर से जाने के लिए कह दिया।
शिमला के होटल में की थी क्लर्क की नौकरी
इस समय दुनिया काफी ज्यादा परेशानियों का सामना कर रही थी। कोरोना के जैसे बीमारी स्पेनिश प्लेग दुनिया पर अपना कहर बरसा रही थी। मोहन काफी जद्दो -जहत से नौकरी की तलाश कर रहे थे। काफी तलाश के बाद उन्हें 1922 में शिमला के होटल में क्लर्क की नौकरी मिली। इसके बाद मोहन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने काम को पूरी मेहनत और ईमानदार से करने का प्रयास किया।
साल 1934 में खरीदा होटल
मोहन सिंह ओबेरॉय ने साल 1934 में 'द क्लार्क्स' नाम का एक होटल खरीदा। इस होटल को खरीदने के लिए मोहन ने अपनी पत्नी के सारे जेवर-गहने और सारी संपत्ति गिरवी रख दी थी।
महामारी ने दिया मोहन को सुनहरी मौका
मोहन ने सिर्फ 5 सालों में अपना सारा कर्जा उतार दिया था। कोलकत्ता में फैली नहीं महामारी ने मोहन को एक बहुती ही अहम पड़ाव दिया। महामारी के कारण हो रहे घाटे में ग्रैंड होटल्स को बेचा जा रहा था। जिसे मोहन सिंह ओबेरॉय ने खरीद लिया। यह होटल 500 कमरों का था, जिसे मोहन ने रेंट पर खरीदा था।
कई देशों में फैला है कारोबार
मोहन ने अपनी कड़ी मेहनत और लग्न से इस होटल को भी चला लिया। इसके बाद मोहन का कारोबार भारती होटल व्यवस्याओं का दूसरा सबसे बड़ा साम्राज्य बन गया था। आज कई देशों में मोहन का साम्राज्य फैला हुआ है। मोहन के पास आज 31 लग्जरी होटल हैं। इसके अलावा पूरी दुनिया में 12 हजार से भी ज्यादा लोग मोहन की कंपनी में काम कर रहे हैं। ओबेरॉय समूह का कारोबार आज 7 करोड़ से भी ज्यादा का है। मोहन का भारतीय होटल उद्योगों का जनक भी कहते हैं।