आजकल की लाइफस्टाइल में लोग बहुत अकेले है और तनाव बहुत ज्यादा है, जिस वजह से डिप्रेशन के मामले आम हो गए हैं। डिप्रेशन एक मानसिक रोग है, जो हफ्तों, महीनों और कई बार सालों तक भी रहता है। ये न सिर्फ मानसिक रूप से बल्कि शारीरिक रूप से भी लोगों को प्रभावित करता है। पीड़ित व्यक्ति का तो पूरा दिनचर्या से ही इससे प्रभावित रहता है। काम में मन नहीं लगता और बिस्तर से उठने के लिए भी बहुत हिम्मत करनी पड़ती है। ये स्थिति प्रेग्नेंट महिलाओं को भी झेलनी पड़ सकती है। जी हां, प्रेग्नेंसी में भी महिला को डिप्रेशन अपना शिकार बना सकता है। इसमें कुछ ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं...
प्रेग्नेंसी में डिप्रेशन के लक्षण
- मन उदास रहना
- बहुत कम या ज्यादा खाना खाना
- थकान या कमजोरी महसूस करना
- जरूरत से ज्यादा सोना या नींद ही न आना।
- बिना रोना आना।
प्रेग्नेंसी में डिप्रेशन से बच्चे का हो सकता है मिसकैरेज
कई बार तो प्रेग्नेंट महिलाओं को इस बात का पता तक नहीं चलता है कि वो डिप्रेशन से जूज रही हैं। हालांकि इस असर पेट में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है। डिप्रेशन कई तरीकों से प्रेगनेंसी को प्रभावित कर सकता है। इससे मिसकैरेज तक हो सकता है। इसके अलावा ये पोस्टपार्टम डिप्रेशन का भी कारण बन सकता है। डिप्रेशन महिलाओं में प्रसव के बाद भी रह सकता है। यह महिलाओं को कई तरह से प्रभावित करता है, जैसे बच्चे की देखभाल करने में सक्षम न होना, चिंता, तनाव, निर्णय लेने में दिक्कत होना, हमेशा उदास रहना आदि। इसका पहले तो कोई इलाज नहीं था लेकिन अब researchers ने पाया है कि प्रेग्नेंसी के दौरान डिप्रेशन या पोस्टमार्टम डिप्रेशन का पता लगने और इलाज होने की संभावना 10 साल पहले की तुलना में अब कहीं ज्यादा है।
प्रेग्नेंसी में डिप्रेशन के इलाज को लेकर बढ़ी जागरूकता
तीन नए स्टडीज से पता चलता है कि 2008 से 2020 तक निजी बीमा वाले अमेरिकियों में प्रेग्नेंसी के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद पहले साल में डिप्रेशन के इलाज को लेकर जागरूकता बढ़ी है। महिलाएं इलाज करवा रही हैं और ठीक भी हो रही हैं।
15 से 44 साल की इस आबादी में भी मनोचिकित्सा के पास बढ़- चढ़कर इलाज के लिए जा रही है। प्रेग्नेंट महिलाएं से लेकर नए माता-पिता के बीच डिप्रेशन और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को अब पहचानने और इलाज करने की ज्यादा संभावना है। हालांकि, डिप्रेशन का इलाज की सुविधा हर राज्यों में एक समान नहीं है, जिससे कुछ प्रेग्नेंट महिलाओं को इसके लक्षणों को झेलना पड़ता है और खुद के साथ बच्चे की जान भी जोखिम में डालते हैं।
कुल मिलाकर, स्टडी में पाया गया कि पीटीएसडी (PTSD) (Post-traumatic stress disorder) के इलाज का दर चौगुना हो गया है, 2020 तक सभी प्रेग्नेंट महिलाओं में से लगभग 2% में पीटीएसडी का इलाज किया गया है।