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संगीत जगत की शान M.S. सुब्बुलक्ष्मी, आजादी की लड़ाई में कुछ यूं लिया हिस्सा

  • Edited By Harpreet,
  • Updated: 08 Mar, 2020 02:19 PM
संगीत जगत की शान M.S. सुब्बुलक्ष्मी, आजादी की लड़ाई में कुछ यूं लिया हिस्सा

कर्नाटक संगीत जगत की आन, बान और शान एम.एस सुब्बुलक्ष्मी जी का जन्म 16 सितंबर, 1916 में हुआ। सुब्बुलक्ष्मी जी को बचपन से ही गीत-संगीत का शौंक था। मगर आज से कुछ साल पहले एक औरत के लिए अपने शौंक पूरे करने के लिए घर से बाहर निकलना आसान नहीं था। खासतौर पर पुरुष प्रधान समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाना और भी मुश्किल। मगर इन सब के बावजूद सुब्बुलक्ष्मी जी ने कर्नाटक संगीत में अपनी जगह बनाई। सुब्बु लक्ष्मी जी को संगीत का शौंक अपनी मां से मिला। पंडित नारायणराव व्यास से संगीत की शिक्षा लेने वाली सुब्बु जी को स्टेज पर जाकर परफॉर्मेंस देने का खास शौंक था। 10 साल की उम्र में उन्होेंने अपने जीवन की सबसे पहली प्रस्तुति की। अपनी मधुर आवाज और संगीत के हुनर से उन्होंने उस दिन मंदिर में मौजूद सभी लोगों को मोहित कर दिया। सुब्बु जी ने न केवल अपनी मातृ भाषा में गीत-संगीत लिखा बल्कि और कई भाषाओं में भी लोगों को अपना हुनर दिखाया।

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आजादी की लड़ाई में यूं लिया हिस्सा

सुब्बुलक्ष्मी जी का विवाह स्वतंत्रता सेनानी सदाशिवम से हुआ। दोनों पति-पत्नि मिलकर जो भी कमाते, उसका काफी ज्यादा हिस्सा लड़ाई में और कस्तूरबा फाउंडेशन को समर्पित कर देते थे। यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी सुब्बु जी को कई बार सम्मानित किया। सुब्बु जी ने स्वंतंत्रता के एक आंदोलन में  ‘हरि तुम हरो भजन' संदेश के साथ गांधी जी को सम्मान भिजवाया। यहां तक कि देश के प्रधान मंत्री  पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तो इतना कह डाला कि ‘ओह, मैं एक अदना-सा प्रधानमंत्री, इस संगीत की मल्लिका के आगे कहां ठहरता हूं।

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उनके यादगार गीतों में से कुछ गीत..

सुब्बुलक्ष्मी का प्रात:कालीन गायन ‘सुप्रभातम’ आज भी सराहा जाता है। इन्होंने ‘भज गोविंदम’ का भी गायन किया । कुजम्मा ने राजगोपालाचारी की रचना ‘कोराईओन रूम इल्लई’ और ‘विष्णु सहस्रनाम’ की भी प्रस्तुतियां दीं। हनुमान चालीसा की प्रस्तुति इनके सबसे बेहतरीन गायन में से एक हैं।

उपलब्धियां

संगीत जगत में  ‘सांईवाणी’ और ‘संगीत कलानिधि’ दोनों खास उपाधियां हैं। यह दोनों सम्मान सुब्बु जी को हासिल हुए।1968 में उन्होंने संगीत अकादमी मद्रास की पहली महिला अध्यक्षा बनीं। यहां तक कि 1982 में लंदन जाकर उन्होंने अपनी संगीत कला का हुनर दिखाया।

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निधन

कहा जाता है कि एक समय पर सुब्बु जी को मधुमेह की बीमारी लग गई थी। उस वक्त इस बीमारी का कुछ खास इलाज नहीं था। इस वजह से 2004 को सुब्बुलक्ष्मी का हाई शुगर लेवल की वजह से निधन हो गया। 

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