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ये बेगम थीं हज करने मक्का जाने वाली पहली महिला, 'हुमायूंनामा' में खोल चुकी हैं मुगलों के कई राज

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 17 Feb, 2024 12:44 PM
ये बेगम थीं हज करने मक्का जाने वाली पहली महिला, 'हुमायूंनामा' में खोल चुकी हैं मुगलों के कई राज

 मुस्लिम समुदाय के लोगों में हज बहुत ही अहम है। ये इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक माना जाता है और इस समुदाय के लोग अल्लाह से इबादत करने के लिए मक्का की तीर्थ यात्रा जरूर करते हैं। हालांकि महिलाएं बिना किसी मेहरम (रक्त संबंध में शामिल किसी पुरुष) यानी पुरुष साथी के बगैर हज पर नहीं जा सकती हैं। लेकिन साल 1576 की एक सुबह बाबर की बेटी गुलबदन बानो बेगम ने हेरेम की 11 महिलाओं के साथ हज के लिए मक्के की यात्रा करने का मन बनाया। वो मुगलों के इतिहास में ऐसा करने वाली पहली महिला थीं। 

मक्का जाकर हज करने वाली महिलाओं में से एक

ऐसे समय में जब मुगल महिलाएं बुर्के में रहती थीं और उनका जीवन काफी हद तक उनके शौहर तय करते थे। गुलबदन ने बिना पुरुषों के साथ के बिना 3000 मील की दूरी तय की जिसमें रेगिस्तान, पहाड़ आदि जैसी कठिनाइयों का सामना करके वो हज पहुंची। इस दौरान मुगल बादशाह अकबर ने गुलबदन का खूब साथ दिया। उन्होंने गुलबदन के लिए खास सुरक्षित यात्रा की व्यवस्था की थी और कई महिलाओं की उपस्थिति के साथ एक सरदार को अनुरक्षक के रूप में भेजा था।  मक्का में बेगम के आने से काफी हलचल मच गई और सीरिया तक से लोग मक्का की ओर उमड़ पड़े थे।

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 गुलबदन बेगम 4 साल रही मक्का में

 गुलबदन बेगम लगभग चार सालों तक मक्का में रहीं और उनकी वापसी के दौरान एक जहाज़ दुर्घटना के कारण उन्हें कई महीनों तक आगरा लौट नहीं पाई। इसके चलते अपनी यात्रा पर निकलने के सात साल बाद1582 में वो भारत लौटीं।

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मुगलकाल की पहली महिला इतिहासकार थीं गुलबदन

गुलबदन को पहली महिला इतिहासकार भी कहा जाता है। मुगलों की तरह गुलबदन को फारसी और तुर्की की अच्छी जानकारी थी। वो कविताएं लिखने और किताबें पढ़ने की भी शौकीन रही हैं। जिसे देखकर अकबर ने उन्हें अपनी पिता की जीवनी 'हुमायूंनामा' लिखने की गुजारिश की थी। 

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हुमायूंनामा में मुगलों के कितने राज खुले?

हुमायूंनामा में मुगल शहजादी ने बादशाह के शासन के अलावा जनानखाने यानी हरम के बारे में भी कई दिलचस्प बातें लिखीं। उस दौर में जनानखाने में महिलाओं के बीच कैसे रिश्ते थे, उनका काम क्या था और उनकी पसंद-नापसंद कैसी थी, इसका जिक्र भी जीवनी में किया। इस दौरान जहां सारे इतिहासकार मुगलों के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर लिखते थे और उन्हें ताकतवार दिखाने की कोशिश करते थे, लेकिन गुलबदन ने ऐसा कुछ नहीं किया। उन्होंने हुमायूं की जीवनी को बादशाह की वीरगाथा का दस्तावेज नहीं बनने दिया। उन्होंने जीवनी में अपनी सहेली हामिदा और हुमायूं की प्रेम कहानी का जिक्र भी किया था। बता दें 16वीं सदी में'हुमायूंनामा'  एकमात्र ऐसा दस्तावेज था को शाही परिवार की किसी महिला ने लिखा था।

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