मां बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है लेकिन कुछ महिलाएं इस सुख से वंचित रह जाती हैं। हालांकि आजकल महिलाओं को मां बनने में किसी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता। कृत्रिम प्रक्रिया जैसे आईवीएफ (IVF), आईसीएसआई (ICSI) और आईयूआई (IUI) जैसी कई तकनीक के जरिए महिलाएं भी मां बनने का सपना पूरा कर सकती हैं।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF)
आईवीएफ यानि टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक ऐसी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन है, जिसमें महिलाओं के गर्भाश्य में दवाइयों व इंजैक्शन द्वारा सामान्य से ज्यादा अंधिक अंडे बनाए जाते हैं। फिर सर्जरी के जरिए अंडो को लैब में कल्चर डिश में तैयार पति के शुक्राणुओं के साथ मिलाकर निषेचन (Fertilization) के लिए 2-3 दिन रखा जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में अल्ट्रासाउंड का इस्तेमाल किया जाता है। आखिर में जांच के बाद इससे बने भ्रूण को वापिस महिला के गर्भ में इम्प्लांट किया जाता है। बच्चेदानी में भ्रूण इम्प्लांट करने के बाद 14 दिनों में ब्लड या प्रेगनेंसी टेस्ट के जरिए इसकी सफलता और असफलता का पता चलता है। इससे महिला के मां बनने के संभावना करीब 70% तक होती है।
इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन (IUI)
आईयूआई (Intrauterine Insemination) कृत्रिम प्रक्रिया से गर्भधारण करने का एक तरीका है। इस प्रक्रिया में पहले पुरुष के शुक्राणुओं को साफ किया जाता है। फिर महिला के ओव्यूलेशन के समय डॉक्टर प्लास्टिक की पतली कैथेटर ट्यूब के जरिए इन शुक्राणुओं को गर्भाशय में इंजेक्ट कर देते हैं। मगर इससे पहले गर्भधारण कर रही महिला को अंडे का उत्पादन करने और ओव्यूलेशन को उत्तेजित करने के लिए प्रजनन दवाइयों का सेवन करना होता है, ताकि गर्भ में भ्रूण बन सके।
इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI)
आईसीएसआई तकनीक द्वारा पुरूष के बांझपन का इलाज किया जाता है। हालांकि, आईसीएसआई को आईवीएफ की भांति किया जाता है लेकिन जिन पुरूषों में शुक्राणों की कमी होती है, उनके लिए IVF फायदेमंद नहीं होता। ऐसे में उनके लिए सबसे आईसीएसआई ट्रीटमेंट सही होता है। आईसीएसआई में पुरूष के शुक्राणु को अंडाणु में इंजेक्ट किया जाता है, ताकि उससे अंडाणु फर्टिलाइज हो सके।
IVF, IUI और ICSI के फर्क
IVF तकनीक में अंडों और स्पर्म को एक ट्यूब में फर्टिलाइज्ड होने के लिए रख दिया जाता है जबकि ICSI में, स्पर्म को सीधे एग्स में इंजेक्ट किया जाता है। वहीं, IUI में मेल शुक्राणुओं को साफ करके महिला के गर्भाश्य में इंजेक्ट किया जाता है, जिसके बाद अंडे फर्टिलाइज्ड हो जाते हैं। हालांकि IUI तकनीक IVF और ICSI दोनों से सस्ती और आसान है। IVF और ICSI की बात की जाए तो आईवीएफ तकनीक ज्यादा मंहगी होती है।
IVF, IUI व ICSI के बारे में लोगों की धारणाएं
कुछ लोग समझते हैं कि आईवीएफ या आईयूआई प्रक्रिया में बच्चा आपका नहीं होता लेकिन यह बहुत गलत धारणाएं हैं। इसमें अंडा पत्नी और शुक्राणु पति के ही होते हैं। इस ट्रीटमेंट से पैदा होने वाला बच्चा पति-पत्नी का ही होता है।
क्या उम्रदराज महिलाओं के लिए सही है ये ट्रीटमेंट
ज्यादा उम्र में भी मां बनने के लिए ये तकनीकें फायदेमंद है। दरअसल, 40 साल के बाद महिलाओं में कंसीव करने की क्षमता 10% घट जाती है। वहीं यह समय मेनोपॉज का भी होता है, जिसकी वजह से कंसीव करने में दिक्कत आती है। अगर महिलाएं इस उम्र में कंसीव कर भी ले तो भी गर्भपात या प्रीमैच्चोर डिलीवरी का खतरा रहता है। जबकि इन टकनीक के जरिए ऐसा कोई जोखिम नहीं होता।
IVF और ICSI में समानताएं
यह दोनों तकनीक काफी हद तक एक जैसी होती है क्योंकि दोनों में ही पाटर्नर या डोनर से एग्स और स्पर्म लिए जाते हैं। इसके बाद एक एम्ब्रियोलॉजिस्ट एग्स की जांच के बाद उन्हें निषेचित किया जाता है।
मां बनने में लगता है कितना समय
IVF में 12-14 दिन बाद तकनीक की सफलता का पता चल जाता है। IUI ट्रीटमेंट में भी 12-14 दिन बाद ही रिजल्ट मिलता है। वहीं ICSI ट्रीटमेंट में 4-6 हफ्ते बाद रिजल्ट आते हैं। इस दौरान अधिक अंडे उत्पन्न करनेके लिए डॉक्टर खास दवा भी देते हैं, जिससे प्रेगनेंसी के चांसेस बढ़ जाते हैं।