स्वस्थ सेहत और विकास के लिए पर्याप्त पोषण की आवश्यकता होती है। अगर बच्चे को खाने से पोषक तत्व नहीं मिल रहे, तो इससे उनके शारीरिक विकास पर असर पड़ सकता है, कमजोरी और थकान से लेकर बड़े होने पर गंभीर बीमारियां तक हो सकती हैं। लेकिन भारत में आज भी 6 से 23 महीने के 89 प्रतिशत बच्चाें को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है।
एनएफएचएस ने अपनी रिपोर्ट में दी यह जानकारी
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के नतीजे बताते हैं कि छह से 23 महीनों की शुरूआती उम्र के करीब 89 प्रतिशत बच्चों को 'न्यूनतम स्वीकार्य भोजन' भी नहीं मिल पाता है। यह बच्चों के पोषण की व्यवस्था में एक बड़ी कमी का सबूत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि- दो साल तक के बच्चे जिन्हें स्तनपान कराया जाता है और जिन्हें स्तनपान नहीं कराया जाता है, उन्हें पर्याप्त पोषण की आवश्यकता होती है।
ये है अब तक की रिपोर्ट
एनएफएचएस रिपोर्ट ने स्तनपान करने वाले और नहीं करने वाले, दोनों श्रेणी के बच्चों के भोजन की जानकारी इकट्ठी की। रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2019-20 में 6 से 23 महीने की उम्र के 99.8 फीसदी स्तनपान कराने वाले बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल सका। इसी प्रकार वर्ष 2019-21 के दौरान 87.9 प्रतिशत गैर-स्तनपान कराने वाले बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिल सका। देशभर के अलग-अलग राज्यों में यह आंकड़ा अलग-अलग है। उत्तर प्रदेश और गुजरात में सबसे कम (5.9 प्रतिशत) बच्चों को न्यूनतम स्वीकार्य भोजन मिला। मेघालय में सबसे ज्यादा (28.5 प्रतिशत) बच्चों को पर्याप्त भोजन मिला।
ये है सभी राज्यों का हाल
असम में 7.2 फीसदी
राजस्थान में 8.3 फीसदी
महाराष्ट्र में 8.9 फीसदी
आंध्र में 9 फीसदी
मध्य प्रदेश में 9 फीसदी
तेलंगाना में 9 फीसदी
छत्तीसगढ़ में 9.1 फीसदी
झारखंड में 10 फीसदी
10.2 दादरा नगर हवेली और दीव दमन में प्रतिशत
बिहार में 10.8 प्रतिशत बच्चों को प्रयाप्त भोजन नही मिल पा रहा है।
पर्याप्त भोजन ना मिल पाने का नुकसान
शहरी इलाकों में 12.1 प्रतिशत के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में इस उम्र के 10.7 प्रतिशत बच्चों को ही पर्याप्त भोजन मिल पाता है। रिपोर्ट के अनुसार प्रयाप्त भोजन ना मिलने के कारण छह से 59 महीनों के 67 प्रतिशत बच्चों में एनीमिया पाया गया, पांच साल से कम उम्र के 36 प्रतिशत बच्चों को शारीरिक रूप से अपनी उम्र के हिसाब से छोटा पाया गया, 19 प्रतिशत को अपनी लंबाई के हिसाब से पतला और 32 प्रतिशत बच्चों को अपनी उम्र के हिसाब से पतला पाया गया।
बच्चों में पोषण का महत्व
पोषण से बच्चों की बढ़त अच्छी होती है और दिमाग का विकास होता हैं। सही पोषण से बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है और बार-बार बीमार नहीं पड़ते। पोषण से ही बार-बार बीमार होने से बचा जा सकता है और कुपोषण के दायरे से मुक्ति भी पाई जा सकती है। देश में 6 से 59 माह की आयु वर्ग में हर दस में सात बच्चे 695 प्रतिशत खून की कमी का शिकार हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का मानना है कि जन्म के 1 घंटे के भीतर स्तनपान की शुरूआत शिशु के पूरे जीवन के लिए बुनियाद का काम करती है। इसी तरह छह माह की उम्र तक एक्सक्लूसिव स्तनपान बच्चे को कई बीमारियों से बचाने का काम करता है। बहरहाल इस दिशा में काम करने की बेहद जरूरत है।
एनीमिया के दुष्प्रभाव
किशोरावस्था में एनीमिया होने के दुष्प्रभाव एक व्यक्ति के पूरे जीवन में दिखाई पड़ता है।भूख कम होने लगती है और सही पोषण नहीं मिलने से आयु के अनुसार शारीरिक वृद्धि नहीं हो पाती है। युवतियों में एनीमिया आगे जाकर उनकी गर्भावस्था को भी प्रभावित करता है और वह असुरक्षित मातृत्व के दौर से गुजरती है। यही कारण है कि यहां पर उच्च मातृत्व मृत्यु दर है। उनके बच्चे भी कम वनज के पैदा होते है, और कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।