ईद-उल-अजहा आज पूरे भारत के मुसलिम समुदाय के लोगों के द्वारा मनाई जा रही है। इसे बकरीद भी कहा जाता है। यह खुशी और शांति का अवसर होता है, जो मुसलमान अपने परिवारों के साथ मिलकर मनाते हैं। इस त्योहार में वह अपने सारे पुरानी शिकायतें और शिकवे दूर करके अच्छे रिश्ते बनाते हैं। इसे बलिदान का त्योहार भी कहा जाता है। इस पर्व को धू उल-हिज्जाह के 10वें दिन मनाया जाता है। यह दिन इस्लामी और चंद्र कैलेंडर का 12 महीना होता है। इसके अलावा यह वार्षिक हज यात्रा के अंत का भी प्रतीक होता है। हर साल बकरीद की तारीख बदलती है क्योंकि यह इस्लामिक कैलेंडर पर आधारित है। तो चलिए जानते हैं कैसे इस दिन को मनाने की शुरुआत कैसे हुई थी...
ऐसे हुई बकरीद मनाने की शुरुआत
मुसलमानों के इस पवित्र त्योहार को खुशी और शांति का प्रतीक माना जाता है। इस त्योहार के दौरान सब अपने पुराने गुस्से और शिकायतों को दूर करके अच्छे रिश्ते बनाते हैं। पैगंबर अब्राहम की ईश्वर के लिए सब कुछ बलिदान करने की इच्छा हेतु स्मरणोत्सव के रुप में यह दिन मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का इतिहास 4,000 साल पहले का है। जब पैगंबर अब्राहम के सपने में अल्लाह प्रकट हुए थे और उन्हें उनकी सबसे ज्यादा पसंदीदा चीज का बलिदान करने के लिए कहा था।
पैगंबर देने वाले थे बेटे की बलि
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर अल्लाह की बातें सुनकर बेटे की बलि देने वाले थे। उसी समय एक फरिश्ता प्रकट हुआ और उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। उन्हें बताया गया कि अल्लाह उनके प्रेम से संतुष्ट है। इसलिए उन्हें महान बलिदान के रुप में कुछ भी करने की आवश्कता नहीं है।
बाइबिल में भी मौजूद है यह कहानी
आपको बता दें कि पैगंबर के बलिदान की कहानी बाइबिल में भी मौजूद है, क्योंकि यह यहूदियों और ईसाइयों से परिचित है। दोनों धर्माों में महत्वपूर्ण अंतर यह है कि मुसलमानों का मानना है कि पुत्र असहायक की जगह इश्माएल था जैसे की पुरानी कथाओं में बताया गया है। इस्लाम धर्म में इश्माएल को पैगंबर और मुहम्मद के पूर्वज के रुप में माना जाता है।
तीन भागों में बंटवारा
इस त्योहार को मनाने के लिए मुसलमान मेमने, बकरी, गाय, ऊंट या फिर किसी और जानवर के प्रतीकात्मक बलिदान के साथ पैगंबर की आज्ञाकारिता को फिर से लागू करते हैं। इसे बाद में परिवार, दोस्त और जरुरतमंदों के बीच में एक समान बांटने के लिए तीन भागों में बांटा जाता है।
हर साल मनाई जाती है दो बार ईद
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, हर साल दो बार ईद मनाई जाती है। एक बार ईद-उल-अदा और दूसरी ईद-उल-फितर। ईद-उल-फितर को मीठी ईद कहा जाता है। यह ईद रमजान को समाप्त करते हुए मनाई जाती है। मीठी ईद के करीबन 70 दिनों के बाद बकरीद मनाई जाती है।
परिवार और दोस्तों के साथ मनाते हैं ईद
दुनियाभर में ईद अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। देश के अलग-अलग देशों में इस खास त्योहार को लिए अलग सांस्कृतिक दृष्टिकोण होते हैं। अगर बात भारत की करें तो यहां मुसलमान नए कपड़े पहनकर खुले में प्रार्थना सभाओं में भाग लेते हैं। इसके अलावा एक भेड़ या बकरी की बलि भी देते हैं। उनके मांस को परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों, दोस्तों और गरीबों के साथ बांट कर खाते हैं। इसके अलावा इस दिन कई और व्यंजन जैसे मटन बिरयानी, गोश्त, हलीम, शमी कबाब, मटन कोरमा, खीर, शीर खुरमा जैसी मिठाईयां भी खाई जाती हैं।