22 DECSUNDAY2024 9:18:01 AM
Nari

दशहरे को क्यों कहा जाता है विजयादशमी? जानिए कुछ दिलचस्पी बातें

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 15 Oct, 2021 04:53 PM
दशहरे को क्यों कहा जाता है विजयादशमी? जानिए कुछ दिलचस्पी बातें

अश्विन की दशमी तिथि (दसवां दिन), शुक्ल पक्ष बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है जिसे विजयादशमी / दशहरा के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में दशहरा का विशेष महत्व है, जो पूरे देश में पूरे जोश, उत्साह और धूमधाम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। हिंदू ग्रंथों में दशहरे से जुड़ी की पौराणिक कहानियां जिसके बारे में ज्यातर लोग नहीं जानते। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं दशहरे से जुड़ी ऐसी ही कुछ खास और दिलचस्प बातें...

दशहरा को क्यों कहा जाता है विजयादशमी?

किंवदंती के अनुसार, देवी सीता को बचाने भगवान श्रीराम और  रावण के बीच 10 दिन तक घमासान युद्ध हुआ। फिर चंडी यज्ञ करने के बाद प्रभु श्रीराम ने आश्विन महीने के 10वें दिन रावण का वध किया इसलिए इसे विजयादशमी भी कहा जाता है।

PunjabKesari

विजया दशमी का अर्थ

भारत में अलग-अलग कारणों व तरीकों से विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे भैंस राक्षस महिषासुर का वध करने व देवी दुर्गा की जीत के उत्सव में मनाता हैं। जबकि उत्तरी, मध्य और कुछ पश्चिमी राज्यों में भगवान राम की जीत की खुशी में मनाया जाता है।

रावण के 10 सिरों का महत्व

रावण के दस सिर 10 कमजोरियों या पापों का प्रतीक माने जाते हैं जो इस प्रकार हो सकते हैं काम (वासना), क्रोध, मोह, लोभ (लालच), मद (गर्व), मत्सर (ईर्ष्या), स्वर्थ, अन्याय, अमानवीयता (क्रूरता) और अहंकार।

स्‍वर्णमुद्राओं की बरसात

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, वरतंतु ऋषि के शिष्य ब्राह्माण कौत्स पढ़ाई खत्म करके घर जाने लगे तो उन्होंने गुरुदेव से गुरुदक्षिणा के बारे में पूछा। तब ऋषि वरतंतु ने कहा कि तुम्हारी सेवा ही मेरी गुरुदक्षिणा थी लेकिन कौत्स ने बार-बार गुरुदक्षिणा देने का आग्रह किया। इसपर ऋषि ने क्रुद्ध होकर कहा कि अगर तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो 14 करोड़ स्वर्णमुद्राएं लाकर दो।

PunjabKesari

तब कौत्स रघु राजा के पास गए और स्वर्ण गुरुदक्षिणा के बारे में बताया। मगर, राजा तो अपना सबकुछ पहले ही दान कर चुके थे। तब रघु राजा ने कुबेर देवता से कहा कि स्वर्णमुद्राओं की बरसात करो या युद्ध के लिए तैयार रहो। तब भगवान कुबेर ने शमी वृक्ष पर स्वर्णमुद्राओं बरसाई लेकिन राजा ने उसमें से एक भी मुद्रा अपने पास नहीं रखी बल्कि उस कौत्स ब्राह्माण को दे दी। मगर, कौत्य ने भी उसमें से 14 करोड़ मुद्राएं ही ली और उसे अपने गुरु को दे दिया। बाकी धनराशि उसने राजा को लौटा दी, जिसे उन्होंने प्रजा में बांट दिया। चूंकि उस दिन विजयादशमी थी इसलिए उस दिन शमी के पेड़ की पूजा करना शुभ माना जाते लगा। साथ ही इस दिन अश्मंतक के पत्ते भी पूजे जाते हैं, जिसे 'सोना पत्ती' भी कहते हैं।

Related News