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मदद के हाथः हाथ में लाठी व कंधे पर बैग, मीलों चलकर जरूरतमंदों को मदद पहुंचा रही सुमन धेबे

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 14 Jul, 2021 04:08 PM
मदद के हाथः हाथ में लाठी व कंधे पर बैग, मीलों चलकर जरूरतमंदों को मदद पहुंचा रही सुमन धेबे

कोरोना महामारी में जहां लोगों के घर उजड़ गए वहीं इस दौरान इंसानियत का एक नया रूप भी देखने को मिला। वहीं, इसी बीच  सुमन धेबे (Suman Dhebe) भी कोरोना मरीजों की सेवा में जुटी हुई है। वह रोजाना 10 मील चलकर गांव-गांव में जाकर कोरोना संक्रमित लोगों का डेटा इकट्ठा करती हैं। जब जुलाई महीने की शुरूआत में मानगांव में 2 लोग कोविड पॉजिटिव पाए गए तब उन्होंने आस-पास के गांवों में जाकर ट्रेसिंग शुरू की। बता दें कि जब महाराष्ट्र, शिरकोली गांव से 2 केस आए तब सुमन 3 घंटे बारिश में चली और, छोटे-बड़े नदी-नाले को पारकर करके 210 ग्रामीणों की स्क्रीनिंग करने पहुंची। ऐसे की हजारों गांव वालों की जिम्मेदारी सुमन के काई 47 आशा वर्कर्स के कंधों पर डाली गई है।

9 सालों से कर रही यह काम

'डॉक्टर बाई' उर्फ सुमन वेल्हे तालुका के ग्रामीणों की 9 साल से देखभाल कर रही हैं। इस दौरान उन्होंने ना सिर्फ गर्भवती महिलाओं की देखभाल की बल्कि कई डिलीवरी भी करवाई। सुमन ने बताया कि वो PPE किट में पहाड़ नहीं चढ़ सकती इसलिए सिर्फ लाठी लेकर ऊपर जाती हैं।

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ट्रेनिंग प्रोग्राम में मिली कोरोना की जानकारी

साल 2020 में एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान सुमन के साथ कई आशा वर्कर्स को कोरोना महामारी की जानकारी दी गई, जिसे उन्होंने गांव-गांव में बांटना शुरू किया। उन्होंने कहा कि तब हमने पहले बार सैनेटाइजर देखा और हमें बताया गया इस नई बीमारी के बारे में बताया गया। हमें मास्क और दस्ताने भी दिए गए, जिन्हें पहनकर हमने स्क्रीनिंग शुरू कर दी। 

दूसरी लहर में मुश्किलें बढ़ी

सुमन सुबह अपने घर से निकलती और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश करती। मई में सिर्फ 3 घरों तक पहुंचने के लिए वो 4 घंटे पैदल चली। इसके अलावा जिला प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी भी सुमन ही संभाल रही हैं। वह हर में जाकर उन्हें सावधानी बरतने को कहा।

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सुमन के अंडर में आने वाले गांव रहे कोविड मुक्त

सुमन की मेहनत रंग भी लाई है क्योंकि उन्हें सौंपे गए 5 गांव में एक भी कोरोना केस नहीं मिला। इस काम के लिए उन्हें हर महीने 2000 रु दिए जाते हैं और वो सालों से यह काम जिम्मेदारी के साथ कर रही हैं। सुमन का कहना है कि इन लोगों को छोड़कर मैं शहर नहीं जा सकती है।

देर रात पहुंचती हैं घर

वह ग्रामीण सब-सेंटर में फोन करके अपने दिनभर की रिपोर्ट देती हैं और देर रात घर पहुंचती हैं। खुद को सैनेटाइज करने के बाद खाना बनाती हैं। सुमन के घर में बिजली नहीं है। यहां तक कि उनके गांव में ढंग की सड़क भी बनी।

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सुमन उन कोरोना फ्रंटलाइन वर्कर्स में से एक हैं जिनपर कम लोगों की ही नजर पड़ी लेकिन उनके जैसी हजारों आशा वर्कर्स बिना किसी उम्मीद, मांग के अपनी जिम्मेदारी निभाने में लगी हैं और दूसरों की मदद कर रही हैं।

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