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कैसे शुरू हुए थे सावन के सोमव्रत, भगवान शिव ने दिया था एक अभाग्न को सुहागन का आशीर्वाद

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 28 Jul, 2021 10:57 AM
कैसे शुरू हुए थे सावन के सोमव्रत, भगवान शिव ने दिया था एक अभाग्न को सुहागन का आशीर्वाद

हिंदू धर्म में सावन व्रत रखे जाने वाले सोमवार का खास महत्व है। मान्यता है कि शिव व्रत रखने से हर मनोकामना पूरी होती है और सभी पापों से मुक्ति भी मिलती है। सोमवार व्रत रख रही हैं तो कुछ नियमों का पालन करने के अलावा कथा जरूर पढ़ना भी जरूरी है। पुराणों में भी सावन सोमवार की कथा सुनने का लाभ वर्णित किया गया है। कोरोना काल के चलते अगर आप मंदिर नहीं जा सकती तो घर पर भी शिवलिंग पूजा करके कथा पढ़ सकती हैं। चलिए आपको बताते हैं पूरी सावन व्रत कथा...

सावन सोमवार कथा सुनने का जाने महत्व

सावन सोमवार व्रत कथा सुने बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। अगर आप उपवास नहीं रख रहे तो भी व्रत कथा सुनने से पुण्य लाभ मिलेगा। मान्यता है कि सावन व्रत रखने से कुवांरी लड़कियों को मनचाहा वर और सुहागिनों को सुखी वैवाहिक जीवन का वरदान मिलता है।

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सावन व्रत पूजन विधि

सुबह स्नान करने के बाद शिवलिंग की विधि-विधान पूजा करें और सूरज को जल जरूर दें। भगवान शिव को पंचामृत, पुष्प, धूप, धतूरा, चंदन, चावल, शहद और बेल पत्री चढ़ाएं और आरती गाएं। इसके बाद उन्हें भोग लगाएं और पूरा दिन व्रत रखें। अगली सुबह भगवान की अराधना करके व्रत खोलें।

सावन सोमवार की संपूर्ण व्रत कथा

एक नगर में वृद्धा स्त्री अपने 2 पुत्र व 1 पुत्री सहित रहती थी। उसके तीनों बच्चों का ही विवाह नहीं हुआ था। वृद्धा स्त्री धार्मिक प्रवृति की थी और नियमित मंदिर जाकर भगवान शुव की अराधना करती थी। एक दिन वह अपनी पुत्री व पुत्रों को भी मंदिर साथ ले गई। पूजा के बाद वृद्धा स्त्री ने पंडित जी से बच्चों को आर्शीवाद देने के लिए कहा। उन्होंने पुत्रों को कई आर्शीवाद दिए लेकिन पुत्री को नहीं।

लड़की के भाग्य में नहीं था सुहाग का सुख

तभी वृद्धा स्त्री ने पूछा कि आपने लड़कों को तो आर्शीवाद दिए लेकिन पुत्री को कोई आर्शीवाद क्यों नहीं दिया? तभी उन्होंने कहा कि मैं इस बच्ची को सुहाग का आर्शीवाद नहीं दे सकता क्यों इसके भाग्य में सुहाग का सुख नहीं है। इसपर वृद्धा स्त्री बोली कि कृप्या, इसका कोई उपाय बताएं। तभी पंडित ने कहा कि एक उपाय लेकिन अत्यंत कठिन है। यहां से सात समुद्र पार रमणीक नगर में सोमपत्ति नाम की एक स्त्री रहती है, उसके 100 पुत्र हैं। यह बालिका जाकर अपनी सेवा से उस स्त्री को प्रसन्न करेगी तो वह प्रसन्न होकर सुख प्राप्ति का आर्शीवाद देगी।

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पंडित जी ने सुझाया उपाय

पंडित जी के कहे अनुसार, पूरा परिवार गांव के लिए निकल पड़ा। उन्होंने 6 समुद्र तो किश्ती के सहारे आसानी से पार कर लिए लेकिन सांतवे समुद्र में किश्ती नहीं थी। तभी वह भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। तभी पेड़ पर बैठे एक हंस ने कहा कि मैं आपको पत्तों की एक बेड़ी बनाकर देता हूं, आप उसपर बैठकर समुद्र पार कर लेना। वृद्धा स्त्री परिवार सहित बेड़ी पर बैठकर सांतवे समुद्र को भी पार कर गीए। थोड़ी दूर चलने के बाद उसने सोमपत्ति व उसके पुत्र व बहूओं को देखा। पूरा परिवार सोमपत्ति के घर के पास छिपकर रहने लगा।

लड़की करने लगी मां सोमपत्ति की सेवा

सोमपत्ति रोज सुबह स्नान करने के लिए नदि के तट पर जाती तभी वृद्धि स्त्री की पुत्री उनके घर जाकर झाड़ू, चौका, बर्तन आदि साफ करके वापिस आ जाती। महीनों तक ऐसा ही चलता रहा। सोमपत्ति सोचती थी कि रोज ऐसा कौन कर जाता है? तभी एक दिन उसकी आंख देर से खुली लेकिन वृद्धा स्त्री की लड़की समय पर आकर घर का सारा काम करने लगी। तभी सोमपत्ति ने पूछा- बेटी तुम कौन हो? यहां किसलिए आती हो? तुम्हे क्या चाहिए? सोमपत्ति के बचनों को सुनकर लड़की उसके चरणों में गिर गई। सोमपत्ति ने अर्धनिद्रा अवस्था में ही उसके दूधवती, पुत्रवती और सौभाग्यवति होने का आर्शीवाद दे दिया। मगर, जब लड़की ने सिर उठाया तो सोमपत्ति ने देखा उसके भाग्य में सुहाग का सुख नहीं था।

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मां सोमपत्ति के आर्शीवाद से तय की शादी

तभी लड़की का पूरा परिवार आकर सोमपत्ति से प्रार्थना करने लगा और कहा कि अब आप ही इसकी मां है और इसको इसकी खुशियां दे सकती हैं। भक्तिन सोमपत्ति ने कहा - ठीक है, इस श्रावण मास में आने वाले सोमवार को भगवान शिव की पूजा व व्रत करने से इसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी। श्रावण मास के पहले दिन लड़का ढूंढना, दूसरे सोमवार सगाई करना, तीसरे सोमवार साहे चिट्ठी भेजना और चौथे सोमवार बारात मंगवाना। सोमपत्ति का आर्शीवाद प्राप्त कर पूरा परिवार गांव लौट आया और उनके कहे अनुसार ही किया। जैसे ही लड़की बारात आई और लड़का लग्न मंडप में बैठा तो वह मृत्यु तुल्य अवस्था में पहुंच गया। बाराती व रिश्तेदारों में कोहराम मच गया। सभी रोने लगे और लड़की को कूल्टा कहकर ताने देने लगे।

भगवान शिव के आर्शीवाद से जीवित हुआ सुहाग

लड़की मन ही मन में भगवान शिव व माता पार्वती को याद करने लगी कि हे भोलेनाथ ! कृपा मेरे सुहाग को जिंदा कर दो। वहीं, लड़की का परिवार सोमपत्ति को याद करने लगा। उसी समय सोमपत्ति ने अपने बहू-बेटों पर जल छुड़कर उन्हें सुला दिया और पड़ोसन को कहा कि उनमें से कोई भी उठे नहीं। अगर ऐसा हुआ तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इतना कहकर सोमपत्ति वहां से चल पड़ी। सोमपत्ति ने अपने 100 पुत्रों व बहूओं की थोड़ी-छोड़ी आयु जल के रूप में लड़की के सुहाग पर छिड़कर उसे जीवित कर दिया। इसके बाद शादी खुशी-खुशी संपन्न हुई और लड़की परिवार व सोमपत्ति का आर्शीवाद लेकर विदा हो गई। उसके बाद सोमपत्ति अपने नगर लौट गई और लड़की हर श्रावण माह में भगवान शिव के व्रत रखने लगी।

इसी तरह जो भी व्यक्ति विधि-विधान से भगवान शिव की अराधना करता है और सोमवार व्रत सुनना है भोनाथ उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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