हिंदू धर्म में मताओं के लिए अहोई व्रत का विशेष महत्व है। कृष्णपक्ष की अष्टमी यानि 8 नंवबर को महिलाएं संतान प्राप्ति और अपनी बच्चे की खुशहाली के लिए अहोई माता का व्रत रखेंगी। कहते हैं कथा सुने बिना व्रत पूरा नहीं होता। चलिए आज हम आपको अहोई माता की व्रत कथा के बारे में बताते है।
यहां पढ़िए अहोई माता की व्रत कथा...
इसमें पूजा के लिए आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है और उसी के पास साही तथा बच्चों की आकृतियां बनाई जाती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे थे और एक बेटी थी, जिसकी उसने शादी कर दी थी। एक दिन दिवाली पर साहूकार की बेटी ससुराल से मायके आई थी। दिवाली पर घर लीपने के लिए साहूकार की सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेकर आई और उसकी बेटी भी अपनी भाभियों के साथ चल पड़ी।
जहां साहूकार की बेटी मिट्टी काट रही थी, वहां स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी और मिट्टी काटते हुए साहूकार की बेटी की खुरपी स्याहु के एक बच्चे को लग गई और बच्चा मर गया। इसपर स्याहु ने क्रोधित होते हुए कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी। यह बात सुन साहूकार की बेटी अपनी भाभियों से कोख बंधवाने की विनती करती हैं और छोटी भाभी ननद के बदले कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के बच्चे होने के सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की मृत्यु होने के बाद जब वह पंडित से इसका कारण पूछती है तो वह उसे सुरही गाय की सेवा करने को कहते हैं।
सुरही उसकी सेवा से प्रसन्न होकर एक इच्छा मांगने के लिए कहती है। साहूकार की बहू माता को कोख बांधने की बात बता देती है और कोख खुलवाने की विनती करती है। गाय माता उसे साथ लेकर सात समुद्र पार कर स्याहु माता के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम कर रहीं होती है तभी अचानक साहूकार की बहू देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और तभी वो सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां खून बिखरा देखकर छोटी बहू को कोसने लगती है और चोंच मारती है। इसपर छोटी बहू उसे सच्चाई बताती है, जिससे गरूड़ पंखनी खुश होकर उसे सुरही सहित स्याहु के पास पहुंचा देती है।
वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है, जिससेवो प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र व बहू होने का आशीर्वाद देती है और उसे अहोई माता का व्रत करने के लिए कहती है। छोटी बहू घर जाकर वैसा ही करती है, जिससे उसकी मनोकामना पूरी होती है। अहोई का अर्थ 'अनहोनी को होनी बनाना।' भी है जैसा कि साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।
आरती श्री अहोई माता की आरती
जय अहोई माता, जय अहोई माता!
तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।
ब्राहमणी, रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।
माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।
तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।
जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।
तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।
खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।
शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।।
पूजा के बाद सास के पैर छूकर आशीर्वाद लें। इस तरह अहोई माता का विधि-विधान पूजन करने से मां हर किसी की मनोकामना पूरी करती है।