बॉलीवुड एक्ट्रेस रानी मुखर्जी की फिल्म 'मिसेज चटर्जी वर्सेस नॉर्वे' भले ही पर्दे पर ज्यादा कमाल नहीं दिखा पाई लेकिन इस फिल्म ने लोगों के दिमाग में गहरा असर डाल दिया था। फिल्म की कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित थी, जिसमें एक भारतीय मां नार्वे के एक फोस्टर केयर में कथित रूप से बंधक बनाए गए अपने दो बच्चों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ती है। ऐसे में हर कोई जानना चाहता था कि आखिर वो महिला कौन है जिसने सच में ये सभ सहा है।
दरअसल रानी की फिल्म ने सागरिका भट्टाचार्य के 12 साल पुराने उस दर्दनाक केस की यादें ताजा कर दी जब वह अपने बच्चों के लिए दर- दर की ठोकरें खा रही थी। पेश से सॉफ्टवेयर इंजीनियर सागरिका की ममता के आगे एक देश को अपना कानून बदलना पड़ा था। यह मां जरूरत पड़ने पर अपने बच्चों के लिए शेरनी बन गई थी और अपने नुकसान की परवाह किए बिना किसी भी परिस्थिति से लड़ गई थी।
फिल्म को देखकर तो यही लगा कि मिसेज चटर्जी को अपने बच्चे वापिस मिल गए हैं और वह खुशी- खुशी उनके साथ रह रही है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। एक रिपोर्ट की मानें तो सागरिका चक्रवर्ती अभी भी बच्चों से अलग रह रही हैं। सागरिका औार उनके पति अनुरुप भट्टाचार्या अलग हो चुके हैं। ऐसे में भारत में किसी तरीके से अपनी जिंदगी गुजार रही है, वहीं उनके पति ना ही नॉर्वे से वापस लौटे हैं और ना भी कभी बच्चों की जिम्मेदारी उठाई है।
सागरिका ने एक इंटरव्यू में कहा था कि- "अभिज्ञान और ऐश्वर्या को वापस पाने के बाद मैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना चाहती थी ताकि उनका पालन पोषण कर सकूं। मैंने सॉफ्टवेयर की पढ़ाई की। परिवार को चलाने के लिए मुझे बहुत सारे पैसों की जरूरत थी, मुझे पैसे कमाने के लिए कोलकाता को छोड़ना पड़ा"। उन्होंने बताया कि दोनों बच्चों का पालन पोषण उनके नाना नानी कर रहे हैं।
बता दें कि 2007 में सागरिका की शादी अनुरुप भट्टाचार्य से हुई थी। शादी के कुछ देर बाद ही कपल नार्वे में सेटल हो गया। दोनों बेटा- बेटी की माता- पिता बने, लेकिन 2011 में उनकी जिंदगी में बहुत बड़ा तूफान आ गया। नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज ने ऐश्वर्या और अभिज्ञान दोनों को उनके माता-पिता से दूर कर दिया. दोनों बच्चों को अपनी कस्टडी में लेकर फोस्टर केयर में भेज दिया। इसके साथ ही ये भी कहा गया कि दोनों जब तक 18 साल के नहीं हो जाते, उन्होंने अभिभावक को नहीं सौंपा जा सकता। अपने बच्चों के लिए सागरिका को बहुत लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी।