डॉक्टर्स व नर्सें जहां दिन रात कोरोना पेशेंट की सेवा में लगे हुए हैं। वहीं वैज्ञानिक भी दिन-रात कोरोना से जुड़ी हर जानकारी इक्ट्ठी करने की कोशिश कर रहे हैं। मगर, ऐसा नहीं है कि कोरोना वायरस को दुनिया में पहली बार देखा गया हो। इससे पहले भी यह वायरस (दूसरे टाइप का) अस्तित्व में आ चुका है।
सबसे पहले डॉक्टर जून ने की थी कोरोना की पहचान
बता दें कि कोरोना के परिवार में कई तरह के वायरस है। इनमें से 04-05 वायरस ही घातक रहे हैं, जिसमे से सबसे घातक यह नया कोरोना वायरस (covid-19) है। इसकी फैमिली का पहला वायरस 1964 में खोजा गया था, जिसे खोजने वाली डॉक्टर एक महिला थी।
वायरस की खोज के लिए छोड़ा स्कूल
डॉक्टर जून अलमेडा ही वो व्यक्ति है, जिन्होंने पहली बार कोरोना वायरस की पहचान की थी।जून का जन्म साल 1930 में स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर में हुआ था। स्काटलैंड की रहने वाली जून ने 16 वर्ष की आयु में स्कूल छोड़ दिया क्योंकि वो इमेजिंग क्षेत्र के चर्चित लोगों में अपना नाम दर्ज करवाना चाहती थींं। स्कूल छोड़ने के बाद वो वायरस की रिसर्च में लग गई।
16 साल की उम्र में पहचाना वायरस
उनके पिता एक मामूली बस ड्राइवर थे। 16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ने के बाद उन्होंने एक लैब में बतौर तकनीशियन काम शुरू किया लेकिन कुछ बाद वो लंदन चली गई। वहीं साल 1954 में उन्होंने शादी कर ली, जिसके कुछ समय बाद उन्हें बेटी हुई। बेटी होने के बाद वो टोरंटो चली गई, जहां से उन्होंने अपनी छोड़ी हुई आगे की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वो ओंटारियो केंसर इंस्टीट्यूट काम करने लगी। इसके बाद उन्हें साल 1964 में लंदन के सेंट थॉमस मेडिकल स्कूल में नौकरी मिल गई, जहां उन्होंने कोरोना वायरस की खोज की थी।
जून उन दिनों सर्दी-जुकाम के वायरस पर काम कर रही थी कि तभी एक अनोखा व अलग नमूना मिला। इसके बाद उन्होंने अपनी रिसर्च शुरू की। इलैक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप जांच के जरिए उन्हें पता चला कि यह वायरस इनफ्लूएंजा की तरह ही दिखता है। मगर पूरी तरह जांच करने के बाद उन्होंने बताया कि यह कोरोना वायरस है।
अपने करियर में डॉक्टर जून ने कई नए वायरसों की पहचान की और रिटायर होने के बाद वो योगा टीचर बन गईं थीं। साल 2017 में 77 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।