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जानिए कौन है BV Nagarathna जो बन सकती हैं साल 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश!

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 12 Feb, 2023 03:04 PM
जानिए कौन है BV Nagarathna जो बन सकती हैं साल 2027 में भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश!

आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। आपको को बता दें कि 5 साल बाद 2027 में जस्टिस बीवी नागरत्ना देश की पहली महिला चीफ जस्टिस बन सकती हैं। यह हम सभी देशवासियों के लिए बहुत गर्व की बात है। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं जस्टिस बीवी नागरत्ना के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी। 

कौन है जस्टिस बीवी नागरत्ना?

बीवी नागरत्ना का जन्म 30 अक्टूबर साल 1962 में हुआ था। उनके पिता जस्टिस ईएस वेंकटरमैया 19 जून 1989 से 17 दिसंबर साल 1989 के बीच भारत के 19वें मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट से एलएलबी की है। पढ़ाई पूरी करने के बाद बीवी नागरत्ना ने 28 अक्टूबर 1987 को एक वकील के रूप में अपनी लॉ-करियर की शुरुआत बेंगलुरु में की थी। उन्हें 18 फरवरी साल 2008 को कर्नाटक हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया था और 17 फरवरी, 2010 को एक स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। 

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ऐसे बनीं सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस 

आपको बता दें कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में बीवी नागरत्ना के लगभग 13 साल का कार्यकाल पूरा हो गया है और साल 2021 में जब सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने केंद्र सरकार के पास कोर्ट में खाली पड़ी वैकेंसी के लिए 9 नामों की सिफारिश की तो उनमें जस्टिस बीवी नागरत्ना का नाम भी शामिल था। इसके बाद बीवी नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बनीं। 

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कौन-कौन से महत्वपूर्ण फैसले लिए?

नोटबंदी के फैसले ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को लेकर सरकार के फैसले को सही माना था लेकिन इस फैसले में भी जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय दूसरे जजों से अलग थी। उन्होंने अपने फैसले में कहा था कि 'संसद को नोटबंदी के मामले में कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी और यह प्रक्रिया गजट अधिसूचना के जरिए नहीं होनी चाहिए थी।

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देश के लिए इतने महत्वपूर्ण मामले में संसद को अलग नहीं रखा जा सकता है। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 के नोटों को बंद करने का फैसला गलत और गैरकानूनी था।' इसके अलावा कर्नाटक हाईकोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान नाजायज संतान को लेकर महत्वपूर्ण बात रखी थी। उन्होंने कहा कि 'कानून को इस तथ्य को मान्यता देनी चाहिए कि नाजायज माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन उनसे पैदा होने वाली संतान नहीं और यह संसद को निर्धारित करना है कि वैध विवाह से बाहर पैदा हुए बच्चों को किस तरह से सुरक्षा प्रदान की जा सकती है।' इन फैसलों को लेकर कई लोगों ने उनके पक्ष में भी अपनी राय रखी थी। 

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