एक लड़की जब शादी के बंधन में बंधती है तो वह अपने साथ कई सपने लेकर आती हैं। मगर, ससुराल आने के बाद उसे अजस्ट करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कुछ महिलाएं तो सालों तक ससुराल को अपना घर नहीं मान पाती और उसे अपने माता-पिता के घर जैसा महसूस क्यों नहीं कर पाती। चलिए आपको बताते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है...
नहीं मिलती मायके जैसी आजादी
दरअसल, ससुराल में महिलाओं को वो आजादी नहीं मिलती जो उन्हें मायके में मिलती है। मायके में सुबह देर से उठना चल जाता है लेकिन ससुराल में ऐसा नहीं होता। यही नहीं, ससुराल में महिलाओं को हर छोटी-बड़ी चीज पूछकर करनी पड़ती है लेकिन मायके में उन्हें हर तरह की आजादी होती है, फिर बात चाहे खाने की हो या अपने पसंदीदा कपड़े पहनने की।
कई ख्वाहिशें अधूरी...
मायके में अगर लड़की की कोई ख्वाहिश पूरी ना भी हो तो उसे लड़-झगड़कर मनवा लेती हैं लेकिन ससुराल में ऐसा नहीं चलता। कई बार तो महिलाएं अपनी ख्वाहिशों का जिक्र तक किसी से नहीं कर पाती।
तबीयत खराब होने पर भी करना पड़ता है काम
अगर तबीयत खराब हो जाए तो माता-पिता से लेकर घर के सभी सदस्य खिदमत में लग जाते हैं लेकिन ससुराल में ऐसा नहीं होता। कई बार तो ससुराल वालों को तबीयत खराब होना बहू का बहाना या कामचोरी लगती है। मायके में उसके खाने पीने और हर तरह की चीजों का ध्यान रखा जाता लेकिन उसकी जरूरतों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता।
हर फैसले में भागीदारी
मायके के हर निर्णय में लड़की को भी महत्वपूर्ण माना जाता है लेकिन ससुराल में तो घरवाले उसे कुछ बताना भी जरूरी नहीं समझते। अगर वह कोई सुझाव देती भी है तो उसे अनसुना कर दिया जाता है।
हर गलती के लिए सुनने पड़ते हैं ताने
माता-पिता तो बेटी की हर गलती को छोटा-समझ माफ कर देते हैं लेकिन ससुराल में जरा-सी भी गलती हो जाए तो उसे डांट ही नहीं बल्कि ताने भी सुनने पड़ते हैं।
यही वजह है कि लड़कियों के लिए ससुराल हमेशा पराया ही रहता है। अगर ससुराल वाले बहू को बेटी समझें तो लड़की को अजस्ट करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। यही नहीं, वह अपने सास-ससुर को भी माता-पिता की तरह की सम्मान और प्यार देगी।