नारी डेस्क: यह आम धारणा कि रेबीज केवल जंगली जानवरों के काटने से फैलता है, अब पूरी तरह गलत साबित हो रही है। हाल के वर्षों में पालतू कुत्तों और बिल्लियों द्वारा रेबीज के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई है। परिवार में पाले गए इन जानवरों के काटने या खरोंच से भी यह घातक बीमारी फैल सकती है, जिससे लोगों की सुरक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना अत्यंत आवश्यक हो गया है। पालतू जानवरों के संपर्क में रहने वाले सभी लोगों को सावधानी बरतने और रेबीज से बचाव के उपायों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
तेजी से बढ़ रहे हैं रेबीज के मामले
विशेषज्ञों और शोधों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में पालतू जानवरों के काटने से रेबीज के टीकाकरण की घटनाएं काफी बढ़ी हैं। आंकड़ों के मुताबिक, 40% से अधिक लोग पालतू जानवरों के काटने के बाद टीकाकरण के लिए अस्पताल पहुंचे। इन मामलों में 98% कुत्तों के काटने से संबंधित थे, जबकि शेष 2% बिल्लियों, बंदरों या अन्य जंगली जानवरों के काटने से थे।
WHO की चेतावनी, एशिया और अफ्रीका में सबसे ज्यादा खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, एशिया और अफ्रीका रेबीज के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र हैं। 150 से अधिक देशों में रेबीज का खतरा है, लेकिन एशिया और अफ्रीका में 95% रेबीज से होने वाली मौतें होती हैं। भारत में हर साल करीब 20,000 लोग रेबीज के कारण अपनी जान गंवा देते हैं, जिनमें से 40% पीड़ित 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं।
पालतू जानवरों की देखभाल में लापरवाही
पालतू जानवरों के मालिक अक्सर उनके टीकाकरण को गंभीरता से नहीं लेते। कुत्तों और बिल्लियों के बच्चों को तीन से चार सप्ताह के अंतराल पर कई टीके लगवाने की जरूरत होती है। इसके बाद छह महीने, एक साल और तीन साल पर बूस्टर टीके भी लगाए जाने चाहिए। लेकिन पालतू जानवर पालने वाले अक्सर इस आवश्यक प्रक्रिया को नजरअंदाज कर देते हैं। इससे जानवरों में रेबीज का खतरा बढ़ जाता है और वे अपने मालिकों के साथ-साथ अन्य लोगों को भी संक्रमित कर सकते हैं।
रेबीज से मृत्यु दर सौ फीसदी
रेबीज एक ऐसी बीमारी है, जिसमें संक्रमण के बाद जीवित रहने की संभावना लगभग न के बराबर होती है। दुनिया भर में अब तक केवल आठ लोग ही ऐसे हैं, जो रेबीज के संक्रमण के बाद बच पाए हैं। इनमें से सात लोगों को पहले ही रेबीज वैक्सीन दी गई थी, जबकि एक व्यक्ति अपने मजबूत प्रतिरोधक क्षमता के कारण बच पाया। अगर रेबीज का इलाज समय पर न किया जाए, तो यह निश्चित तौर पर घातक साबित होता है।
पालतू जानवर काटे तो क्या करें?
1. जानवर पर नजर रखें रेबीज संक्रमित जानवर 10 दिनों के भीतर मर जाता है, इसलिए उस पर कड़ी निगरानी रखें।
2. घाव को तुरंत साफ करें जिस स्थान पर काटा या खरोंच किया गया हो, उसे कम से कम 20 मिनट तक साबुन और पानी से अच्छी तरह धोएं।
3. टीकाकरण जल्द करवाएं काटने के बाद सात दिनों के भीतर आरआईजी (Rabies Immunoglobulin) और एंटी-रेबीज वैक्सीन लगवाना आवश्यक है।
Rural क्षेत्रो में सबसे ज्यादा खतरा
रेबीज के लगभग 80% मामले ग्रामीण इलाकों से आते हैं, जहां चिकित्सा सेवाओं की पहुंच सीमित है। ऐसे क्षेत्रों में रेबीज के उपचार की जानकारी और सुविधाएं कम होने के कारण स्थिति और गंभीर हो जाती है। टीकाकरण की कमी और जानकारी के अभाव में ग्रामीण क्षेत्रों में रेबीज से होने वाली मौतों की संख्या अधिक होती है।
बच्चों में सबसे ज्यादा खतरा
विशेषज्ञों के अनुसार, रेबीज से पीड़ित अधिकांश लोग 15 वर्ष से कम उम्र के होते हैं। बच्चों को अक्सर पालतू जानवरों के साथ खेलने के दौरान खरोंच या काट लिया जाता है, जिससे उनके संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। बीएचयू, वाराणसी के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के निदेशक डॉ. कैलाश कुमार गुप्ता का कहना है कि 40% मामले पालतू या घरेलू जानवरों के काटने से होते हैं।
टीकाकरण से बचाव संभव
पालतू जानवरों के सही तरीके से टीकाकरण से रेबीज के खतरे को कम किया जा सकता है। अगर समय पर रेबीज का वैक्सीन लगाया जाए, तो यह बीमारी घातक साबित नहीं होती। पालतू जानवरों के मालिकों को इस बात की जागरूकता होनी चाहिए कि अपने पालतू कुत्तों और बिल्लियों को नियमित रूप से टीका लगवाना न सिर्फ उनके लिए बल्कि उनके परिवार और समाज के लिए भी आवश्यक है।
रेबीज एक खतरनाक बीमारी है, जिसका सही समय पर इलाज न हो तो यह जानलेवा साबित हो सकती है। पालतू कुत्ते और बिल्लियों के काटने या खरोंच से भी यह बीमारी फैल सकती है, इसलिए इन जानवरों की देखभाल और टीकाकरण पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। जागरूकता और सतर्कता ही इस जानलेवा बीमारी से बचाव का सबसे प्रभावी उपाय है।