मानवाधिकार संरक्षण के लिहाज से 10 दिसंबर के दिन का खास महत्व है। इस दिन को ‘अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस' के तौर पर मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने 1950 में दस दिसंबर को मानवाधिकार दिवस घोषित किया था, जिसका उद्देश्य विश्वभर के लोगों को मानवाधिकारों के महत्व के प्रति जागरूक करना और इसके पालन के प्रति सजग रहने का संदेश देना है।
हर इंसान को जीने का अधिकार
यह दिन लोगों के सामाजिक, सांस्कृतिक और शारीरिक अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सभी के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए मनाया जाता है। मानवाधिकार दिवस किसी भी जाति, रंग, धर्म, लिंग, भाषा, राजनीतिक या अन्य राय, राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, संपत्ति, जन्म या किसी भी अन्य स्टेटस के बावजूद सभी मनुष्यों के पूर्ण अधिकारों का प्रतीक है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार देश के सभी नागरिकों को मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार है।
भारत में चली अधिकारों के लिए लंबी लड़ाई
दुनिया के सभी लोग अपने बुनियादी मानव अधिकारों का आनंद ले सकें इसके लिए ही अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस की शुरूआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसम्बर 1948 में की और 1950 में महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरूआत के लिए आमंत्रित किया, लेकिन दुखद है कि हमारे देश में मानवाधिकार कानून को अमल में लाने के लिए एक लम्बा समय लगा। इसे भारत में 26 सितम्बर 1993 को लागू किया गया था। समान मानव अधिकारों की लड़ाई में महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग, नेलसन मण्डेला, भीमराव आंबेडकर जैसे लेागों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ये है मानवाधिकार दिवस की थीम
मानवाधिकार दिवस हर साल अलग-अलग थीम पर मनाया जाता है। साल 2022 की थीम डिग्निटी, फ्रीडम और जस्टिस फॉर ऑल रखा गया है। इसका मतलब स्वास्थ्य सभी लोगों के लिए एक मौलिक मानव अधिकार है। सभी के लिए स्वास्थ्य के बिना कोई सम्मान, स्वतंत्रता और न्याय नहीं हो सकता। मानवाधिकारों के संबंध में नेल्सन मंडेला ने कहा था, ‘लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।
ये है महिलाओं का अधिकार
आज हम आपको महिलाओं के अधिकारों के बारे में जानकारी देते हैं, ताकि समय आने पर वह अपने उन अधिकारों का इस्तेमाल कर सके जो उन्हें भारतीय कानून द्वारा दिए गए हैं।
घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार: कोई महिला अगर घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं तो इसके लिए वह शिकायत दर्ज करवा सकती है। भारतीय कानून के अनुसार मां-बेटी,मां,पत्नी,बहू या फिर घर में रह रही किसी भी महिला पर घरेलू हिंसा करना अपराध है।
मुफ्त कानूनी मदद का अधिकार: रेप पीडित किसी महिला को मुफ्त में कानूनी मदद पाने का अधिकार दिया गया है। इस स्थिति में पुलिस थानाध्यक्ष के लिए जरूरी है कि वह लीगल सर्विस अथॉरिटीको सूचित करके उसके लिए वकील की व्यवस्था करे।
काम पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार: अगर महिला ऑफिस या फिर अपने काम पर उत्पीड़न का शिकार हो जाती है तो वह यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकती है।
नाम न छापने का अधिकार: बलात्कार की शिकार हुई महिला को असली नाम न छपने देने का अधिकार है। उसके नाम की पूरी तरह से गोपनियता रखने का अधिकार दिया गया है। वह अपना ब्यान किसी महिला पुलिस अधिकार की मौजूदगी के सामने दर्ज करवा सकती है।
मातृत्व संबंधी अधिकार: महिलाओं को इस अधिकार के बारे में जानकारी होना बहुत जरूरी है। महिलाओं काे मातृत्व लाभ अधिनियम,1961 के तहत मैटरनिटी बेनिफिट्स का अधिकार दिया गया है। वह इस एक्ट के तहत गर्भवती होने पर 26 सप्ताह तक मैटरनिटी लीव ले सकती है। इसके अलावा इस दौरान उसकी सैलरी में कोई कटौती भी नहीं की जा सकती और वो फिर से काम शुरू कर सकती हैं
गरिमा और शालीनता का अधिकार: अगर महिला किसी मामले में अपराधी है तो उस पर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा संबंघी जांच की प्रक्रिया किसी दूसरी महिला की मौजूदगी में होनी जरूरी है।
रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार: महिलाओं की सुरक्षा को देखते हुए उन्हें यह सुविधा भी दी गई है कि सूरज डूबने के बाद या फिर सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। ऐसा सिर्फ प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है।
ईमेल के जरिए भी पुलिस में शिकायत: किसी कारण यदि महिला खुद पुलिस स्टेशन नहीं जा सकती तो वो डिप्टी कमिश्नर या पुलिस कमिश्नर को अपनी शिकायत ईमेल या रजिस्टर्ड पोस्ट से भी भेज सकती है।
छेड़खानी के खिलाफ कानून: महिला की मर्यादा को भंग करते हुए अगर कोई उससे छेड़छाड़, कोई अभद्र इशारा या कोई गलत हरकत करता है तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है।
संपत्ति पर अधिकार: औरतों को दिए गए अधिकारों में यह अधिकार भी शामिल है कि पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है। इसके अलावा शादी के बाद पति की संपत्ति पर पत्नी का मालिकाना हक होता है। महिला को यह पूरा अधिकार है कि पति उसका भरण-पोषण करें।